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बैंकिंग कानून का परिचय और संरचना

बैंकिंग कानून का परिचय और संरचना

बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 (Banking Regulation Act, 1949)

परिचय :
भारत में बैंकिंग प्रणाली को संगठित, नियंत्रित और सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 बनाया गया। प्रारंभ में इसे बैंकिंग कंपनियां अधिनियम, 1949 कहा गया था, बाद में इसका नाम बदलकर बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 कर दिया गया। यह अधिनियम 16 मार्च 1949 को लागू हुआ और पूरे भारत में लागू होता है।


मुख्य उद्देश्य :

  1. बैंकिंग व्यवसाय को नियमित और नियंत्रित करना।
  2. जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना।
  3. बैंकों के लाइसेंस, संचालन और निगरानी की व्यवस्था करना।
  4. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को बैंकों पर नियंत्रण और पर्यवेक्षण का अधिकार देना।
  5. बैंकिंग कंपनियों के विलय, पुनर्गठन और परिसमापन (liquidation) से संबंधित प्रावधान करना।

प्रमुख प्रावधान :

  1. परिभाषा (धारा 5) – “बैंकिंग” का अर्थ है – जनता से जमा स्वीकार करना, जो मांग पर या अन्यथा निकाले जा सकें और जिनका उपयोग उधार देने या निवेश करने में किया जाए।
  2. लाइसेंस (धारा 22) – कोई भी बैंक बिना RBI की अनुमति के बैंकिंग व्यवसाय नहीं कर सकता।
  3. न्यूनतम पूंजी (Capital Requirement) – बैंकिंग कंपनियों के लिए न्यूनतम पूंजी और रिजर्व का प्रावधान किया गया है।
  4. कैश रिज़र्व (धारा 42) – अनुसूचित बैंकों को RBI के पास नकद आरक्षित निधि (CRR) रखना आवश्यक है।
  5. लेखापरीक्षण (Audit) – प्रत्येक बैंक का वार्षिक ऑडिट अनिवार्य है।
  6. नियंत्रण अधिकार (Control of RBI)
    • शाखाएं खोलने की अनुमति।
    • बैंकिंग संचालन की जाँच और निरीक्षण।
    • निदेशक मंडल की नियुक्तियों पर नियंत्रण।
    • वित्तीय अनुशासन और सॉल्वेंसी बनाए रखना।
  7. विलय और परिसमापन (Merger & Winding up) – RBI और केंद्र सरकार को बैंकों के विलय या बंद करने का अधिकार।

महत्व :

  • यह अधिनियम भारतीय बैंकिंग प्रणाली की रीढ़ है।
  • जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करता है।
  • वित्तीय स्थिरता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
  • बैंकों के कार्यों में अनुशासन लाता है।
  • RBI को एक केंद्रीय नियामक की भूमिका देता है।

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का नियंत्रण और भूमिकाएँ

परिचय :
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भारत का केन्द्रीय बैंक है, जिसकी स्थापना 1935 में RBI Act, 1934 के अंतर्गत हुई थी। RBI भारत की मौद्रिक नीति (Monetary Policy) और बैंकिंग प्रणाली का नियामक है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 ने इसे और अधिक अधिकार दिए जिससे यह बैंकों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रख सके।


1. नियंत्रण (Control Functions of RBI)

RBI भारतीय बैंकिंग प्रणाली पर निम्न प्रकार से नियंत्रण करता है –

  1. लाइसेंसिंग नियंत्रण
    • कोई भी बैंक बिना RBI की अनुमति के बैंकिंग कार्य नहीं कर सकता (धारा 22, बैंकिंग नियमन अधिनियम)।
    • नई शाखा खोलने, विलय करने अथवा किसी बैंक को बंद करने का अधिकार RBI को है।
  2. पूंजी और रिज़र्व पर नियंत्रण
    • RBI यह सुनिश्चित करता है कि बैंक न्यूनतम पूंजी और आरक्षित निधि (CRR, SLR) रखें।
  3. क्रेडिट नियंत्रण (Credit Control)
    • RBI ब्याज दरें, नकद आरक्षित अनुपात (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात (SLR), रेपो रेट आदि तय कर अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता नियंत्रित करता है।
  4. निरीक्षण और पर्यवेक्षण
    • RBI बैंकों की नियमित जाँच करता है ताकि उनकी वित्तीय स्थिति और जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित रहें।
  5. निदेशकों और प्रबंधन पर नियंत्रण
    • RBI के पास यह अधिकार है कि यदि किसी बैंक का प्रबंधन अनुचित कार्य कर रहा है तो उसे हटाने या सुधारने के आदेश दे।
  6. विलय और परिसमापन (Merger & Liquidation)
    • RBI बैंकों के पुनर्गठन और विलय की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

2. भूमिकाएँ (Roles of RBI)

