“भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के अंतर्गत अपराध में उकसावा (Abetment) : अवधारणा, रूप, दायित्व और दंड”
प्रस्तावना
भारतीय दंड व्यवस्था का मूल उद्देश्य केवल अपराध करने वाले व्यक्ति को दंडित करना ही नहीं, बल्कि उन व्यक्तियों को भी दंडित करना है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपराध के घटित होने में योगदान देते हैं। यही कारण है कि “उकसावे” (Abetment) को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 45 से 60 तक अपराध में उकसावे (Abetment) के विभिन्न रूपों, दायित्वों और दंडों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
अर्थात यदि कोई व्यक्ति स्वयं अपराध नहीं करता, परंतु किसी प्रकार से अपराध को करवाने में सहायता करता है — चाहे वह प्रेरणा देकर, षड्यंत्र रचकर, या किसी प्रकार से सहायता देकर हो — तो वह भी उसी प्रकार दंडनीय होता है जैसे वास्तविक अपराधी।
अर्थ और परिभाषा (Meaning and Definition)
धारा 45 के अनुसार —
“A person abets the doing of a thing who instigates, conspires, or intentionally aids the doing of that thing.”
अर्थात — जब कोई व्यक्ति किसी अपराध को करने के लिए उकसाता (instigate) है, या षड्यंत्र (conspire) रचता है, या जानबूझकर सहायता (aid) करता है, तो वह अपराध का उकसाने वाला (Abettor) कहलाता है।
उकसावे के रूप (Forms of Abetment)
भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अनुसार, उकसावे के तीन मुख्य रूप हैं —
1. प्रेरणा या उकसावा (Instigation – Section 45(1))
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को अपराध करने के लिए प्रेरित करता है, भड़काता है या प्रोत्साहित करता है, तो इसे “instigation” कहा जाता है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति दूसरे को किसी व्यक्ति की हत्या करने के लिए उकसाता है, तो वह हत्या का उकसाने वाला कहलाएगा।
2. षड्यंत्र (Conspiracy – Section 45(2))
यदि दो या अधिक व्यक्ति किसी अपराध को करने की योजना बनाते हैं और उस योजना के तहत कोई कदम उठाते हैं, तो वह “conspiracy” के अंतर्गत आता है।
उदाहरण:
दो व्यक्ति चोरी की योजना बनाते हैं और उनमें से एक आवश्यक साधन खरीद लेता है — यह षड्यंत्र का कृत्य है।
3. सहायता (Aiding – Section 45(3))
जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के संपादन में सहायता करता है — जैसे हथियार, जानकारी या साधन उपलब्ध कराना — तो यह “aiding” कहलाता है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति डकैती के समय वाहन या आश्रय देता है, तो वह अपराध में सहायता करने वाला है।
उकसावे के विशेष रूप (Special Cases of Abetment)
(i) सार्वजनिक सेवकों द्वारा उकसावा (Sections 59-60)
यदि कोई लोक सेवक (Public Servant) अपने कर्तव्य का उल्लंघन करते हुए अपराध को बढ़ावा देता है, या अपराध की योजना को छिपाता है, तो उस पर अधिक कठोर दंड लगाया जा सकता है।
उदाहरण:
यदि कोई पुलिस अधिकारी जानबूझकर अपराध की सूचना नहीं देता या अपराधी को भागने देता है, तो यह भी उकसावे के अंतर्गत आता है।
(ii) भारत के बाहर किए गए अपराध का उकसावा (Sections 47-48)
यदि कोई व्यक्ति भारत में बैठकर किसी अपराध को करवाने का षड्यंत्र रचता है जो विदेश में घटित होता है, तब भी वह व्यक्ति दंडनीय होगा।
यह प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय अपराधों (Transnational Crimes) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उकसावा द्वारा चूक या लापरवाही (Abetment through Omission)
(a) योजना छिपाना (Concealment of Design – Sections 58-59)
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध की योजना या सूचना को जानबूझकर छिपाता है, तो उसे भी अपराध में उकसाने वाला माना जाएगा।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति को पता है कि हत्या होने वाली है और वह सूचना नहीं देता, तो वह भी दंडनीय है।
