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भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 248: झूठे केस दर्ज कराने वालों को 10 साल तक की जेल और ₹2 लाख जुर्माना

🔷 शीर्षक: भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 248: झूठे केस दर्ज कराने वालों को 10 साल तक की जेल और ₹2 लाख जुर्माना

🔶 प्रस्तावना:

भारतीय न्याय व्यवस्था का मूल उद्देश्य न्याय दिलाना है, न कि उसका दुरुपयोग करना। लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ लोग इस प्रणाली का इस्तेमाल निजी द्वेष, बदले की भावना या झूठे लाभ के लिए करते हैं। ऐसे ही मामलों से निपटने के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में धारा 248 के अंतर्गत सख्त प्रावधान लाया गया है, जो झूठे मुकदमों और शिकायतों पर रोक लगाने का प्रयास करता है।


🔶 धारा 248 BNS का सारांश:

यदि कोई व्यक्ति:

  • जानबूझकर झूठी एफआईआर (FIR) दर्ज कराता है,
  • किसी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ फर्जी शिकायत या सूचना देता है,
  • या किसी को दंड दिलाने की नीयत से झूठा आरोप लगाता है,

तो उसे गंभीर आपराधिक दंड भुगतना पड़ सकता है।


🔶 दंड का प्रावधान:

👉 सजा: न्यूनतम 5 वर्ष से लेकर अधिकतम 10 वर्ष तक की सश्रम कारावास
👉 जुर्माना: ₹2 लाख रुपये तक का आर्थिक दंड

यह सजा न्यायालय द्वारा परिस्थितियों के अनुसार दी जा सकती है।


🔶 उद्देश्य और आवश्यकता:

  1. न्याय व्यवस्था की पवित्रता बनाए रखना:
    झूठे मुकदमे दर्ज करने से न केवल निर्दोष व्यक्ति को कष्ट होता है, बल्कि अदालत का बहुमूल्य समय और संसाधन भी बर्बाद होते हैं।
  2. दोषियों को सख्त संदेश:
    यह प्रावधान ऐसे लोगों को स्पष्ट चेतावनी देता है कि कानून का दुरुपयोग करने की छूट अब नहीं है।
  3. अपराध नियंत्रण में सहायक:
    झूठे आरोपों के डर से कई बार असली अपराधी बच निकलते हैं। अब असली अपराधियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी।

🔶 व्यावहारिक उदाहरण:

मान लीजिए किसी ने संपत्ति विवाद में प्रतिद्वंद्वी पर बलात्कार या भ्रष्टाचार का झूठा आरोप लगा दिया, सिर्फ उसे बदनाम करने या जेल भिजवाने के उद्देश्य से। यदि जांच में यह सिद्ध हो जाए कि शिकायतकर्ता ने जानबूझकर झूठ बोला, तो अब वह स्वयं धारा 248 BNS के तहत जेल और जुर्माने के दायरे में आएगा।


🔶 निष्कर्ष:

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की यह नई धारा 248 एक सशक्त कानूनी हथियार है जो निर्दोष लोगों को झूठे मामलों में फंसने से बचाएगी और साथ ही झूठे आरोप लगाने वालों को सख्त दंड के दायरे में लाएगी।

अब समय आ गया है कि जनता भी इस बदलाव को समझे और न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने से बचे। क्योंकि अब अगर आपने किसी को फंसाने की सोची, तो कानून खुद आपको फंसा सकता है।