प्रश्न: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की विधिक प्रणाली में क्या परिवर्तन हुए? चार्टर अधिनियमों और न्यायिक सुधारों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
🔷 भूमिका:
ब्रिटिश शासन भारत के विधिक इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। 1600 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से लेकर 1947 में स्वतंत्रता तक, भारतीय विधिक प्रणाली में गहरे परिवर्तन हुए। अंग्रेजों ने भारत में एक ऐसी एकीकृत, आधुनिक और लिखित विधिक प्रणाली स्थापित की, जो पश्चिमी कानूनों पर आधारित थी। विशेष रूप से चार्टर अधिनियमों (Charter Acts) और न्यायिक सुधारों (Judicial Reforms) ने भारतीय न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया। इस उत्तर में हम विस्तार से देखेंगे कि ब्रिटिश काल में क्या-क्या विधिक परिवर्तन हुए, और इन अधिनियमों व सुधारों की भूमिका क्या रही।
🔷 1. प्रारंभिक अवस्था: कंपनी शासन की शुरुआत (1600-1765)
- 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी को ब्रिटिश सम्राट द्वारा व्यापार की अनुमति मिली।
- प्रारंभ में कंपनी अपने कर्मचारियों पर इंग्लैंड के कानूनों के अनुसार सीमित न्यायिक कार्य करती थी।
- न्यायिक शक्ति का विस्तार 1661 में चार्टर द्वारा हुआ, जिसमें कंपनी को अपने सैनिकों और कर्मचारियों के लिए न्यायालय स्थापित करने की अनुमति मिली।
मद्रास, बंबई और कलकत्ता में न्यायालयों की स्थापना:
- 1672: मद्रास में स्टैड्ट कोर्ट (Stadt Court)
- 1683: बंबई में अदालत-ए-नाजिम
- 1726: तीनों प्रेसीडेंसी टाउन में मजिस्ट्रेट कोर्ट और म्यूनिसिपल कोर्ट का गठन
🔷 2. 1726 का चार्टर (Charter of 1726): न्यायिक प्रणाली की नींव
- यह चार्टर एक महत्वपूर्ण विधिक सुधार था जिसने भारत में ब्रिटिश स्टाइल की विधिक प्रणाली की नींव रखी।
- इस चार्टर के द्वारा कलकत्ता, मद्रास और बंबई में “Mayor’s Court” की स्थापना हुई।
- इन न्यायालयों को सिविल और क्रिमिनल मामलों की सुनवाई का अधिकार मिला।
- इसके अलावा एक गवर्नर इन काउंसिल कोर्ट भी स्थापित हुआ, जो अपील की अदालत थी।
🔸 महत्व:
- भारत में पहली बार स्थायी और विधिवत न्यायिक प्रणाली की शुरुआत हुई।
- ब्रिटिश नागरिकों और भारतीयों दोनों पर लागू नियम बनाए गए।
🔷 3. 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट और सुप्रीम कोर्ट की स्थापना
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट:
- यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया था।
- इसके तहत कलकत्ता में 1774 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई।
- यह कोर्ट इंग्लैंड के कानूनों के अनुसार कार्य करता था और सिविल, क्रिमिनल, एडमिरल्टी और इक्विटी अधिकार क्षेत्र रखता था।
महत्वपूर्ण घटनाएँ:
- सुप्रीम कोर्ट और वॉरेन हेस्टिंग्स के काउंसिल के बीच टकराव (केशवचंद्र सेन केस)
- सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र कितना व्यापक होना चाहिए – इस पर लंबे समय तक विवाद रहा।
🔸 महत्व:
- भारत में पहली बार एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई।
- इसने ब्रिटिश कानूनों के प्रभाव को संस्थागत रूप दिया।
🔷 4. चार्टर अधिनियम, 1813 – शिक्षा और विधिक सुधार
- इस अधिनियम ने भारतीयों के लिए अंग्रेजी शिक्षा के दरवाजे खोले।
- ब्रिटिश विधिक व्यवस्था को समझने वाले भारतीय वकीलों की एक नई पीढ़ी उभरने लगी।
- इसने भारतीयों को सरकारी सेवाओं में अवसर देने की शुरुआत की।
