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“भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की भूमिका”

“भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की भूमिका”


🔷 प्रस्तावना:

भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला न्याय पर टिकी है, और उस न्याय को साकार करने का माध्यम है — अपराध नियंत्रण और निष्पक्ष प्रक्रिया। भारत की अपराधिक न्याय प्रणाली तीन प्रमुख घटकों पर आधारित है: पुलिस (जांच), अभियोजन (प्रक्रिया) और न्यायालय (निर्णय)। इन तीनों के समन्वय से ही न्याय की पूर्ति होती है।

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) अब तक इस पूरी प्रक्रिया को निर्देशित करती रही थी, लेकिन समय और तकनीकी विकास के साथ इसकी कई कमियां उजागर हुईं। इसी संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 2023 में “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (भा.ना.सु.सं.), 2023” को पारित किया, जो CrPC का स्थान लेती है।

इस लेख में हम यह विश्लेषण करेंगे कि भा.ना.सु.सं. 2023 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में कैसी भूमिका निभा रही है — और क्या यह व्यवस्था को अधिक न्यायपूर्ण, त्वरित और नागरिक-मित्र बना रही है?


🔷 1. आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल ढांचा:

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में चार मुख्य चरण होते हैं:

  1. जांच (Investigation): पुलिस द्वारा अपराध की जाँच
  2. अभियोजन (Prosecution): सरकारी वकील द्वारा आरोपी पर आरोप लगाना
  3. परीक्षण (Trial): न्यायालय में साक्ष्य और बहस
  4. निर्णय (Judgment): आरोपी दोषी है या नहीं, इसका निर्णय

इन सभी प्रक्रियाओं का संचालन प्रक्रियात्मक कानून के अनुसार होता है। यही वह स्थान है जहां भा.ना.सु.सं. 2023 अपनी भूमिका निभाती है।


🔷 2. भा.ना.सु.सं. 2023 की प्रणालीगत भूमिका:

(i) जांच प्रक्रिया में सुधार:

  • ई-एफआईआर दर्ज करने की सुविधा से शिकायतकर्ता को शीघ्र और सुरक्षित रिपोर्टिंग का अवसर मिलता है।
  • 90 दिन में जांच पूर्ण करने की समय सीमा से पुलिस को समयबद्ध कार्य करने की बाध्यता है।
  • साक्ष्य की डिजिटल रिकॉर्डिंग जांच की पारदर्शिता बढ़ाती है।

(ii) अभियोजन और ट्रायल प्रक्रिया का सशक्तिकरण:

  • वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई — त्वरित न्याय की दिशा में प्रौद्योगिकीय कदम।
  • डिजिटल दस्तावेजों और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकृति — न्यायिक निर्णयों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाती है।
  • पीड़ित को अभियोजन प्रक्रिया में जानकारी का अधिकार — प्रक्रिया में सहभागिता और पारदर्शिता लाता है।

(iii) न्यायिक प्रक्रिया में नागरिक के अधिकारों की रक्षा:

  • मनमानी गिरफ्तारी पर रोक।
  • आरोपी को अपने खिलाफ आरोप जानने और कानूनी सहायता पाने का अधिकार सुनिश्चित।
  • महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और विशेष समूहों की सुनवाई में विशेष व्यवस्था।

🔷 3. न्याय में त्वरिता और पारदर्शिता:

  • भा.ना.सु.सं. 2023 में विभिन्न चरणों के लिए समय-सीमाएं निर्धारित की गई हैं।
    इससे अनावश्यक विलंब और लंबित मामलों की संख्या को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया है।
  • प्रत्येक पक्ष (पीड़ित, आरोपी, वकील) को डिजिटल माध्यम से केस की स्थिति की जानकारी मिल सकती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया अधिक पारदर्शी बनती है।

🔷 4. पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण:

भा.ना.सु.सं. 2023 पहली बार पीड़ित को एक सक्रिय पक्ष के रूप में स्वीकार करता है, जिससे:

  • उसे केस की प्रगति की जानकारी मिलती है।
  • उसे चार्जशीट, एफआईआर, और अन्य आदेशों की प्रति मिलती है।
  • वह उच्च न्यायालयों में अपील भी कर सकता है।

यह दृष्टिकोण केवल दंडात्मक नहीं, बल्कि मानवाधिकार-समर्थक और संवेदनशील न्याय प्रणाली की ओर संकेत करता है।


🔷 5. भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियाँ:

✔️ संभावनाएं:

  • तकनीक आधारित न्याय प्रणाली से पारदर्शिता और विश्वसनीयता में वृद्धि।
  • ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में डिजिटल पहुंच से अधिक लोगों को न्याय की सुविधा।

चुनौतियाँ:

  • सभी राज्यों और एजेंसियों के लिए तकनीकी ढांचे का विकास अभी एक लंबी प्रक्रिया है।
  • पुलिस और न्यायिक अधिकारियों के लिए नए प्रावधानों का प्रशिक्षण अनिवार्य होगा।
  • डिजिटल भेदभाव: गरीब और अशिक्षित वर्गों को नए सिस्टम से जोड़ना चुनौतीपूर्ण है।

🔷 निष्कर्ष:

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में एक आधुनिक, उत्तरदायी और संवेदनशील दृष्टिकोण लेकर आई है। यह कानून केवल प्रक्रियाओं का पुनर्गठन नहीं करता, बल्कि न्याय के विचार को नागरिकों के अधिकारों और सुरक्षा के साथ जोड़ता है।

इसका वास्तविक प्रभाव तभी दिखेगा जब इसे नीतिगत समर्थन, तकनीकी बुनियादी ढांचे, और जमीनी क्रियान्वयन के साथ लागू किया जाएगा। यदि ऐसा होता है, तो यह संहिता भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की रीढ़ के रूप में आने वाले वर्षों में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हो सकती है।