भारतीय न्यायालय एकतरफा रूप से विदेशी नोटरी अधिनियमों को मान्यता नहीं दे सकते: धारा 14 का अनुपालन अनिवार्य – केरल उच्च न्यायालय का निर्णय

शीर्षक: भारतीय न्यायालय एकतरफा रूप से विदेशी नोटरी अधिनियमों को मान्यता नहीं दे सकते: धारा 14 का अनुपालन अनिवार्य – केरल उच्च न्यायालय का निर्णय


भूमिका

वैश्वीकरण और प्रवासन के इस युग में भारत में विदेशी दस्तावेज़ों की वैधता और स्वीकार्यता को लेकर कई कानूनी प्रश्न उत्पन्न होते रहते हैं। इसी संदर्भ में केरल उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि भारतीय न्यायालय विदेशी नोटरीकृत दस्तावेज़ों को तब तक मान्यता नहीं दे सकते जब तक कि वे भारतीय नोटरी अधिनियम, 1952 की धारा 14 का अनुपालन न करें। यह निर्णय न केवल दस्तावेज़ प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को मजबूत करता है बल्कि भारत की संप्रभुता और विधिक प्रक्रिया की रक्षा भी करता है।


मामले का संक्षिप्त विवरण

केरल उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका में एक पक्ष ने विदेश में नोटरीकृत दस्तावेज़ को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया और न्यायालय से उसे मान्य मानने की मांग की। इस पर विवाद उत्पन्न हुआ कि क्या ऐसे दस्तावेज़ को भारत में वैध माना जा सकता है, जबकि वह भारत के नोटरी अधिनियम के तहत प्रमाणित नहीं है।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि चूंकि वह दस्तावेज़ किसी विदेशी नोटरी द्वारा विधिवत प्रमाणित है, इसलिए उसे भारतीय न्यायालय में स्वीकार किया जाना चाहिए। वहीं, विरोधी पक्ष ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि बिना भारतीय नोटरी अधिनियम की धारा 14 के अनुरूप प्रमाणीकरण के, ऐसा दस्तावेज़ मान्य नहीं हो सकता।


धारा 14, नोटरी अधिनियम, 1952 की प्रासंगिकता

भारतीय नोटरी अधिनियम, 1952 की धारा 14 के अनुसार:

“केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी देश की सरकार द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा किए गए नोटरी अधिनियम को वैधता तभी प्राप्त होगी जब उस पर केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार वैधता प्राप्त हो।”

इसका अर्थ यह है कि भारत में किसी विदेशी नोटरी के दस्तावेज़ को मान्यता देने के लिए, दो शर्तें आवश्यक हैं:

  1. वह देश भारत सरकार द्वारा अधिसूचित हो, अर्थात वह भारत द्वारा मान्यता प्राप्त हो।
  2. उस देश के नोटरी अधिनियम और अधिकार को केंद्र सरकार द्वारा विधिवत अधिसूचित किया गया हो।

केरल उच्च न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति द्वारा दिए गए निर्णय में कहा गया कि:

“भारतीय न्यायालय किसी विदेशी नोटरी द्वारा किए गए अधिनियम को केवल इस आधार पर स्वीकार नहीं कर सकते कि वह विदेशी प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित है। जब तक भारतीय सरकार द्वारा ऐसे विदेशी अधिनियम को अधिसूचित नहीं किया जाता और वह नोटरी अधिनियम की धारा 14 के अनुरूप नहीं होता, उसे भारत में मान्यता नहीं दी जा सकती।”

अदालत ने आगे कहा कि:

  • यह निर्णय भारत की विधिक संप्रभुता और साक्ष्य कानून के सिद्धांतों की रक्षा के लिए आवश्यक है।
  • बिना धारा 14 के अनुपालन के, ऐसे दस्तावेज़ों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर कर सकता है।

फैसले के प्रभाव और महत्त्व

इस फैसले का भारतीय विधिक प्रणाली पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। इसके प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं:

1. दस्तावेज़ों की वैधता पर स्पष्टता

अब यह स्पष्ट हो गया है कि विदेशी नोटरी दस्तावेज़ों को बिना वैध प्रमाणीकरण के भारत में मान्यता नहीं दी जा सकती। इससे दस्तावेज़ों की सत्यता और प्रमाणिकता सुनिश्चित होगी।

2. धोखाधड़ी की संभावनाओं में कमी

बहुत बार विदेश में तैयार किए गए जाली या विवादित दस्तावेज़ों को भारत में मान्यता दिलाने की कोशिश की जाती है। यह निर्णय ऐसे प्रयासों को रोकने में सहायक सिद्ध होगा।

3. विधिक प्रक्रिया की पारदर्शिता

यह निर्णय न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगा। जब सभी दस्तावेज़ों को भारतीय कानून के अनुरूप जांचा जाएगा, तब न्यायिक निर्णय अधिक विश्वसनीय होंगे।

4. अंतर्राष्ट्रीय विधिक सहयोग की आवश्यकता

इस निर्णय से यह भी संकेत मिलता है कि भारत को अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से नोटरी अधिनियमों की पारस्परिक मान्यता के लिए कार्य करना चाहिए।


अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में तुलना

कई देशों में “Apostille Convention” के तहत दस्तावेज़ों की वैधता की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। हालांकि भारत इस कन्वेंशन का सदस्य है, फिर भी न्यायालयों में साक्ष्य के रूप में दस्तावेज़ प्रस्तुत करने हेतु स्थानीय कानूनों का अनुपालन आवश्यक है। केरल उच्च न्यायालय का निर्णय इसी दिशा में एक ठोस कदम है जो यह सुनिश्चित करता है कि अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ों की वैधता भारतीय नियमों के अनुरूप हो।


समाप्ति विचार

केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल तकनीकी रूप से सही है, बल्कि यह भारतीय विधिक व्यवस्था की गरिमा और स्वायत्तता को भी बनाए रखता है। इस फैसले से यह संदेश स्पष्ट है कि भारतीय न्यायालय विदेशी दस्तावेज़ों की वैधता के प्रश्न में लापरवाही नहीं बरत सकते। जब तक नोटरी अधिनियम की धारा 14 के अनुसार दस्तावेज़ वैध नहीं ठहराया जाता, तब तक वह साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं होगा।


निष्कर्ष

भारत में न्यायिक प्रक्रिया की शुद्धता और विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए यह अत्यावश्यक है कि विदेशी दस्तावेज़ों की जांच और मान्यता के लिए एक स्पष्ट और सख्त विधिक ढांचा हो। केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह न केवल कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करता है, बल्कि न्याय में विश्वास को भी पुनर्स्थापित करता है।