🔷 5. चार्टर अधिनियम, 1833 – विधिक सुधार की क्रांति
- इस अधिनियम को “ग्रेट चार्टर ऑफ इंडिया” भी कहा जाता है।
- गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की नियुक्ति (लॉर्ड विलियम बेंटिक – पहले गवर्नर जनरल)
- पहली बार भारत के लिए एक विधि निर्माण संस्था (Law Commission) का गठन किया गया – इसके अध्यक्ष थे लॉर्ड मैकाले।
लॉर्ड मैकाले की भूमिका:
- भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code – IPC) का मसौदा तैयार किया गया (बनकर लागू हुआ – 1860)
- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC), सिविल प्रोसीजर कोड (CPC), एविडेंस एक्ट आदि का मार्ग प्रशस्त किया।
🔸 महत्त्व:
- भारत में एक 統一 (uniform) और लिखित विधिक प्रणाली की नींव रखी गई।
- भारतीय कानून अब न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित होने लगे।
🔷 6. चार्टर अधिनियम, 1853 – विधिक प्रशासन में सुधार
- लॉ कमीशन को स्थायी रूप से स्थापित किया गया।
- विधिक सुधारों की प्रक्रिया को और संस्थागत रूप मिला।
- भारतीयों को न्यायिक सेवा में भागीदारी की अनुमति दी गई।
🔷 7. 1857 की क्रांति और 1858 का भारत सरकार अधिनियम
- 1857 की क्रांति के बाद कंपनी का शासन समाप्त हुआ।
- 1858 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का प्रशासन अपने हाथ में ले लिया।
- गवर्नर जनरल को वायसराय का पद दिया गया।
परिणाम:
- विधिक प्रणाली को और संगठित किया गया।
- न्यायालयों का केंद्रीकरण हुआ।
- भारतीयों को उच्च न्यायालयों में वकालत और न्यायाधीश बनने का अवसर मिला।
🔷 8. उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861
- कलकत्ता, मद्रास और बंबई में हाई कोर्ट्स की स्थापना की गई।
- ये कोर्ट्स सुप्रीम कोर्ट और सदर दीवानी / निज़ामत अदालतों के स्थान पर स्थापित हुए।
- इसमें भारतीयों और यूरोपियों दोनों को वकील और जज बनने का अवसर मिला।
🔷 9. कोड और अधिनियमों की स्थापना (1860–1900)
ब्रिटिश शासन के दौरान अनेक कोड और अधिनियम बनाए गए, जो आज भी भारत की विधिक प्रणाली के आधार हैं:
वर्ष | अधिनियम |
---|---|
1860 | भारतीय दंड संहिता (IPC) |
1861 | आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) |
1872 | भारतीय साक्ष्य अधिनियम |
1872 | भारतीय अनुबंध अधिनियम |
1908 | सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) |
🔸 महत्व:
- इन कानूनों ने भारत में समान विधिक ढांचा तैयार किया।
- व्यक्ति, राज्य और न्यायालयों के बीच संबंध स्पष्ट हुए।
🔷 10. भारतीय वकीलों और न्यायपालिका की भूमिका
- दादा भाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर आदि ने अंग्रेजी विधिक शिक्षा प्राप्त कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
- ब्रिटिश कानूनों के माध्यम से भारतीयों में कानूनी चेतना जागी।
🔷 निष्कर्ष:
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की विधिक प्रणाली में बड़े और गहरे परिवर्तन हुए। भारत में एक लिखित, एकीकृत, पश्चिमी मॉडल पर आधारित विधिक ढांचा विकसित हुआ।
चार्टर अधिनियमों और न्यायिक सुधारों ने भारतीय कानूनों को आधुनिकता की दिशा में अग्रसर किया। लॉ कमीशन, कोड सिस्टम, उच्च न्यायालयों की स्थापना, भारतीय वकीलों की भागीदारी — इन सभी ने भारत को आधुनिक विधिक राष्ट्र बनने की नींव दी।
हालांकि यह विधिक प्रणाली औपनिवेशिक हितों को प्राथमिकता देती थी, परंतु उसी ने आगे चलकर भारत को न्याय, समानता और मानवाधिकारों की दिशा में सजग और सशक्त किया।