“भारतीय न्याय संहिता की धारा 248: झूठे आरोपों के माध्यम से हानि पहुंचाने पर दंडनीयता का प्रावधान”
परिचय:
न्याय व्यवस्था का मूल उद्देश्य है सत्य और न्याय की रक्षा करना। किन्तु जब कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर किसी निर्दोष व्यक्ति को जानबूझकर झूठे आरोपों में फँसाने का प्रयास करता है, तो यह न केवल व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाता है।
ऐसे कृत्यों के विरुद्ध दंड सुनिश्चित करने हेतु, भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) की धारा 248 में विशेष प्रावधान किया गया है, जो पूर्व में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) की धारा 211 के रूप में अस्तित्व में थी।
धारा 248, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023:
विषय: झूठे आरोप लगाना, जिससे हानि हो
इस धारा के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँचाने, परेशान करने या उसे गलत तरीके से दंडित करवाने के उद्देश्य से उस पर जानबूझकर झूठा आरोप लगाता है या ऐसी कार्यवाही करता है जो झूठे आरोप के रूप में मानी जाए, तो वह व्यक्ति दंडनीय होगा।
महत्वपूर्ण तत्व (Essential Ingredients):
- आरोप झूठा होना चाहिए।
- आरोपकर्ता को यह ज्ञात हो कि आरोप झूठा है।
- झूठा आरोप लगाने का उद्देश्य किसी को चोट पहुँचाना या परेशानी देना हो।
- आरोप किसी न्यायालय, पुलिस या प्राधिकरण के समक्ष किया गया हो।
दंड (Punishment) का प्रावधान:
BNS की धारा 248 के अनुसार:
- यदि कोई व्यक्ति किसी पर झूठा आपराधिक आरोप लगाता है,
तो उसे 5 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। - यदि आरोप गंभीर अपराध, जैसे मृत्यु-दंड, आजीवन कारावास, या 7 वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय अपराध से संबंधित है,
तो दोषी को 10 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
पूर्व स्थिति (IPC की धारा 211):
यह धारा भी समान भावना के साथ लागू थी, जो कि न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई थी। नई संहिता (BNS, 2023) ने इस धारा को अधिक स्पष्ट भाषा और उद्देश्य के साथ प्रतिस्थापित किया है।
प्रासंगिक उदाहरण:
मान लीजिए, एक व्यक्ति किसी वैमनस्यता के चलते अपने पड़ोसी पर चोरी का झूठा मुकदमा दर्ज करवाता है, जबकि उसे यह पता है कि चोरी नहीं हुई है। जब जांच में यह स्पष्ट हो जाता है कि आरोप झूठा था और उसे जानबूझकर लगाया गया था, तो झूठा आरोप लगाने वाला व्यक्ति BNS की धारा 248 के अंतर्गत दंडनीय होगा।
न्यायिक दृष्टिकोण:
भारतीय उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर यह स्पष्ट किया है कि
“कोई भी व्यक्ति जो कानून का दुरुपयोग करता है, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई आवश्यक है, ताकि निर्दोषों को न्याय मिले और झूठे आरोप लगाने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण हो।”
इस धारा का महत्व:
- न्याय की रक्षा: यह निर्दोषों को झूठे फंसाव से बचाता है।
- न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखता है।
- कानून के दुरुपयोग को हतोत्साहित करता है।
- व्यक्तिगत वैर और दुश्मनी के मामलों में नियंत्रण स्थापित करता है।
निष्कर्ष:
भारतीय न्याय संहिता की धारा 248 (पूर्ववर्ती IPC की धारा 211) भारतीय आपराधिक विधि में एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के विरुद्ध एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि झूठे आरोपों के माध्यम से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा, स्वतंत्रता या अधिकारों के साथ खिलवाड़ न किया जा सके। इसलिए, यह कानून का एक अनिवार्य औजार है जो न्याय और सच्चाई की रक्षा करता है।