  1. मौद्रिक प्राधिकरण (Monetary Authority)
    • महँगाई नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने हेतु मौद्रिक नीति बनाता और लागू करता है।
  2. वित्तीय प्रणाली का नियामक (Regulator of Financial System)
    • बैंक, NBFC और अन्य वित्तीय संस्थाओं पर निगरानी रखता है।
  3. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (Foreign Exchange Management)
    • RBI FEMA Act, 1999 के अंतर्गत विदेशी मुद्रा लेन-देन और रुपये की विनिमय दर को नियंत्रित करता है।
  4. भुगतान और निपटान प्रणाली का संचालक
    • NEFT, RTGS, UPI जैसे डिजिटल भुगतान तंत्र को विकसित और नियंत्रित करता है।
  5. नोट जारी करने का अधिकार
    • RBI को 2 रुपये से ऊपर की सभी मुद्रा जारी करने का विशेषाधिकार है।
  6. अंतिम ऋणदाता (Lender of Last Resort)
    • आर्थिक संकट में RBI बैंकों को आपातकालीन ऋण देता है।
  7. उपभोक्ता संरक्षण
    • बैंकिंग लोकपाल योजना (Banking Ombudsman) के माध्यम से उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण करता है।

निष्कर्ष :

RBI न केवल मुद्रा का संरक्षक है बल्कि संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली का नियामक और नियंत्रक भी है। यह जमाकर्ताओं की सुरक्षा, वित्तीय स्थिरता, मुद्रास्फीति नियंत्रण और डिजिटल बैंकिंग के विकास में केंद्रीय भूमिका निभाता है।

बैंकिंग कंपनियों के प्रकार और उनके कार्य

परिचय :
बैंकिंग कंपनी वह संस्था है जो जनता से धन जमा लेकर ऋण देने, निवेश करने और अन्य वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराने का कार्य करती है। बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(ब) के अनुसार “बैंकिंग” का अर्थ है – जनता से जमा स्वीकार करना जिन्हें मांग पर या अन्यथा निकाला जा सके और जिनका उपयोग ऋण देने या निवेश करने में हो।


1. बैंकिंग कंपनियों के प्रकार (Types of Banking Companies)

  1. वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks)
    • ये लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करते हैं।
    • दो प्रकार –
      (i) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (जैसे – SBI, PNB)
      (ii) निजी क्षेत्र के बैंक (जैसे – HDFC, ICICI)
  2. सहकारी बैंक (Co-operative Banks)
    • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सहकारी समितियों के माध्यम से कार्य करते हैं।
    • किसानों, लघु उद्योगों और व्यापारियों को ऋण उपलब्ध कराते हैं।
  3. विकास बैंक (Development Banks)
    • औद्योगिक और कृषि विकास के लिए दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराते हैं।
    • उदाहरण – NABARD, SIDBI, EXIM Bank।
  4. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks – RRBs)
    • ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों के विकास हेतु स्थापित।
    • उदाहरण – प्रथमा बैंक, केरल ग्रामीण बैंक।
  5. विदेशी बैंक (Foreign Banks)
    • भारत में विदेशी कंपनियों के बैंक जो शाखाएँ खोलते हैं।
    • उदाहरण – Citi Bank, HSBC, Standard Chartered।
  6. निवेश बैंक (Investment Banks)
    • मुख्यतः पूँजी बाजार से संबंधित सेवाएँ जैसे – मर्चेंट बैंकिंग, अंडरराइटिंग, शेयर इश्यू।
  7. विशेषीकृत बैंक (Specialized Banks)
    • विशेष उद्देश्य के लिए कार्य करते हैं जैसे – EXIM Bank (निर्यात-आयात), NABARD (कृषि विकास)।

2. बैंकिंग कंपनियों के कार्य (Functions of Banking Companies)

(A) प्राथमिक कार्य (Primary Functions)

  1. जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits) – बचत खाता, चालू खाता, सावधि जमा आदि।
  2. ऋण और अग्रिम देना (Granting Loans & Advances) – व्यक्तिगत ऋण, व्यावसायिक ऋण, गृह ऋण।
  3. क्रेडिट सृजन (Credit Creation) – ऋण देने की प्रक्रिया से अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा बढ़ाना।

(B) द्वितीयक कार्य (Secondary Functions)

  1. भुगतान एवं निपटान सेवाएँ – चेक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, NEFT, RTGS, UPI।
  2. निवेश सेवाएँ – सरकारी प्रतिभूतियाँ, शेयर, डिबेंचर में निवेश।
  3. मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा – लॉकर सुविधा।
  4. मर्चेंट बैंकिंग सेवाएँ – नए उद्यमों को पूंजी जुटाने में सहायता।
  5. विदेशी मुद्रा लेन-देन – निर्यात-आयात हेतु विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराना।

(C) सामाजिक एवं विकासात्मक कार्य (Social & Developmental Functions)

  1. ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराना।
  2. लघु उद्योगों और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
  3. वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) को बढ़ावा देना।
  4. सरकारी योजनाओं (जनधन योजना, मुद्रा योजना) को लागू करना।

निष्कर्ष :

बैंकिंग कंपनियाँ न केवल धन जमा और ऋण वितरण करती हैं बल्कि आर्थिक विकास, ग्रामीण प्रगति, औद्योगिक वृद्धि और सामाजिक कल्याण में भी योगदान देती हैं। यही कारण है कि बैंकिंग कंपनियाँ देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं।