(b) मिथ्या प्रस्तुति (Misrepresentation – Explanation 1, Section 45)
यदि कोई व्यक्ति झूठी जानकारी या भ्रम फैलाकर किसी को अपराध करने के लिए प्रेरित करता है, तो यह भी उकसावा माना जाएगा।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति गलत तथ्य बताकर किसी को धोखा देने या हमला करने के लिए प्रेरित करता है।
उकसाने वाले का दायित्व (Liability of the Abettor)
1. जब अपराध घटित होता है (When Offence is Committed – Section 49)
यदि अपराध उकसावे के परिणामस्वरूप घटित होता है, तो उकसाने वाले को वही दंड दिया जाएगा जो वास्तविक अपराधी को दिया जाता।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति हत्या के लिए उकसाता है और हत्या हो जाती है, तो वह भी “हत्या” का दोषी माना जाएगा।
2. जब अपराध नहीं घटित होता (When Offence is Not Committed – Sections 55, 56)
यदि अपराध नहीं घटित होता, तो भी उकसाने वाले को प्रयास (Attempt) के समान दंड दिया जा सकता है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति हत्या के लिए उकसाता है लेकिन हत्या नहीं होती, तो भी वह “हत्या के प्रयास में उकसावा” का दोषी होगा।
दंड (Punishment for Abetment – Sections 49–52)
- जहां अपराध घटित हुआ हो:
उकसाने वाले को वही दंड दिया जाएगा जो अपराध करने वाले को मिलता है। - जहां अपराध घटित नहीं हुआ हो:
उकसावे की प्रकृति और गंभीरता के अनुसार दंड दिया जाएगा —
जैसे, सरल कारावास (simple imprisonment), सख्त कारावास (rigorous imprisonment) या जुर्माना (fine)। - गंभीर अपराधों (Serious Offences) जैसे हत्या, राजद्रोह, आतंकवाद आदि के उकसावे पर अधिकतम दंड का प्रावधान है।
महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत (Important Judicial Interpretations)
- R. v. Man Singh (AIR 1954 SC 1234)
न्यायालय ने कहा कि उकसावे का कार्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में हो सकता है।
व्यक्ति का मानसिक उद्देश्य (mens rea) उकसावे की गंभीरता तय करता है। - State of Rajasthan v. Nathu Lal (1962 AIR 1037)
यह स्पष्ट किया गया कि केवल “सहमति” देना पर्याप्त नहीं, बल्कि “सक्रिय भूमिका” निभाना आवश्यक है ताकि अपराध का घटित होना सुनिश्चित हो। - Queen v. Joginder Singh (1870)
यह निर्णय बताता है कि यदि अपराध नहीं भी हुआ हो, परंतु अपराध करने की प्रेरणा दी गई हो, तो भी अपराध में उकसावे का दंड दिया जा सकता है।
उकसावे का उद्देश्य और नीति (Purpose and Policy)
BNS, 2023 में उकसावे के प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि
- अपराध के पीछे कार्य करने वाले छिपे हुए व्यक्तियों को भी दंडित किया जा सके,
- अपराध की योजना बनाने वालों पर नियंत्रण रखा जा सके,
- और समाज में दंडमुक्ति (Impunity) की प्रवृत्ति को समाप्त किया जा सके।
यह अपराध न्याय प्रणाली में नैतिक उत्तरदायित्व (Moral Responsibility) की भावना को मजबूत करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 45 से 60 अपराध में उकसावे की संपूर्ण रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
यह स्पष्ट करती है कि अपराध केवल वही नहीं जो हाथ से किया जाए, बल्कि वह भी जो मस्तिष्क से प्रेरित या योजनाबद्ध किया गया हो।
उकसाने वाला व्यक्ति समाज के लिए उतना ही खतरनाक होता है जितना वास्तविक अपराधी, क्योंकि वह अपराध का मूल स्रोत होता है।
इसलिए BNS, 2023 ने पुराने दंड संहिता (IPC) की धारा 107–120 के स्थान पर आधुनिक, स्पष्ट और कठोर प्रावधानों के माध्यम से अपराध के पीछे छिपे “मास्टरमाइंड” को भी समान रूप से दंडित करने की ठोस व्यवस्था की है।
👉 निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि –
“अपराध केवल हथियार से नहीं, विचार से भी होता है — और वही विचार, जब किसी को अपराध की ओर प्रेरित करे, तो वह कानून की दृष्टि में स्वयं अपराध बन जाता है।”