भारतीय खेल संगठनों में पारदर्शिता और न्यायिक हस्तक्षेप (Transparency in Indian Sports Bodies and Judicial Intervention)
🔶 प्रस्तावना
भारत जैसे विशाल और युवा राष्ट्र में खेल केवल शारीरिक विकास का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव, अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व और सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली उपकरण बन चुके हैं। परंतु खेलों की यह प्रगति तब बाधित होती है जब खेल संगठन (Sports Bodies) भ्रष्टाचार, पक्षपात, भाई-भतीजावाद और पारदर्शिता के अभाव से ग्रसित होते हैं। यही कारण है कि हाल के वर्षों में भारतीय न्यायपालिका को खेल संगठनों में सुधार लाने हेतु न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Intervention) करना पड़ा है।
🔶 भारत में खेल संगठनों की स्थिति
भारत में खेलों का संचालन अधिकतर स्वायत्त खेल संघों (Autonomous Sports Federations) द्वारा किया जाता है, जैसे:
- BCCI (Board of Control for Cricket in India)
- IOA (Indian Olympic Association)
- AIFF (All India Football Federation)
- IWF (Indian Weightlifting Federation) आदि।
ये संगठन स्वयंसेवी संस्थाएं होते हैं लेकिन इन पर सरकारी सहायता और आम जनता का विश्वास निर्भर करता है। अतः इनकी कार्यप्रणाली में जवाबदेही (Accountability) और पारदर्शिता (Transparency) अत्यंत आवश्यक होती है।
🔶 पारदर्शिता की कमी के प्रमुख लक्षण
- चयन प्रक्रिया में पक्षपात
- कोषों का दुरुपयोग और वित्तीय अनियमितताएं
- पारिवारिक और राजनीतिक हस्तक्षेप
- खिलाड़ियों की शिकायतों की अनदेखी
- वार्षिक लेखा परीक्षण या RTI के अंतर्गत सूचना देने से इनकार
- महिला खिलाड़ियों के मामलों में लिंग भेद और उत्पीड़न के मामलों को दबाना
🔶 महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप
⚖️ 1. ज़ी टेलीफिल्म्स बनाम भारत सरकार (Zee Telefilms v. Union of India, 2005)
- BCCI को “State” नहीं माना गया था।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब किसी संस्था को सार्वजनिक कार्य दिए जाएं और वह सरकार की सहायता से संचालित हो, तब उसकी कार्यप्रणाली न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आ सकती है।
⚖️ 2. BCCI में सुधार – लोधा समिति
- IPL स्पॉट फिक्सिंग विवाद (2013) के बाद सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति आर. एम. लोधा समिति गठित की।
- सिफारिशें:
- BCCI में पदाधिकारियों की आयु, कार्यकाल और पद की सीमा
- एक राज्य एक वोट सिद्धांत
- लोकपाल नियुक्ति
- खिलाड़ियों की भागीदारी बढ़ाना
- सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में समिति की अधिकतर सिफारिशें लागू करने का आदेश दिया।
⚖️ 3. IOA और खेल संघों में राजनीति पर रोक
- दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने IOA और अन्य खेल संघों में राजनीतिक पदाधिकारियों की बहुलता पर चिंता व्यक्त की।
- “स्पोर्ट्स को राजनीति से दूर रखें” सिद्धांत को बल दिया गया।
⚖️ 4. महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा से जुड़े मामले
- कुश्ती संघ (WFI) में महिला पहलवानों के उत्पीड़न के आरोपों पर कोर्ट ने जांच के आदेश दिए।
- POSH (Sexual Harassment Act, 2013) की खेल संगठनों में अनुपालना अनिवार्य की गई।
🔶 सूचना का अधिकार (RTI) और खेल संगठन
- खेल संगठन सार्वजनिक सहायता प्राप्त करते हैं और उनके पास सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग होता है।
- दिल्ली हाईकोर्ट ने BCCI को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाने की मांग पर गंभीर विचार किया।
- Transparency International जैसी संस्थाएं भी खेल संगठनों में सूचना अधिकार लागू करने की वकालत करती हैं।
🔶 राष्ट्रीय खेल संहिता (National Sports Code)
भारत सरकार ने 2011 में “राष्ट्रीय खेल विकास संहिता” (NSDC) जारी की जो खेल संघों के संचालन को विनियमित करती है:
- पदाधिकारियों की अधिकतम आयु और कार्यकाल
- लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली
- खिलाड़ियों की भागीदारी
- वार्षिक ऑडिट और रिपोर्टिंग
लेकिन कई बड़े संघों ने इस संहिता का अनुपालन नहीं किया, जिससे न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता बनी रही।
🔶 खेलों में पारदर्शिता हेतु सुझाव
- खेल संगठन RTI के अंतर्गत आएं
- राष्ट्रीय खेल संहिता का अनिवार्य अनुपालन
- खिलाड़ियों और महिला प्रतिनिधियों को निर्णय प्रक्रियाओं में शामिल किया जाए
- लोकपाल/न्यायिक प्राधिकरण द्वारा निगरानी तंत्र विकसित किया जाए
- नियमित लेखा परीक्षा और सार्वजनिक रिपोर्टिंग की अनिवार्यता
🔶 निष्कर्ष
भारतीय खेल संगठनों को केवल प्रशासनिक या तकनीकी संस्थाएं नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और सार्वजनिक विश्वास के वाहक के रूप में देखा जाना चाहिए। इन संगठनों में पारदर्शिता, जवाबदेही, और न्याय की भावना सुनिश्चित करना आवश्यक है। जब तक ये संस्थाएं स्वशासन के नाम पर मनमानी करेंगी, तब तक न्यायपालिका का हस्तक्षेप अपरिहार्य बना रहेगा। भविष्य में इन संगठनों को अधिक जनउत्तरदायी, संवेदनशील, और न्यायोचित बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।