“बुलडोज़र शासन: न्यायपालिका का अपमान और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन — सीजेआई बी.आर. गवई का दृष्टिकोण”
परिचय
भारतीय संविधान लोकतंत्र की आधारशिला है। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय और शासन की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, और इसका विस्तार सुप्रीम कोर्ट के अनेक निर्णयों में हुआ है।
सीजेआई बी.आर. गवई ने हाल ही में एक ऐतिहासिक टिप्पणी की है:
“सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती। बुलडोज़र शासन संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।”
यह कथन न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठाता है, बल्कि शासन प्रणाली, कानून और मानवाधिकार के बीच संतुलन पर भी एक गहन बहस शुरू करता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि बुलडोज़र शासन क्या है, इसका अनुच्छेद 21 से क्या संबंध है, और सीजेआई के विचार का कानूनी और नैतिक महत्व क्या है।
1. बुलडोज़र शासन: परिभाषा और घटनाक्रम
“बुलडोज़र शासन” शब्द हाल के वर्षों में एक राजनीतिक और कानूनी विवाद बन गया है। इसका अर्थ है — ऐसे कार्यवाही का तरीका जिसमें बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के सरकारी मशीनरी द्वारा जबरन संपत्ति ध्वस्त करना या कार्रवाई करना।
अक्सर यह कार्रवाई अपराध या कानून उल्लंघन के आरोपी के खिलाफ की जाती है, लेकिन इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं होता। यह प्रक्रिया का उल्लंघन है क्योंकि:
- आरोपी को सुनवाई का अधिकार नहीं दिया जाता।
- निर्णय बिना मुकदमे और न्यायिक प्रक्रिया के लिया जाता है।
- कार्रवाई सरकारी निर्णय लेने की शक्ति से की जाती है, जिसमें न्यायपालिका की भूमिका समाप्त हो जाती है।
ऐसा शासन “एक साथ जज, जूरी और जल्लाद” बनने जैसा है, क्योंकि यह सरकार को तीन अलग-अलग भूमिकाओं का संयोजन देता है — जांचकर्ता, निर्णयकर्ता और कार्यान्वयनकर्ता।
2. अनुच्छेद 21 और उसका महत्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 स्पष्ट रूप से कहता है:
“किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता और जीवन से नहीं छीना जा सकता है, जब तक कि विधि द्वारा ऐसा न किया गया हो।”
इसका मतलब है कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता या जीवन को केवल तभी छीनना संभव है जब:
- कानून द्वारा अनुमति दी गई हो,
- उचित प्रक्रिया (Due Process) का पालन किया गया हो,
- न्यायिक समीक्षा संभव हो।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत ‘न्याय की प्रक्रिया’ को व्यापक रूप में परिभाषित किया है। इसमें शामिल है:
- उचित सुनवाई का अधिकार
- निष्पक्ष न्याय
- स्वतन्त्र न्यायपालिका
- विधि द्वारा पूर्व निर्धारित प्रक्रिया का पालन
अगर बुलडोज़र शासन बिना न्यायिक प्रक्रिया के कार्य करता है, तो यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
3. सीजेआई बी.आर. गवई का दृष्टिकोण
सीजेआई बी.आर. गवई ने बार-बार कहा है कि लोकतंत्र में कानून का शासन सर्वोपरि है। उनका यह विचार न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विधि के शासन को संरक्षित करने का प्रयास है।
उनका कथन — “सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती” — संविधान की मूल भावना को याद दिलाता है। इसका अर्थ यह है कि न्याय का निर्णय न्यायपालिका का कार्य है, और सरकार का कार्य कानून का पालन सुनिश्चित करना है।
सीजेआई का यह दृष्टिकोण संविधान के अनुच्छेद 21 के संरक्षण में न्याय प्रक्रिया के महत्व को दर्शाता है। उनका कहना है कि यदि सरकार खुद जांच करती है, निर्णय लेती है और तुरंत कार्रवाई करती है, तो यह संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करता है।
4. बुलडोज़र शासन और कानून का शासन
