भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 121 : स्वतंत्र आवागमन में बाधा डालने का अपराध
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में अनेक प्रावधान ऐसे हैं, जिनका सीधा संबंध आम नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता से है। इन्हीं में से एक धारा 121 है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसके कानूनी अधिकार से वंचित न कर सके। विशेषकर, यह धारा इस बात से संबंधित है कि यदि कोई व्यक्ति किसी को उस रास्ते पर जाने से रोकता है, जिस पर उसे कानूनी अधिकार से गुजरने की अनुमति है, तो यह एक दंडनीय अपराध होगा।
इस लेख में हम धारा 121 के अर्थ, उद्देश्य, कानूनी प्रावधान, उदाहरण, सज़ा, न्यायालयीन दृष्टांत और सामाजिक महत्व को विस्तार से समझेंगे।
1. धारा 121 का आशय और परिभाषा
सरल शब्दों में, धारा 121 तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को ऐसे रास्ते पर जाने से रोकता है, जिस पर उसके जाने का वैधानिक (कानूनी) अधिकार है।
- यदि कोई व्यक्ति किसी सड़क, गली, रास्ते, या सार्वजनिक मार्ग पर खड़ा होकर आपको आगे बढ़ने से रोकता है, तो यह अपराध माना जाएगा।
- यह अपराध तभी माना जाएगा जब वह मार्ग सार्वजनिक हो या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त हो।
- किसी निजी भूमि या संपत्ति में प्रवेश रोकना इस धारा के अंतर्गत नहीं आएगा, क्योंकि वहाँ व्यक्ति का स्वतः अधिकार नहीं होता।
2. धारा 121 का उद्देश्य
इस धारा का मुख्य उद्देश्य नागरिकों के स्वतंत्र आवागमन (Right of Free Movement) की रक्षा करना है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(d) हर नागरिक को पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने-फिरने का अधिकार देता है।
- यदि कोई व्यक्ति इस अधिकार में बाधा डालता है, तो यह न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है बल्कि समाज में अराजकता फैलाने वाला कृत्य भी है।
- इसलिए धारा 121 इस मौलिक अधिकार को संरक्षित करने का साधन है।
3. अपराध के आवश्यक तत्व
धारा 121 के अंतर्गत अपराध सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक हैं –
- जानबूझकर बाधा डालना – आरोपी ने जानबूझकर (Intentionally) किसी को रास्ते से गुजरने से रोका हो।
- कानूनी अधिकार होना – जिस रास्ते पर जाने से रोका गया, उस पर पीड़ित का वैध अधिकार होना चाहिए।
- भौतिक अवरोध – बाधा वास्तविक और प्रत्यक्ष होनी चाहिए, जैसे – रास्ता रोकना, दरवाज़ा बंद करना, या गली में खड़ा हो जाना।
- बिना कानूनी कारण – यदि पुलिस या प्रशासन कानूनन रोकता है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।
4. उदाहरण
- उदाहरण 1: राम एक सार्वजनिक सड़क पर खड़ा होकर श्याम को आगे बढ़ने से रोक देता है। यह धारा 121 के अंतर्गत अपराध है।
- उदाहरण 2: कोई व्यक्ति किसी मंदिर जाने वाले मार्ग पर खड़ा होकर भक्तों को प्रवेश से रोकता है। यह भी अपराध है।
- उदाहरण 3: यदि किसी निजी भूमि के मालिक ने बिना अनुमति के किसी को अपने खेत से गुजरने से रोका, तो यह धारा लागू नहीं होगी, क्योंकि उस मार्ग पर जाने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
- उदाहरण 4: यदि पुलिस किसी जुलूस को रोकने के लिए मार्ग अवरुद्ध करती है, तो यह अपराध नहीं होगा, क्योंकि यह वैध कर्तव्य के अंतर्गत है।
5. सज़ा का प्रावधान
धारा 121 के अंतर्गत अपराध करने वाले व्यक्ति को –
- एक महीने तक की कैद या
- ₹5,000 तक का जुर्माना या
- दोनों (कैद और जुर्माना) की सज़ा दी जा सकती है।
यह सज़ा अपेक्षाकृत हल्की है, क्योंकि यह अपराध सामान्य प्रकृति का है और इसमें शारीरिक चोट या गंभीर हानि नहीं होती। लेकिन यह नागरिक स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण है।
6. धारा 121 का स्वरूप (Nature of Offence)
- संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence): यह अपराध सामान्य रूप से संज्ञेय नहीं है, यानी पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकती।
- जमानती अपराध (Bailable Offence): आरोपी को ज़मानत पर छोड़ा जा सकता है।
- आयोग्य अपराध (Triable by Any Magistrate): इसका विचार किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।
7. धारा 121 और दंड संहिता, 1860 का तुलनात्मक अध्ययन
भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 341 में भी इसी प्रकार का प्रावधान था।
- IPC की धारा 341 के अंतर्गत भी किसी के रास्ता रोकने पर 1 महीने की कैद या ₹500 तक का जुर्माना था।
- लेकिन BNS, 2023 में इस जुर्माने की राशि को बढ़ाकर ₹5,000 कर दिया गया है।
- इससे स्पष्ट है कि नए कानून में अपराधों के प्रति अधिक कड़ा दृष्टिकोण अपनाया गया है।
8. न्यायालयीन दृष्टांत (Case Laws)
हालाँकि BNS, 2023 अभी हाल ही में लागू हुआ है, परंतु IPC की धारा 341 के अंतर्गत कई निर्णय हुए हैं, जिनसे मार्गदर्शन लिया जा सकता है।
- State of Gujarat v. Keshavlal (AIR 1960): न्यायालय ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक मार्ग पर किसी के रास्ता रोकता है, तो यह Wrongful Restraint है।
- Chandrika Prasad v. State of Bihar: अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल तभी अपराध सिद्ध होगा, जब पीड़ित को उस रास्ते से जाने का वैध अधिकार हो।
- Ramesh v. State (1990): यह माना गया कि यदि अवरोध अस्थायी और आकस्मिक हो, तो इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
9. धारा 121 का सामाजिक महत्व
- यह कानून समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति किसी के साथ जबरदस्ती या अनुचित दबाव न बना सके।
- यह धारा विशेष रूप से उन परिस्थितियों में उपयोगी है, जब भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों, धार्मिक स्थलों, या सार्वजनिक स्थानों पर कोई व्यक्ति या समूह दूसरों के रास्ते रोककर उन्हें परेशान करता है।
- यह नागरिकों को यह संदेश देता है कि सड़कें और सार्वजनिक मार्ग सबके लिए समान हैं।
10. आलोचनात्मक विवेचन (Critical Analysis)
- सकारात्मक पक्ष:
- यह धारा नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है।
- मामूली अपराधों पर भी सज़ा सुनिश्चित कर समाज में अनुशासन कायम करती है।
- संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता का संरक्षण करती है।
- नकारात्मक पक्ष:
- सज़ा अपेक्षाकृत बहुत हल्की है, जिससे अपराधी इसे गंभीरता से नहीं लेते।
- अक्सर ऐसे मामलों को पुलिस छोटे विवाद मानकर दर्ज नहीं करती।
- सामूहिक प्रदर्शन या जुलूस के मामलों में इसे लागू करना कठिन हो जाता है।
11. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 121 साधारण दिखने वाला प्रावधान है, परंतु इसका महत्व अत्यधिक है। यह प्रत्येक नागरिक के स्वतंत्र आवागमन के अधिकार को सुनिश्चित करता है और यह संदेश देता है कि किसी भी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं है।
हालाँकि इसकी सज़ा हल्की है, फिर भी यह कानून सामाजिक शांति, अनुशासन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा में एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि –
- न्यायालय और पुलिस इस धारा का सक्रिय रूप से उपयोग करें।
- जुर्माने की राशि समय-समय पर बढ़ाई जाए।
- नागरिक भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें।
इस प्रकार, धारा 121 यह सुनिश्चित करती है कि सड़कें, रास्ते और सार्वजनिक मार्ग सबके लिए समान और स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हों, और किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करना न केवल गलत है बल्कि कानूनन दंडनीय भी है।