शीर्षक: बोधगया महाविहार विवाद: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और अंतिम सुनवाई की घोषणा
प्रस्तावना:
बोधगया, बिहार में स्थित महाबोधि मंदिर (महाविहार) बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है, जहाँ गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह स्थल न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसी महाविहार से संबंधित बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम, 1949 (Bodh Gaya Temple Act, 1949) की वैधता को लेकर दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में वर्षों से लंबित मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई 2025 को अंतिम सुनवाई की तारीख तय करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि अब और कोई स्थगन (adjournment) नहीं दिया जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि:
1949 में पारित बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम के अंतर्गत महाविहार के प्रबंधन के लिए एक समिति गठित की गई थी, जिसमें हिन्दू और बौद्ध दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत महाविहार का प्रशासनिक और धार्मिक नियंत्रण एक संयुक्त प्रबंधन समिति को सौंपा गया, जिसकी अध्यक्षता एक हिन्दू सदस्य करता है।
बौद्ध समुदाय के कुछ वर्गों ने इस अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी। उनका तर्क है कि बौद्ध धर्म के पवित्रतम स्थल का प्रशासन पूर्ण रूप से बौद्धों के हाथों में होना चाहिए, न कि संयुक्त प्रबंधन समिति में बहुमत हिन्दुओं का हो।
सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी और निर्देश:
18 मई 2025 को इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार के वकीलों को 12 वर्षों की देरी पर फटकार लगाई। उन्होंने स्पष्ट कहा:
- “अब और कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा।”
- “मामले को इतने वर्षों तक लटकाना न्याय की अवहेलना है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 29 जुलाई 2025 को अंतिम सुनवाई होगी और सभी पक्षों को उस दिन पूरी तैयारी के साथ उपस्थित रहना होगा।
इस फैसले का संभावित महत्व:
- धार्मिक अधिकारों की व्याख्या:
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह तय करेगा कि क्या किसी धर्मस्थल के प्रशासन में अन्य धर्म के लोगों को शामिल करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है या नहीं। - प्रबंधन संरचना पर प्रभाव:
यदि अधिनियम रद्द होता है, तो बोधगया महाविहार का नियंत्रण पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जा सकता है। - अन्य धार्मिक स्थलों के लिए दृष्टांत:
यह निर्णय अन्य धार्मिक स्थलों के प्रबंधन से जुड़े विवादों पर भी असर डाल सकता है, विशेष रूप से उन स्थलों पर जहां बहुधर्मी प्रबंधन प्रणाली है।
12 साल की देरी: न्याय में बाधा या प्रशासनिक लापरवाही?
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी इस बात को रेखांकित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया में देरी अपने आप में एक अन्याय बन जाती है। इस मामले में बार-बार स्थगन और जवाबों की अनुपलब्धता के चलते निर्णय आने में 12 वर्ष का विलंब हुआ, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के विरुद्ध है।
निष्कर्ष:
बोधगया महाविहार विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का यह कदम धार्मिक स्थलों के प्रशासन और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन का मार्गदर्शन करेगा। यह निर्णय यह भी स्थापित करेगा कि लोकतंत्र में नागरिकों के मौलिक अधिकार कितने प्रभावी हैं, और क्या भारत सरकार की प्रशासनिक लापरवाही के बावजूद न्यायालय समयबद्ध न्याय दे सकता है। अब 29 जुलाई 2025 की तारीख केवल एक सुनवाई नहीं, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था की प्रतिबद्धता की परीक्षा भी है।