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बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: शादी और बच्चे का जन्म POCSO एक्ट के तहत अपराध को समाप्त नहीं करता

बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: शादी और बच्चे का जन्म POCSO एक्ट के तहत अपराध को समाप्त नहीं करता

परिचय

भारतीय न्याय व्यवस्था में बाल यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) एक ऐसा महत्वपूर्ण कानून है जो नाबालिगों को यौन उत्पीड़न, शोषण और दुराचार से सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम इस सिद्धांत पर आधारित है कि नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु) सहमति देने की कानूनी क्षमता नहीं रखते।
हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस सिद्धांत को दोहराते हुए यह स्पष्ट किया कि — यदि कोई नाबालिग लड़की किसी बालिग व्यक्ति के प्रेम में पड़ जाती है, बाद में उससे विवाह कर लेती है, और उनके एक बच्चा भी हो जाता है, तब भी POCSO एक्ट के तहत अपराध स्वतः समाप्त नहीं होता।

यह फैसला न केवल विधिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बताता है कि कानून की दृष्टि में नाबालिग की सहमति वैध नहीं मानी जा सकती, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी बदल क्यों न जाएँ।


मामले की पृष्ठभूमि

मामला महाराष्ट्र के एक जिले से संबंधित था, जहाँ एक युवक पर POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि उसने एक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाए।
बाद में दोनों परिवारों की सहमति से दोनों की शादी कर दी गई और कुछ वर्षों बाद एक बच्चा भी जन्मा। इसके पश्चात आरोपी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि अब जब पीड़िता उसकी पत्नी है और उनके एक संतान भी है, तो उसके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया जाए।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि अब मामला “प्रेम प्रसंग” का है और दोनों के बीच विवाह भी हो चुका है, इसलिए अब अपराध की बात नहीं रह जाती।
वहीं अभियोजन पक्ष (Prosecution) का कहना था कि जब अपराध हुआ, उस समय लड़की नाबालिग थी, और इसलिए POCSO अधिनियम के अंतर्गत अपराध स्वतः सिद्ध होता है।


हाईकोर्ट की पीठ और सुनवाई

यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस उर्मिला जोशी-फालके और जस्टिस नितिन बोरकर की द्वैतीय पीठ के समक्ष आया।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह स्पष्ट किया कि POCSO एक्ट का मूल उद्देश्य नाबालिग बच्चों को यौन अपराधों से बचाना है, न कि बाद में समाजिक परिस्थितियों या पारिवारिक समझौतों के आधार पर अपराध को मिटा देना।

न्यायालय ने कहा कि —

“सिर्फ इसलिए कि नाबालिग लड़की और आरोपी के बीच प्रेम संबंध था, या बाद में उन्होंने विवाह कर लिया, या अब उनके बच्चे हैं, इसका यह अर्थ नहीं कि अपराध समाप्त हो गया।”


अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु रखे, जो आगे के मामलों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होंगे:

  1. नाबालिग की सहमति का कोई मूल्य नहीं:
    अदालत ने कहा कि जब अपराध हुआ, उस समय लड़की 18 वर्ष से कम थी। अतः उसकी “सहमति” का कोई कानूनी मूल्य नहीं है। कानून के अनुसार, नाबालिग की सहमति के आधार पर शारीरिक संबंध अपराध माने जाते हैं।
  2. विवाह और संतान अपराध को वैध नहीं बनाते:
    अदालत ने यह स्पष्ट किया कि विवाह का होना या संतान का जन्म अपराध को “कानूनी मान्यता” नहीं देता। अपराध की स्थिति उस समय के आधार पर तय होती है जब कथित कृत्य हुआ।
  3. POCSO अधिनियम का उद्देश्य बाल सुरक्षा है:
    न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम समाज में बाल संरक्षण के लिए बनाया गया है। यदि अदालतें ऐसे मामलों में नरमी बरतेंगी, तो यह अधिनियम की मूल भावना के विपरीत होगा।
  4. FIR रद्द करने का आधार नहीं:
    अदालत ने यह कहा कि “विवाह” और “बच्चे का जन्म” FIR रद्द करने के वैध आधार नहीं हैं। इसलिए FIR को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी गई।

