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भारतीय दंड संहिता में हत्या और दोषपूर्ण मानव वध का अंतर

भारतीय दंड संहिता में हत्या और दोषपूर्ण मानव वध का अंतर

(Difference between Murder and Culpable Homicide under IPC)


भूमिका (Introduction)

भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860 – IPC) भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली का आधार स्तंभ है। इस संहिता में मानव जीवन के संरक्षण को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। किसी व्यक्ति का जीवन लेना सबसे गंभीर अपराध माना गया है और इसलिए हत्या (Murder) तथा दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide) की धाराएँ इस संहिता के सबसे महत्वपूर्ण प्रावधानों में गिनी जाती हैं।

साधारण भाषा में लोग हत्या और दोषपूर्ण मानव वध को एक ही मान लेते हैं। किंतु विधिक दृष्टि से दोनों में सूक्ष्म किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण अंतर है। धारा 299 IPC में “Culpable Homicide” परिभाषित है, जबकि धारा 300 IPC में बताया गया है कि किन परिस्थितियों में वही Culpable Homicide “Murder” बन जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि –
“Culpable Homicide is the genus, Murder is the species.”
अर्थात्, हर Murder, Culpable Homicide होता है, लेकिन हर Culpable Homicide Murder नहीं होता।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)

IPC का निर्माण 1860 में किया गया था और इसमें अंग्रेजी आपराधिक कानून की कई अवधारणाएँ शामिल की गई थीं। “Homicide” की अवधारणा रोमन और इंग्लिश लॉ से ली गई है। अंग्रेजी कानून में भी Manslaughter और Murder के बीच अंतर किया गया था। भारत में वही भेद Culpable Homicide और Murder के रूप में धारा 299 और 300 के अंतर्गत सम्मिलित किया गया।


परिभाषाएँ (Definitions)

(1) दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide – Section 299 IPC)

धारा 299 के अनुसार, कोई व्यक्ति दोषपूर्ण मानव वध करता है यदि वह –

  • किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का इरादा रखता है, या
  • ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने का इरादा रखता है जो मृत्यु कारित करने की संभावना रखती है, या
  • यह ज्ञान रखता है कि उसकी क्रिया मृत्यु कारित करने की संभावना रखती है।

उदाहरण:
A और B में झगड़ा होता है। A गुस्से में B को डंडे से जोरदार चोट मारता है। उसे यह ज्ञान था कि चोट से गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यदि B की मृत्यु हो जाती है, तो यह Culpable Homicide है।


(2) हत्या (Murder – Section 300 IPC)

धारा 300 के अनुसार, यदि कोई Culpable Homicide निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है तो वह Murder कहलाता है –

  1. जब मृत्यु कारित करने का निश्चित इरादा हो।
  2. जब ऐसी चोट पहुँचाने का इरादा हो जो स्वभावतः मृत्यु कारित करेगी।
  3. जब यह ज्ञान हो कि विशेष प्रकार की चोट मृत्यु को अवश्य लाएगी।
  4. जब कृत्य अत्यंत खतरनाक हो और स्वाभाविक परिणाम मृत्यु ही हो।

उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति शत्रुता के कारण चाकू से हृदय पर वार करता है और पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, तो यह Murder है।


अंतर के आधार (Points of Distinction)

आधार Culpable Homicide (धारा 299) Murder (धारा 300)
प्रकृति सामान्य दोषपूर्ण हत्या विशेष और गंभीर रूप
इरादा (Intention) मृत्यु कारित करने का सामान्य इरादा या ज्ञान मृत्यु कारित करने का प्रबल और निश्चित इरादा
गंभीरता कम गंभीर अपराध सबसे गंभीर अपराध
सजा धारा 304 के अंतर्गत – आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक धारा 302 के अंतर्गत – मृत्यु दंड या आजीवन कारावास
उदाहरण गुस्से में डंडे से चोट करना और मृत्यु होना योजनाबद्ध तरीके से चाकू या गोली से हत्या करना

Murder न माने जाने की परिस्थितियाँ (Exceptions under Section 300)

कुछ परिस्थितियों में, भले ही कृत्य से मृत्यु हो, वह Murder नहीं माना जाएगा। ये पाँच अपवाद हैं –

  1. गंभीर और अचानक उकसावा (Grave and Sudden Provocation):
    जब किसी को अचानक और गंभीर उकसावा मिलता है और उसी आवेश में उसने मृत्यु कारित कर दी।
  2. आत्मरक्षा (Private Defence):
    जब कोई व्यक्ति आत्मरक्षा में उचित सीमा तक बल प्रयोग करता है।
  3. लोक सेवक द्वारा कर्तव्य पालन (Public Servant):
    जब कोई लोक सेवक अपने कर्तव्य पालन में या विश्वास में मृत्यु कारित करता है।
  4. अचानक झगड़े (Sudden Fight):
    बिना पूर्वनियोजन, अचानक झगड़े में यदि मृत्यु हो जाए।
  5. पूर्व नियोजित इरादा न होना (Without Premeditation):
    यदि चोट मृत्यु लाने के उद्देश्य से नहीं दी गई थी।

