भारतीय न्याय संहिता, 2023 और गर्भपात से संबंधित अपराध: एक विस्तृत कानूनी विश्लेषण
भूमिका
भारत में गर्भपात का विषय सदैव नैतिक, सामाजिक और कानूनी विमर्श का केंद्र रहा है। एक ओर जहां महिला के शरीर पर उसके अधिकार और निजता की रक्षा की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर भ्रूण के जीवन अधिकार और सामाजिक नैतिकता का प्रश्न भी उठता है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की जगह लेकर इस विषय को नए दृष्टिकोण से देखा है। इसमें गर्भपात से संबंधित अपराधों को पुनर्परिभाषित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कानून महिला की सुरक्षा, भ्रूण की रक्षा और चिकित्सकीय नैतिकता के बीच संतुलन बनाए रखे।
यह लेख भारतीय न्याय संहिता, 2023 में गर्भपात संबंधी अपराधों की कानूनी स्थिति, उनके तत्वों, दंड, न्यायिक दृष्टिकोण और संवैधानिक परिप्रेक्ष्य का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करता है।
1. भारतीय न्याय संहिता, 2023 का परिचय
भारत सरकार ने 2023 में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) को लागू करने का निर्णय लिया, जो औपनिवेशिक कालीन भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेती है। इस नए कानून का उद्देश्य अपराधों की परिभाषाओं को आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार अद्यतन करना, लैंगिक समानता और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा को सशक्त बनाना है।
गर्भपात (Abortion) से संबंधित अपराधों को BNS में पुनः संगठित किया गया है ताकि यह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 (MTP Act) के अनुरूप हो और महिला के स्वास्थ्य, गरिमा तथा सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके।
2. गर्भपात की कानूनी परिभाषा और मूलभूत अवधारणा
कानूनी दृष्टि से गर्भपात का अर्थ है—
“भ्रूण को गर्भाशय से जानबूझकर इस प्रकार निकालना कि उसका जीवन समाप्त हो जाए या उसका जन्म न हो सके।”
यह कार्य यदि कानूनी और चिकित्सकीय कारणों से किया जाए तो अपराध नहीं माना जाता। परंतु यदि यह कार्य बिना अनुमति, गैर-चिकित्सीय कारणों या महिला की इच्छा के विरुद्ध किया जाए, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है।
3. भारतीय दंड संहिता, 1860 की व्यवस्था
पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) में गर्भपात संबंधी अपराधों की व्यवस्था धारा 312 से 316 के अंतर्गत की गई थी। इन धाराओं में—
- गर्भपात कराने,
- महिला की सहमति से या बिना सहमति के गर्भपात कराने,
- गर्भवती महिला की मृत्यु से संबंधित अपराध,
- भ्रूण हत्या,
आदि का प्रावधान था।
4. भारतीय न्याय संहिता, 2023 में गर्भपात अपराधों की नई व्यवस्था
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने इन धाराओं को धारा 86 से 90 के अंतर्गत पुनर्गठित किया है। इसका उद्देश्य पुराने कानून की भाषा को आधुनिक, सरल और लिंग-न्यायपरक बनाना है।
(क) धारा 86 — स्वेच्छापूर्वक गर्भपात कराना (Voluntary Miscarriage)
यदि कोई महिला स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति की सहायता से जानबूझकर गर्भपात कराती है, और वह कार्य कानूनी अपवादों के अंतर्गत नहीं आता, तो वह अपराध की दोषी मानी जाएगी।
दंड:
- अधिकतम 3 वर्ष तक का कारावास, या
- जुर्माना, या दोनों।
यदि गर्भवती महिला छः माह से अधिक गर्भवती है, तो दंड बढ़कर 7 वर्ष तक का कारावास हो सकता है।
(ख) धारा 87 — बिना सहमति के गर्भपात कराना (Miscarriage without Consent)
यदि कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराता है, तो यह गंभीर अपराध है।
दंड:
- 10 वर्ष तक का कठोर कारावास, और
- जुर्माना।
यदि इसके परिणामस्वरूप महिला की मृत्यु हो जाती है, तो अपराध हत्या के तुल्य माना जा सकता है।
(ग) धारा 88 — गर्भपात के दौरान मृत्यु (Causing Death by Miscarriage)
यदि कोई व्यक्ति गर्भपात कराने के उद्देश्य से महिला पर कोई ऐसा कार्य करता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, तो यह अपराध होगा, चाहे गर्भपात सफल हुआ हो या नहीं।
दंड:
- आजीवन कारावास, या
- 10 वर्ष तक का कठोर कारावास, और
- जुर्माना।
(घ) धारा 89 — भ्रूण हत्या (Foeticide)
यदि कोई व्यक्ति ऐसे कार्य द्वारा भ्रूण की मृत्यु का कारण बनता है जब तक उसका जन्म नहीं हुआ है, तो इसे भ्रूण हत्या कहा जाएगा।
दंड:
- आजीवन कारावास, या
- 14 वर्ष तक का कारावास, और
- जुर्माना।
(ङ) धारा 90 — भ्रूण के जीवित जन्म के बाद मृत्यु कराना (Act after Birth)
यदि भ्रूण जीवित पैदा होता है और कोई व्यक्ति जानबूझकर उसकी मृत्यु का कारण बनता है, तो यह हत्या (Murder) माना जाएगा।
इस प्रावधान से यह सुनिश्चित किया गया है कि नवजात शिशु की हत्या को गर्भपात के बहाने छिपाया न जा सके।