कानून का शासन (Rule of Law) यह सिद्धांत है कि सभी व्यक्तियों और संस्थाओं को कानून के अधीन होना चाहिए, चाहे वह सरकार ही क्यों न हो।
बुलडोज़र शासन इस सिद्धांत के विपरीत है क्योंकि इसमें:
- कानून की प्रक्रिया का पालन नहीं होता
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन होता है
- शक्तियों का दुरुपयोग होता है
सीजेआई बी.आर. गवई का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई संविधान की धारा को कमजोर करती है और लोकतंत्र को खतरे में डालती है।
5. न्यायपालिका की भूमिका और बुलडोज़र शासन का विरोध
न्यायपालिका का मुख्य कार्य है:
- स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय देना
- कानून और संविधान की रक्षा करना
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना
जब सरकार खुद जज, जूरी और जल्लाद बन जाती है, तो यह न्यायपालिका की भूमिका को खत्म कर देता है। इसका सीधा असर न्याय और संविधान पर पड़ता है।
सीजेआई के विचार में बुलडोज़र शासन एक प्रकार की तानाशाही की शुरुआत है, जिसमें कानून की जगह सत्ता की इच्छा चलती है।
6. अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: कानूनी दृष्टि
भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में स्पष्ट है कि:
- किसी भी कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन होना अनिवार्य है।
- बिना न्यायिक सुनवाई और कानूनी प्रक्रिया के जीवन या स्वतंत्रता छीनना संविधान के खिलाफ है।
बुलडोज़र शासन में अक्सर आरोपी को न्यायिक सुनवाई का अवसर नहीं मिलता। यह न केवल अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है बल्कि यह ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता’ पर भी आघात है।
7. बुलडोज़र शासन के सामाजिक प्रभाव
इस प्रकार के शासन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है:
- भय और असुरक्षा का माहौल
- न्याय में विश्वास का नुकसान
- सामाजिक असमानता और मनमानी की संभावना बढ़ना
- संवैधानिक मूल्यों का क्षरण
सीजेआई का मानना है कि संविधान की रक्षा करना न्यायपालिका का धर्म है, और बुलडोज़र शासन इसे खतरे में डालता है।
8. अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से बुलडोज़र शासन
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून भी उचित प्रक्रिया के अधिकार की पुष्टि करता है। संयुक्त राष्ट्र की सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा (UDHR) और अंतरराष्ट्रीय संधियाँ सभी राज्य से उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने का आग्रह करती हैं।
बुलडोज़र शासन इन मूलभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करता है।
9. निष्कर्ष: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की रक्षा
सीजेआई बी.आर. गवई का कथन — “सरकार एक साथ जज, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती” — एक चेतावनी है। यह संविधान की मूल भावना को याद दिलाता है कि लोकतंत्र में सत्ता का संतुलन जरूरी है।
अनुच्छेद 21 केवल जीवन की रक्षा नहीं करता, बल्कि न्याय प्रक्रिया का संरक्षण भी करता है। बुलडोज़र शासन इस अधिकार का हनन करता है और लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है।
इसलिए, संविधान और न्यायपालिका की रक्षा के लिए बुलडोज़र शासन की प्रथा को समाप्त करना आवश्यक है। न्याय, स्वतंत्रता और कानून का शासन ही लोकतंत्र का असली आधार है।
अंतिम विचार
सीजेआई बी.आर. गवई का दृष्टिकोण सिर्फ कानूनी विचार नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का संरक्षण है। बुलडोज़र शासन के खिलाफ यह चेतावनी हमें याद दिलाती है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 का अधिकार और कानून का शासन लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य हैं।
अगर हम इन मूल्यों को खो देते हैं, तो केवल कानून नहीं, बल्कि लोकतंत्र भी खतरे में पड़ जाएगा।