कानूनी विश्लेषण

POCSO Act, 2012 की धारा 3, 4, 5, और 6 के अंतर्गत किसी नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाना “अपराध” है, चाहे वह सहमति से हो या नहीं।
धारा 2(d) के अनुसार, “child” का अर्थ है — कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है।
इसलिए यदि कोई 17 वर्षीय लड़की किसी 25 वर्षीय पुरुष के साथ सहमति से संबंध रखती है, तो भी यह अपराध की श्रेणी में आता है।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत भी नाबालिग की सहमति को अस्वीकार्य माना गया है।
POCSO अधिनियम इन प्रावधानों को और सख्त बनाता है ताकि नाबालिगों को किसी भी प्रकार के यौन शोषण से बचाया जा सके।


सामाजिक दृष्टिकोण

यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी गहन महत्व रखता है।
भारत में कई बार ग्रामीण या पारंपरिक समाजों में प्रेम संबंधों को विवाह के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है, भले ही लड़की नाबालिग हो।
ऐसे में यह आवश्यक है कि समाज समझे कि कानून और समाज की सोच अलग-अलग हैं।
कानून केवल इस बात को देखता है कि अपराध के समय लड़की की उम्र क्या थी, न कि बाद में क्या हुआ।

यदि अदालतें इन सामाजिक समझौतों को वैध मान लेंगी, तो इसका सीधा दुष्प्रभाव बच्चों की सुरक्षा पर पड़ेगा और यह “POCSO” जैसे कानूनों की प्रभावशीलता को कमजोर करेगा।


पूर्ववर्ती मामलों से तुलना

इससे पहले भी कई हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर कठोर रुख अपनाया है।

  • केरल हाईकोर्ट (2022):
    अदालत ने कहा था कि विवाह के बावजूद यदि अपराध के समय पीड़िता नाबालिग थी, तो आरोपी को दंड से नहीं बख्शा जा सकता।
  • दिल्ली हाईकोर्ट (2021):
    अदालत ने माना कि POCSO का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा है, न कि सामाजिक रिश्तों को वैध ठहराना।
  • सुप्रीम कोर्ट (Independent Thought v. Union of India, 2017):
    इस ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने कहा था कि बाल विवाह के बाद भी यदि लड़की नाबालिग है, तो उसके साथ यौन संबंध अपराध माना जाएगा।

इन सभी निर्णयों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका POCSO कानून के सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करती।


हाईकोर्ट का अंतिम आदेश

बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया कि:

“यह अदालत ऐसे किसी भी आधार को स्वीकार नहीं कर सकती जिससे POCSO अधिनियम की मूल भावना कमजोर पड़े। विवाह या बच्चे का जन्म, उस समय किए गए अपराध की गंभीरता को समाप्त नहीं कर सकते।”

अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों में FIR रद्द करना न केवल कानून के खिलाफ होगा, बल्कि समाज में गलत संदेश भी भेजेगा।


फैसले का प्रभाव

यह फैसला कई स्तरों पर प्रभावशाली है:

  1. कानूनी स्पष्टता:
    इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि विवाह या पारिवारिक स्थिति, POCSO अपराधों में कोई बचाव नहीं है।
  2. बाल संरक्षण की मजबूती:
    यह निर्णय POCSO अधिनियम की भावना को और सशक्त बनाता है तथा बच्चों के अधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता देता है।
  3. सामाजिक जागरूकता:
    इससे समाज में यह संदेश जाता है कि नाबालिगों के साथ संबंध बनाना या शादी करना, चाहे सहमति से हो, कानूनन अपराध है।
  4. भविष्य के मामलों के लिए मार्गदर्शन:
    अब निचली अदालतों को यह स्पष्ट दिशा मिल गई है कि ऐसे मामलों में किसी प्रकार की नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए।

निष्कर्ष

बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय न्यायपालिका की उस संवेदनशील और दृढ़ सोच का उदाहरण है जो बच्चों की सुरक्षा को सर्वोपरि मानती है।
यह निर्णय इस बात का संकेत है कि कानून भावनाओं, रिश्तों या सामाजिक दबाव से ऊपर है
POCSO एक्ट का उद्देश्य केवल अपराधियों को दंडित करना नहीं, बल्कि एक ऐसा वातावरण बनाना है जहाँ हर बच्चा सुरक्षित महसूस करे।

यह फैसला न केवल न्यायिक दृष्टि से सही है, बल्कि यह समाज को एक मजबूत संदेश भी देता है —

“बच्चों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों न हों।”