शीर्षक: भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 61: आपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा और दंड – सरल और विस्तारपूर्वक विश्लेषण
परिचय
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) की धारा 61 “आपराधिक षड्यंत्र (Criminal Conspiracy)” से संबंधित है। यह धारा बताती है कि जब दो या अधिक व्यक्ति मिलकर किसी अपराध को अंजाम देने की योजना बनाते हैं, तब वे केवल योजना बनाने भर से ही दोषी माने जा सकते हैं, भले ही अपराध किया गया हो या नहीं।
धारा 61 का सरल भाषा में सार
अगर दो या दो से अधिक लोग मिलकर कोई गैरकानूनी काम करने की साजिश (conspiracy) रचते हैं — यानी आपस में योजना बनाते हैं कि वे मिलकर कोई अपराध करेंगे — तो कानून उन्हें इस आपराधिक षड्यंत्र के लिए दोषी मानता है।
➡️ योजना बनाना ही अपराध है, भले ही अपराध अभी किया नहीं गया हो।
महत्वपूर्ण तत्व (Essential Elements):
धारा 61 के तहत किसी को दोषी ठहराने के लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए:
- दो या अधिक व्यक्ति हों।
- वे किसी गैरकानूनी कार्य या वैध कार्य को अवैध तरीके से करने की योजना बनाएं।
- योजना के अंतर्गत सहमति (agreement) स्पष्ट हो।
- अगर अपराध गंभीर न हो, तो केवल योजना बनाना पर्याप्त नहीं — कुछ कदम उठाना (act in furtherance) भी जरूरी हो सकता है।
उदाहरण:
- उदाहरण 1: राम और श्याम मिलकर चोरी की योजना बनाते हैं। उन्होंने घर की रेकी कर ली, नक्शा भी बना लिया, लेकिन चोरी नहीं की। यह धारा लागू होगी।
- उदाहरण 2: सीमा और कविता मिलकर झूठे दस्तावेज़ बनाने की योजना बनाती हैं और इसके लिए स्टेशनरी खरीदती हैं। योजना बनाना और उस दिशा में कदम उठाना उन्हें दोषी बनाता है।
सज़ा (Punishment under BNS Section 61):
धारा 61 के तहत दंड की प्रकृति इस बात पर निर्भर करती है कि षड्यंत्र किस अपराध के लिए किया गया था:
- अगर षड्यंत्र किसी ऐसे अपराध के लिए है जिसकी सज़ा मृत्युदंड, आजीवन कारावास, या 2 वर्ष से अधिक की सजा है:
➤ तो षड्यंत्र रचने वालों को वैसी ही सज़ा दी जा सकती है, जैसे उस अपराध के प्रयास (attempt) की होती है। - अन्य मामलों में:
➤ अधिकतम 6 माह की सज़ा, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
कानूनी सिद्धांत:
- आपराधिक षड्यंत्र का मूल सिद्धांत यह है कि एक समूह द्वारा किया गया षड्यंत्र ज्यादा खतरनाक होता है, क्योंकि इसमें कई व्यक्ति मिलकर समाज के खिलाफ योजना बनाते हैं।
- इसीलिए कानून सिर्फ योजना को भी दंडनीय अपराध मानता है।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
✅ State of Maharashtra vs. Som Nath Thapa (1996)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि षड्यंत्र का दोष सिद्ध करने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण की आवश्यकता नहीं है — परिस्थितिजन्य साक्ष्य और व्यवहार भी पर्याप्त हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
भारतीय न्याय संहिता की धारा 61 यह स्पष्ट करती है कि अपराध करने की साजिश या योजना बनाना ही अपने-आप में एक गंभीर अपराध है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानून अपराध की जड़ को ही समाप्त कर सके, केवल परिणाम तक सीमित न रहे।
➡️ यह धारा समाज को संगठित अपराध से बचाने का एक सशक्त माध्यम है।