1. वाणिज्यिक बैंक क्या हैं और इनके कार्य बताइए।

वाणिज्यिक बैंक लाभ कमाने के उद्देश्य से स्थापित बैंक होते हैं। ये जनता से जमा स्वीकार करते हैं और ऋण प्रदान करते हैं। इनके मुख्य कार्यों में चालू खाता, बचत खाता, सावधि जमा स्वीकार करना, व्यापार और उद्योगों को ऋण देना, क्रेडिट कार्ड एवं डेबिट कार्ड जैसी सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है। भारत में वाणिज्यिक बैंक दो प्रकार के हैं – सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जैसे SBI, PNB और निजी क्षेत्र के बैंक जैसे HDFC, ICICI।


2. सहकारी बैंकों की विशेषताएँ क्या हैं?

सहकारी बैंक सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित होते हैं और इनका उद्देश्य लाभ कमाने से अधिक सेवा प्रदान करना होता है। ये विशेष रूप से किसानों, लघु उद्यमियों और ग्रामीण जनता को ऋण उपलब्ध कराते हैं। सहकारी बैंक ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कार्य करते हैं और छोटे स्तर के लेन-देन को बढ़ावा देते हैं।


3. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) का उद्देश्य बताइए।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) 1975 में स्थापित किए गए थे ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध हों। इनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण विकास, कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प और लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता देना है। उदाहरण – प्रथमा बैंक, केरल ग्रामीण बैंक।


4. विकास बैंकों की भूमिका पर प्रकाश डालिए।

विकास बैंक दीर्घकालिक ऋण प्रदान करने वाले बैंक होते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य औद्योगिक, कृषि और अवसंरचना विकास को प्रोत्साहन देना है। भारत में प्रमुख विकास बैंकों में NABARD (कृषि विकास), SIDBI (लघु उद्योग विकास) और EXIM Bank (निर्यात-आयात) शामिल हैं।


5. विदेशी बैंक (Foreign Banks) क्या होते हैं?

विदेशी बैंक वे बैंक होते हैं जिनका मुख्यालय किसी अन्य देश में होता है, लेकिन उनकी शाखाएँ भारत में संचालित होती हैं। ये प्रायः कॉर्पोरेट ग्राहकों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उच्च-आय वर्ग के ग्राहकों को सेवाएँ प्रदान करते हैं। उदाहरण – HSBC, Citi Bank, Standard Chartered।


6. निवेश बैंक (Investment Banks) की विशेष भूमिका क्या है?

निवेश बैंक पूँजी बाजार से संबंधित सेवाएँ प्रदान करते हैं। ये कंपनियों को पूँजी जुटाने, शेयर बाजार में निवेश कराने, अंडरराइटिंग, विलय और अधिग्रहण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। भारत में कई निजी बैंक और मर्चेंट बैंक इस भूमिका का निर्वहन करते हैं।


7. बैंकिंग कंपनियों के प्राथमिक कार्य कौन-कौन से हैं?

बैंकिंग कंपनियों के प्राथमिक कार्यों में जमा स्वीकार करना, ऋण और अग्रिम प्रदान करना तथा क्रेडिट सृजन करना शामिल है। बैंक बचत खाता, चालू खाता और सावधि जमा जैसी योजनाओं के तहत जनता से धन स्वीकार करते हैं और उधारकर्ताओं को ऋण देकर अर्थव्यवस्था में धन प्रवाह सुनिश्चित करते हैं।


8. बैंकिंग कंपनियों के द्वितीयक कार्य समझाइए।

बैंकिंग कंपनियाँ अपने ग्राहकों को विभिन्न द्वितीयक सेवाएँ भी देती हैं जैसे – चेक भुगतान, डेबिट/क्रेडिट कार्ड, NEFT, RTGS, लॉकर सुविधा, विदेशी मुद्रा विनिमय, मर्चेंट बैंकिंग और निवेश सेवाएँ। ये कार्य ग्राहकों को आधुनिक बैंकिंग से जोड़ते हैं और व्यापार में आसानी प्रदान करते हैं।


9. बैंकिंग कंपनियों के सामाजिक कार्य क्या हैं?

बैंकिंग कंपनियाँ समाज कल्याण के लिए कई कार्य करती हैं जैसे – ग्रामीण और कृषि क्षेत्रों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराना, लघु उद्योगों और स्वरोज़गार को प्रोत्साहित करना, सरकारी योजनाओं जैसे जनधन योजना और मुद्रा योजना को लागू करना तथा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना।


10. बैंकिंग कंपनियाँ आर्थिक विकास में कैसे सहायक हैं?

बैंकिंग कंपनियाँ पूँजी निर्माण और निवेश को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास में सहायक होती हैं। ये न केवल व्यापार और उद्योगों को ऋण प्रदान करती हैं बल्कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करती हैं। साथ ही, आधुनिक भुगतान प्रणाली और डिजिटल बैंकिंग से ये देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाती हैं।