भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 11: एकांत कारावास का प्रावधान

लेख शीर्षक: भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 11: एकांत कारावास का प्रावधान

परिचय:
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) भारतीय दंड संहिता, 1860 का प्रतिस्थापन है, जिसमें दंड प्रक्रिया को अधिक आधुनिक, न्यायसंगत और पीड़ित-केंद्रित बनाने के उद्देश्य से कई नए प्रावधान शामिल किए गए हैं। इस संहिता की धारा 11 विशेष रूप से “एकांत कारावास (Solitary Confinement)” से संबंधित है। यह धारा बताती है कि किन परिस्थितियों में, कितने समय के लिए और किस प्रकार एक व्यक्ति को एकांत कारावास में रखा जा सकता है।

धारा 11 का मूल प्रावधान:
धारा 11 के अनुसार, किसी भी अपराधी को जो कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) की सजा भुगत रहा हो, उसे सजा की एक निर्धारित अवधि के लिए एकांत कारावास में रखा जा सकता है।
हालांकि, यह अवधि कुल कारावास की अवधि का केवल एक हिस्सा हो सकती है और इसकी अधिकतम सीमा तीन महीने से अधिक नहीं हो सकती।

मुख्य विशेषताएं:

  1. केवल कठोर कारावास पर लागू: यह प्रावधान केवल उन मामलों पर लागू होता है जहाँ अपराधी को कठोर कारावास की सजा दी गई हो।
  2. न्यायालय का विवेक: एकांत कारावास देने का निर्णय न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है, और इसे सजा के रूप में अलग से निर्धारित किया जा सकता है।
  3. अधिभार न हो: एकांत कारावास की अवधि न्यायिक विवेक से तय की जाएगी ताकि यह आरोपी की मूलभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन न करे।

एकांत कारावास की प्रकृति:
एकांत कारावास का अर्थ होता है कि कैदी को अन्य कैदियों से अलग थलग रखा जाए ताकि वह किसी सामाजिक संपर्क से दूर रहे। इसे दंडात्मक उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है, विशेषकर तब जब कैदी अनुशासनहीनता दिखाता है या विशेष प्रकार का गंभीर अपराध करता है।

मानवाधिकार और न्यायिक संतुलन:
हालांकि एकांत कारावास को न्यायिक दृष्टि से एक वैध दंड के रूप में मान्यता प्राप्त है, परंतु इसके दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए इसका सीमित और विवेकपूर्ण उपयोग आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों ने एकांत कारावास को दीर्घकाल तक देने को अमानवीय बताया है, इसलिए BNS, 2023 में इसकी अधिकतम सीमा केवल तीन महीने निर्धारित की गई है।

निष्कर्ष:
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 11 एक संतुलित प्रावधान है जो एक ओर अपराधियों के अनुशासन और गंभीरता को नियंत्रित करता है, वहीं दूसरी ओर उनके मानवाधिकारों की भी रक्षा करता है। यह न्यायिक विवेक और सज़ा के औचित्य के बीच संतुलन बनाता है, जो कि आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।