इन परिस्थितियों में यह अपराध Culpable Homicide not amounting to Murder कहलाता है।


न्यायालयीन व्याख्या (Judicial Interpretation)

(1) State of Andhra Pradesh v. R. Punnayya (1976 SC)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा –
“Culpable Homicide is the genus, Murder is its species.”
दोनों में अंतर बहुत ही सूक्ष्म है।

(2) Virsa Singh v. State of Punjab (1958 SC)

निर्णय हुआ कि यदि चोट जानबूझकर ऐसी दी गई हो जो स्वभावतः मृत्यु कारित करती है, तो वह Murder होगा।

(3) K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962 SC)

“Grave and sudden provocation” की व्याख्या दी गई और Murder को Culpable Homicide not amounting to Murder माना गया।

(4) Rajwant Singh v. State of Kerala (1966 SC)

यहाँ कहा गया कि केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि विशेष परिस्थिति का भी आकलन आवश्यक है।

(5) Uday v. State of Karnataka (2003 SC)

न्यायालय ने कहा कि केवल झगड़े में मारे गए प्रहार को Murder नहीं माना जा सकता जब तक स्पष्ट इरादा न हो।


सजा का अंतर (Punishment Difference)

  • Murder (धारा 302): मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और जुर्माना।
  • Culpable Homicide not amounting to Murder (धारा 304):
    • भाग I: आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक कारावास + जुर्माना।
    • भाग II: 10 वर्ष तक कारावास या जुर्माना, या दोनों।

उदाहरणों के माध्यम से अंतर

  1. Case A:
    A ने B को हल्की चोट पहुँचाई, यह जानते हुए कि गंभीर नुकसान हो सकता है। B की मृत्यु हो गई।
    👉 यह Culpable Homicide है।
  2. Case B:
    A ने B की हत्या की योजना बनाई और चाकू से दिल पर वार किया।
    👉 यह Murder है।
  3. Case C:
    अचानक झगड़े में A ने B को धक्का दिया और वह गिरकर मर गया।
    👉 यह Culpable Homicide not amounting to Murder है।

आलोचना (Criticism)

  • Murder और Culpable Homicide का अंतर अक्सर बहुत सूक्ष्म होता है, जिसके कारण न्यायालयों में भ्रम की स्थिति बनती है।
  • कई बार अभियोजन (Prosecution) Murder सिद्ध नहीं कर पाता और आरोपी को कम सजा मिलती है।
  • मृत्यु दंड के संदर्भ में भी न्यायिक विवेक की भूमिका बहुत बढ़ जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय दंड संहिता में Murder और Culpable Homicide के बीच का अंतर केवल सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। Murder को अधिक गंभीर माना गया है क्योंकि उसमें मृत्यु कारित करने का स्पष्ट इरादा होता है, जबकि Culpable Homicide में यह इरादा कम या अप्रत्यक्ष हो सकता है।

इसलिए कहा जाता है कि –

  • सभी Murder, Culpable Homicide हैं।
  • परंतु सभी Culpable Homicide Murder नहीं हैं।

इन धाराओं की व्याख्या न्यायालयों ने समय-समय पर की है और आज भी यह विषय आपराधिक कानून में सबसे चर्चित और चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।


1. धारा 299 IPC के अंतर्गत दोषपूर्ण मानव वध की परिभाषा

धारा 299 IPC के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करता है, और ऐसा करते समय उसे या तो मृत्यु लाने का इरादा होता है, या ऐसी चोट पहुँचाने का इरादा होता है जिससे मृत्यु की संभावना हो, या यह ज्ञान होता है कि उसकी क्रिया से मृत्यु हो सकती है, तो इसे दोषपूर्ण मानव वध (Culpable Homicide) कहते हैं। इस अपराध में मुख्य तत्व इरादा (intention) और ज्ञान (knowledge) हैं। यह Murder से अलग इस कारण है कि इसमें मृत्यु लाने का इरादा प्रबल नहीं होता, बल्कि केवल संभावना रहती है। यह अपराध धारा 304 IPC के अंतर्गत दंडनीय है।


2. धारा 300 IPC के अंतर्गत हत्या की परिभाषा

धारा 300 IPC स्पष्ट करती है कि जब दोषपूर्ण मानव वध कुछ विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, तो वह हत्या (Murder) कहलाता है। इसमें अपराधी का स्पष्ट उद्देश्य मृत्यु कारित करना होता है। उदाहरण के तौर पर, जब आरोपी ऐसी चोट पहुँचाए जो स्वभावतः मृत्यु कारित करेगी या उसे यह पक्का ज्ञान हो कि चोट मृत्यु अवश्य लाएगी। Murder की विशेषता है कि इसमें इरादा (mens rea) अधिक प्रबल और निश्चित होता है। Murder के लिए सजा धारा 302 में दी गई है, जो मृत्यु दंड या आजीवन कारावास हो सकती है।


