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“भविष्य की योजना मात्र पर विकास प्रस्ताव अस्वीकार नहीं किया जा सकता: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”

शीर्षक:
“भविष्य की योजना मात्र पर विकास प्रस्ताव अस्वीकार नहीं किया जा सकता: कर्नाटक उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”

भूमिका:
शहरी और ग्रामीण विकास की प्रक्रिया में योजना प्राधिकरण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। विकास योजनाओं के अंतर्गत भूमि उपयोग, अधिग्रहण, और निर्माण को विनियमित करने के लिए विभिन्न अधिनियमों और नियमों का पालन आवश्यक होता है। हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि केवल भविष्य में भूमि अधिग्रहण या विकास की प्रस्तावित योजना के आधार पर किसी विकास प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, जब तक कि अधिग्रहण के लिए विधिवत अधिसूचना जारी न की गई हो।

मामले की पृष्ठभूमि:
इस निर्णय में न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न आया कि क्या किसी विकास प्रस्ताव को इसलिए खारिज किया जा सकता है क्योंकि उस भूमि पर भविष्य में सरकारी विकास कार्य की योजना प्रस्तावित है, जबकि उस योजना के अंतर्गत अभी तक कोई अधिसूचना अधिग्रहण हेतु जारी नहीं की गई है?

याचिकाकर्ता ने एक वैध विकास योजना के अंतर्गत निर्माण की अनुमति मांगी थी, जो वर्तमान मास्टर प्लान के अनुरूप थी। योजना प्राधिकरण ने इस आवेदन को अस्वीकार करते हुए कहा कि उस भूमि को भविष्य की विकास योजना में अधिग्रहण हेतु चिह्नित किया गया है। इस पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया।

उच्च न्यायालय का निर्णय:
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने योजना प्राधिकरण के निर्णय को अस्वीकार करते हुए यह निर्देश दिया कि:

  1. केवल प्रस्तावित योजना आधार नहीं हो सकती:
    न्यायालय ने माना कि केवल यह तथ्य कि भूमि भविष्य में अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित है, विकास अनुमति को अस्वीकार करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकता।
  2. विधिवत अधिसूचना आवश्यक:
    जब तक कि भूमि के अधिग्रहण हेतु अधिसूचना (Notification) जारी नहीं की जाती, तब तक उस प्रस्ताव को केवल मसौदा या प्रस्तावित योजना माना जाएगा, जो विधिक रूप से बाध्यकारी नहीं होती।
  3. वर्तमान वैध योजना का पालन:
    यदि याचिकाकर्ता का विकास प्रस्ताव वर्तमान वैध मास्टर प्लान और सभी लागू नियमन के अनुरूप है, तो उसे मंजूरी से वंचित नहीं किया जा सकता।
  4. निवेश और अधिकारों की रक्षा:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि विकासकर्ता ने वैध प्रक्रिया के तहत आवेदन किया है और कोई तीसरे पक्ष के अधिकार बन चुके हैं, तो सरकार या प्राधिकरण को बाद में अपने प्रस्ताव के आधार पर उस अनुमति को बाधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

न्यायिक टिप्पणियाँ:
न्यायालय ने यह दोहराया कि प्रशासनिक स्वेच्छाचारिता को न्यायिक विवेक से नियंत्रित किया जाना चाहिए। भूमि मालिक या विकासकर्ता की वैध उम्मीदों की रक्षा की जानी चाहिए, विशेषकर जब वह सभी आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करता है।

निष्कर्ष:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल न्यायपूर्ण प्रशासन के सिद्धांतों की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि नियोजन प्राधिकरण मनमाने ढंग से विकास प्रस्तावों को केवल अनुमानित योजनाओं के आधार पर खारिज नहीं कर सकते। इससे शहरी नियोजन प्रक्रिया में पारदर्शिता, निवेश सुरक्षा और विधिक सुनिश्चितता को बल मिलता है।

यह निर्णय भारत के अन्य राज्यों में भूमि विकास और मास्टर प्लान संबंधी मामलों में भी मार्गदर्शन के रूप में कार्य करेगा।