भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
(Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023)
अध्याय I – प्रारंभिक
धारा 1 – संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
- इस अधिनियम को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 कहा जाएगा।
- यह समस्त भारत में लागू होगा।
- इसके उपबंधों को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि से लागू किया जाएगा।
धारा 2 – परिभाषाएँ
इस संहिता में, यदि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो –
(क) “अपराध” का अर्थ भारतीय न्याय संहिता या अन्य किसी प्रचलित कानून के अंतर्गत दंडनीय कार्य है।
(ख) “अधिकारी” में पुलिस अधिकारी, अन्वेषण अधिकारी और अन्य प्राधिकृत व्यक्ति सम्मिलित होंगे।
(ग) “इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड” का अर्थ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में निहित होगा।
(घ) “मजिस्ट्रेट” में जिला मजिस्ट्रेट, महानगरीय मजिस्ट्रेट एवं अन्य सक्षम मजिस्ट्रेट सम्मिलित होंगे।
अध्याय II – संज्ञेय अपराध और पुलिस की शक्तियाँ
धारा 10 – प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)
- किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना मौखिक अथवा लिखित रूप से पुलिस अधिकारी को दी जा सकती है।
- ऐसी सूचना को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी दर्ज किया जा सकेगा।
- प्रत्येक थाने को शून्य प्राथमिकी (Zero FIR) दर्ज करने का अधिकार होगा।
धारा 15 – गिरफ्तारी की शक्ति
- पुलिस अधिकारी संज्ञेय अपराध के आरोपी को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकता है।
- गिरफ्तारी की सूचना तत्काल परिवार या मित्र को दी जाएगी।
- महिला आरोपी की गिरफ्तारी केवल महिला पुलिस अधिकारी द्वारा की जाएगी।
धारा 20 – गृह-निरोध (House Arrest)
- न्यायालय अपराध की प्रकृति और परिस्थितियों को देखते हुए आरोपी को जेल के स्थान पर गृह-निरोध में रखने का आदेश दे सकता है।
अध्याय III – अन्वेषण और अभियोजन
धारा 30 – अन्वेषण की समयसीमा
- प्रत्येक अन्वेषण अधिकारी को अन्वेषण यथाशीघ्र पूर्ण करना होगा।
- गंभीर अपराधों में चार्जशीट 90 दिन के भीतर एवं अन्य अपराधों में 60 दिन के भीतर प्रस्तुत करनी होगी।
धारा 35 – इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य
- इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख, ध्वनि, वीडियो अथवा डिजिटल रिकॉर्डिंग न्यायालय में साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होंगे।
- ऐसे अभिलेख की प्रमाणिकता के लिए इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर या प्रमाणपत्र आवश्यक होगा।
अध्याय IV – न्यायालय और कार्यवाही
धारा 40 – न्यायालय की शक्तियाँ
- मजिस्ट्रेट अभियोजन स्वीकार कर सकता है, आरोप तय कर सकता है और साक्ष्य ग्रहण कर सकता है।
- सत्र न्यायालय गंभीर अपराधों में परीक्षण करेगा।
धारा 45 – कार्यवाही का डिजिटलीकरण
- अभियोजन, गवाही, साक्ष्य और आदेशों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में सुरक्षित रखा जाएगा।
- नोटिस और सम्मन ईमेल, मोबाइल संदेश अथवा अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजे जा सकते हैं।
धारा 50 – वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा परीक्षण
- आरोपी, गवाह और विशेषज्ञ की उपस्थिति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा सुनिश्चित की जा सकती है।
- ऐसी कार्यवाही वैधानिक रूप से भौतिक उपस्थिति के समान प्रभावी होगी।
अध्याय V – जमानत और रिहाई
धारा 60 – जमानत योग्य अपराध
- प्रत्येक आरोपी को, यदि अपराध जमानत योग्य है, तो पुलिस अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट से जमानत पाने का अधिकार होगा।
- निर्धन आरोपी से जमानत राशि न ली जाकर व्यक्तिगत बंधपत्र लिया जा सकता है।
धारा 65 – जमानत योग्य न होने वाले अपराध
- गैर-जमानत योग्य अपराधों में जमानत का निर्णय न्यायालय करेगा।
- गंभीर अपराधों में आरोपी को उचित कारण के अभाव में जमानत नहीं दी जाएगी।
अध्याय VI – गवाह और पीड़ित संरक्षण
धारा 70 – गवाह संरक्षण
- न्यायालय गवाह की सुरक्षा हेतु आवश्यक प्रबंध कर सकता है।
- गवाह की पहचान और पता सार्वजनिक अभिलेख में प्रकट न किया जाएगा।
धारा 75 – पीड़ित अधिकार
- प्रत्येक अपराध पीड़ित को न्यायालय की कार्यवाही की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होगा।
- पीड़ित को न्यायालय द्वारा निर्धारित मुआवजा प्रदान किया जा सकेगा।
अध्याय VII – अपील और पुनरीक्षण
धारा 80 – अपील का अधिकार
- प्रत्येक दोषसिद्ध व्यक्ति को उच्चतर न्यायालय में अपील का अधिकार होगा।
- अपील की समयसीमा आदेश की तिथि से 90 दिन होगी।
धारा 85 – पुनरीक्षण
- उच्च न्यायालय अथवा सत्र न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के आदेश का पुनरीक्षण कर सकता है।
अध्याय VIII – विविध प्रावधान
धारा 90 – समयबद्ध न्याय
- प्रत्येक परीक्षण को न्यायालय यथाशीघ्र पूर्ण करेगा।
- अनावश्यक स्थगन को न्यूनतम रखा जाएगा।
धारा 95 – निरसन और प्रभाव
- इस संहिता के प्रारंभ होते ही दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 निरस्त मानी जाएगी।
- किंतु पूर्व में किए गए कार्य, आदेश अथवा प्रक्रिया वैध मानी जाएगी।
निष्कर्ष
इस प्रकार, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को प्रतिस्थापित कर दिया है और अपराध प्रक्रिया की संपूर्ण रूपरेखा को आधुनिक तकनीक, पारदर्शिता और समयबद्ध न्याय के अनुरूप ढाला है।