5. कानूनी अपवाद (Legal Exceptions)
BNS ने स्पष्ट किया है कि यदि गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अंतर्गत किया गया है, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा।
उदाहरण:
- महिला के जीवन को बचाने के लिए,
- भ्रूण में गंभीर विकृति होने पर,
- बलात्कार या अनैतिक संबंध से गर्भधारण होने पर,
- गर्भनिरोधक असफलता की स्थिति में (विवाहित या अविवाहित महिला दोनों के लिए),
- चिकित्सक द्वारा उचित देखरेख में किया गया गर्भपात।
इस प्रकार, BNS ने कानूनी गर्भपात और अपराधी गर्भपात के बीच स्पष्ट रेखा खींची है।
6. न्यायिक दृष्टिकोण और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में महिला की स्वायत्तता को सर्वोपरि माना है।
(क) X बनाम NCT ऑफ दिल्ली (2022)
अदालत ने कहा कि अविवाहित महिला भी गर्भपात करा सकती है, और यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का हिस्सा है।
(ख) Suchita Srivastava बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009)
इस मामले में कहा गया कि महिला का प्रजनन संबंधी निर्णय उसकी स्वतंत्रता और निजता का अंग है।
(ग) Z बनाम State of Bihar (2018)
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि राज्य को महिला के स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा करनी चाहिए, और यदि गर्भपात से इनका खतरा है, तो अनुमति दी जा सकती है।
इन निर्णयों ने यह सुनिश्चित किया कि गर्भपात संबंधी कानून केवल दंडात्मक न होकर मानवाधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाएँ।
7. सामाजिक और नैतिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय समाज में गर्भपात को अक्सर नैतिक दृष्टि से देखा जाता है, और कई बार इसे अपराध या पाप की संज्ञा दी जाती है। परंतु कानूनी दृष्टि से यह स्पष्ट है कि महिला का शरीर उसी का अधिकार क्षेत्र है।
- महिला की सहमति के बिना गर्भपात करना अत्यंत गंभीर अपराध है।
- वहीं, महिला की इच्छा से चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित गर्भपात करवाना उसका अधिकार है।
BNS, 2023 ने इसी संतुलन को बनाए रखने का प्रयास किया है—जहाँ अपराधी प्रवृत्तियों पर कठोर दंड का प्रावधान है, वहीं महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार भी प्रदान किया गया है।
8. भ्रूण हत्या और जेंडर आधारित अपराध
भारत में भ्रूण हत्या (Foeticide), विशेष रूप से लिंग आधारित भ्रूण हत्या (Female Foeticide), एक गंभीर सामाजिक समस्या रही है।
Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques (PCPNDT) Act, 1994 ने भ्रूण के लिंग की पहचान और उसके आधार पर गर्भपात को प्रतिबंधित किया है।
BNS, 2023 ने इस अपराध को और अधिक कठोर बनाया है ताकि लड़कियों के जीवन के अधिकार की रक्षा की जा सके। भ्रूण हत्या को अब आजीवन कारावास योग्य अपराध घोषित किया गया है।
9. महिला की सहमति और निजता का महत्व
किसी भी गर्भपात मामले में महिला की सहमति (Consent) सर्वोपरि है।
- यदि कोई व्यक्ति उसकी सहमति के बिना गर्भपात कराता है, तो यह शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा पर आघात है।
- Right to Privacy (Puttaswamy केस, 2017) के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि महिला के शरीर और प्रजनन पर नियंत्रण उसका मौलिक अधिकार है।
इस प्रकार, BNS की धाराएँ अब संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हैं।
10. चुनौतियाँ और सुधार की दिशा
यद्यपि BNS, 2023 ने कई सुधार किए हैं, परंतु कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं—
- ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध गर्भपात केंद्रों की भरमार।
- अविवाहित और नाबालिग महिलाओं के प्रति सामाजिक कलंक।
- चिकित्सकों की कानूनी अस्पष्टता के कारण निर्णय में झिझक।
- महिलाओं के लिए समय पर न्यायिक अनुमति प्राप्त करने में विलंब।
सुझाव:
- सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित गर्भपात सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ।
- कानूनी साक्षरता अभियान चलाए जाएँ।
- पुलिस और चिकित्सा अधिकारियों को संवेदनशीलता प्रशिक्षण दिया जाए।
निष्कर्ष
भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने गर्भपात संबंधी अपराधों के कानून को आधुनिक, मानवीय और न्यायसंगत रूप प्रदान किया है। इसमें एक ओर महिला की गरिमा, स्वायत्तता और स्वास्थ्य की रक्षा की गई है, तो दूसरी ओर भ्रूण हत्या और जबरन गर्भपात जैसे अपराधों पर कठोर दंड का प्रावधान है।
यह कानून दर्शाता है कि भारत की न्याय प्रणाली अब केवल दंड पर केंद्रित नहीं, बल्कि न्याय और समानता की भावना पर आधारित है।
महिला का शरीर उसकी अपनी संपत्ति है, और कानून का उद्देश्य उसे सुरक्षा देना है—न कि उसे नियंत्रित करना।