3. Culpable Homicide और Murder का संबंध

Culpable Homicide और Murder का संबंध “Genus और Species” का है। अर्थात्, Culpable Homicide व्यापक वर्ग है और Murder उसकी एक विशेष श्रेणी है। हर Murder एक Culpable Homicide होता है, लेकिन हर Culpable Homicide Murder नहीं होता। उदाहरण के लिए, अचानक झगड़े में किसी को चोट पहुँचाकर मृत्यु कारित करना Culpable Homicide हो सकता है, लेकिन Murder तभी कहा जाएगा जब चोट मृत्यु लाने के निश्चित इरादे से दी गई हो।


4. Murder और Culpable Homicide का मुख्य अंतर

दोनों अपराधों में मुख्य अंतर इरादे (Intention) और ज्ञान (Knowledge) का स्तर है। Murder में मृत्यु कारित करने का स्पष्ट और निश्चित इरादा होता है, जबकि Culpable Homicide में केवल संभावना का ज्ञान होता है। इसी कारण Murder अधिक गंभीर अपराध है और उसकी सजा धारा 302 में मृत्यु दंड या आजीवन कारावास है, जबकि Culpable Homicide की सजा धारा 304 के अंतर्गत अपेक्षाकृत हल्की है।


5. Murder न माने जाने वाली परिस्थितियाँ

धारा 300 के अपवादों में पाँच परिस्थितियाँ बताई गई हैं, जिनमें मृत्यु कारित करने पर भी यह Murder नहीं माना जाएगा। ये हैं: (1) गंभीर और अचानक उकसावा (grave and sudden provocation), (2) आत्मरक्षा में किया गया कार्य, (3) लोक सेवक द्वारा कर्तव्य पालन, (4) अचानक झगड़े में मृत्यु, और (5) बिना पूर्वनियोजन चोट। इन परिस्थितियों में अपराध Murder नहीं बल्कि Culpable Homicide not amounting to Murder माना जाएगा और धारा 304 IPC के अंतर्गत दंडनीय होगा।


6. धारा 302 और धारा 304 IPC में दंड का अंतर

Murder के लिए धारा 302 में सजा बहुत कठोर है—मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और जुर्माना। इसके विपरीत, Culpable Homicide not amounting to Murder के लिए धारा 304 लागू होती है। इसमें दो भाग हैं—भाग I में आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कारावास और जुर्माना, तथा भाग II में 10 वर्ष तक की कारावास या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। इससे स्पष्ट है कि Murder अधिक गंभीर अपराध माना गया है।


7. Virsa Singh v. State of Punjab (1958)

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने जानबूझकर ऐसी चोट दी है जो स्वभावतः मृत्यु कारित करने वाली है, तो यह Murder होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि अभियोजन को केवल यह साबित करना होगा कि चोट जानबूझकर दी गई थी और वह चोट इतनी गंभीर थी कि स्वभावतः मृत्यु लाती। यह केस Murder और Culpable Homicide के बीच का अंतर समझने में एक महत्वपूर्ण दृष्टांत है।


8. K.M. Nanavati v. State of Maharashtra (1962)

इस प्रसिद्ध केस में सुप्रीम कोर्ट ने “grave and sudden provocation” की व्याख्या की। नानावटी ने आवेश में आकर अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी। अदालत ने माना कि यह हत्या अचानक उकसावे के प्रभाव में हुई थी और इसे Murder न मानकर Culpable Homicide not amounting to Murder माना। इस केस ने Murder और Culpable Homicide में अंतर स्पष्ट करने में अहम भूमिका निभाई।


9. State of Andhra Pradesh v. R. Punnayya (1976)

सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कहा कि Murder और Culpable Homicide में अंतर “सूक्ष्म” है लेकिन “निश्चित” है। अदालत ने दो स्तर बताए—पहला, जब मृत्यु का कारण केवल संभावना (probability) पर आधारित हो, तब वह Culpable Homicide है; दूसरा, जब मृत्यु का कारण निश्चितता (certainty) पर आधारित हो, तब वह Murder है। यह केस दोनों अपराधों की व्याख्या में मील का पत्थर माना जाता है।


10. निष्कर्ष

Murder और Culpable Homicide के बीच का अंतर भारतीय आपराधिक कानून की आत्मा है। दोनों अपराधों में समानता यह है कि दोनों में मानव की मृत्यु होती है। अंतर यह है कि Murder में मृत्यु कारित करने का निश्चित और प्रबल इरादा होता है, जबकि Culpable Homicide में केवल संभावना या अप्रत्यक्ष इरादा होता है। न्यायालयों ने अनेक निर्णयों के माध्यम से इस भेद को स्पष्ट किया है। यह विषय कानून की पढ़ाई और न्यायिक परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।