भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 5 – मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा को कम करने का प्रावधान

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 5 – मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा को कम करने का प्रावधान


भूमिका

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल आधार है, जो अपराधों की परिभाषा, उनकी सजा और दंड प्रक्रिया को निर्धारित करती है। इसके अंतर्गत धारा 5 एक विशेष और महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो मृत्युदंड (Death Penalty) या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) जैसी कठोर सजा को कम करने की शक्ति सरकार को प्रदान करता है। यह प्रावधान न्याय, दया और मानवीय दृष्टिकोण के संतुलन को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाया गया है।


धारा 5 का आशय (Meaning of Section 5 BNS)

धारा 5 का सार यह है कि—
यदि किसी व्यक्ति को अदालत द्वारा मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी गई है, तो केंद्र सरकार या राज्य सरकार (जैसा मामला हो) को यह अधिकार है कि वह उस सजा को कम कर सके।
सजा कम करने का मतलब यह हो सकता है कि:

  • मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाए।
  • आजीवन कारावास को निश्चित अवधि के कारावास में बदल दिया जाए।
  • कारावास को जुर्माने में बदल दिया जाए।
  • कारावास की अवधि घटा दी जाए।

सरकार के पास यह अधिकार क्यों?

सजा कम करने का अधिकार सरकार के पास इसलिए है ताकि:

  1. न्याय में लचीलापन बना रहे।
  2. विशेष परिस्थितियों (जैसे कैदी की उम्र, स्वास्थ्य, सुधार की संभावना, पारिवारिक स्थिति, या न्यायिक त्रुटि) को ध्यान में रखा जा सके।
  3. मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जा सके, खासकर जब परिस्थितियां अपराध की गंभीरता को कम करने योग्य हों।
  4. दया याचिका (Mercy Petition) का निपटारा हो सके।

धारा 5 के अंतर्गत सजा कम करने के तरीके

सरकार द्वारा सजा कम करने के निम्नलिखित तरीके हो सकते हैं—

  1. सजा में परिवर्तन (Commutation of Sentence) – उदाहरण के लिए, मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलना।
  2. सजा में कटौती (Remission) – कारावास की अवधि कम करना।
  3. सजा में परिवर्तन का स्वरूप बदलना (Substitution) – कारावास को जुर्माने या कम अवधि के कारावास में बदलना।
  4. माफी (Pardon) – पूरे अपराध के लिए सजा को समाप्त करना (यह मुख्यतः राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक अधिकार के तहत होता है, लेकिन BNS में भी इसका सहारा लिया जा सकता है)।

संवैधानिक संबंध

धारा 5 का सीधा संबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 से है, जिनमें—

  • अनुच्छेद 72 – राष्ट्रपति को मृत्युदंड और अन्य मामलों में दया, माफी, राहत देने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 161 – राज्यपाल को राज्य से संबंधित मामलों में ऐसे अधिकार।

BNS की धारा 5 इन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है और इन्हें लागू करने में मदद करती है।


उदाहरण

  1. उदाहरण 1 – एक व्यक्ति को हत्या के अपराध में मृत्युदंड मिला। उसकी दया याचिका पर विचार करने के बाद राज्य सरकार ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
  2. उदाहरण 2 – किसी कैदी ने जेल में 20 साल अच्छा आचरण किया और वह गंभीर रूप से बीमार है। राज्य सरकार ने मानवीय आधार पर उसकी आजीवन कारावास की सजा को 25 साल तक सीमित कर दिया।
  3. उदाहरण 3 – एक बुजुर्ग महिला को आर्थिक अपराध में 10 साल की सजा मिली, लेकिन उसकी स्वास्थ्य स्थिति और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण सरकार ने सजा घटाकर 5 साल कर दी।

महत्व

  1. न्याय और दया का संतुलन – यह प्रावधान कठोर सजा को मानवीय आधार पर कम करने का अवसर देता है।
  2. पुनर्वास को प्रोत्साहन – अच्छे आचरण वाले कैदियों को समाज में पुनः शामिल होने का मौका मिलता है।
  3. संविधान के अधिकारों की रक्षा – यह संविधान प्रदत्त दया याचिका प्रणाली का पूरक है।
  4. न्यायिक त्रुटि सुधार – यदि न्यायिक प्रक्रिया में कोई भूल हुई हो, तो सजा कम करने का रास्ता खुला रहता है।

सीमाएं

  • सजा कम करने का निर्णय सरकार के विवेक पर आधारित है, जिसका दुरुपयोग भी संभव है।
  • यह निर्णय अक्सर राजनीतिक दबाव या सार्वजनिक भावना से प्रभावित हो सकता है।
  • पीड़ित पक्ष के लिए कभी-कभी यह अन्यायपूर्ण महसूस हो सकता है।

निष्कर्ष

भारतीय न्याय संहिता की धारा 5 एक ऐसा प्रावधान है जो आपराधिक न्याय प्रणाली में मानवता, दया और लचीलापन लाता है। यह मृत्युदंड और आजीवन कारावास जैसी कठोर सजाओं को कम करने की प्रक्रिया को वैधानिक मान्यता देता है। जहां एक ओर यह अपराधियों को सुधार का मौका देता है, वहीं सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह इस अधिकार का उपयोग केवल न्याय, मानवाधिकार और सार्वजनिक हित के अनुरूप करे।