बीमा कानून: प्रमुख धाराएँ और महत्वपूर्ण प्रावधान 

बीमा कानून: प्रमुख धाराएँ और महत्वपूर्ण प्रावधान 

प्रस्तावना (Introduction):
बीमा (Insurance) एक ऐसी विधिक व्यवस्था है, जिसके माध्यम से अनिश्चित भविष्य की घटनाओं से उत्पन्न जोखिम को साझा किया जाता है। भारत में बीमा क्षेत्र का नियमन मुख्यतः बीमा अधिनियम, 1938 (Insurance Act, 1938) और बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (IRDA Act, 1999) के तहत किया जाता है। इसके अतिरिक्त, जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 और जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (नेशनलाइजेशन) अधिनियम, 1972 भी महत्वपूर्ण हैं।


1. बीमा अधिनियम, 1938 की प्रमुख धाराएँ और प्रावधान

धारा 2 – परिभाषाएँ (Definitions):
यह धारा बीमा, बीमाकर्ता, जीवन बीमा, पुनर्बीमा, समुद्री बीमा, स्वास्थ्य बीमा आदि की परिभाषा देती है।

धारा 3 – बीमा व्यवसाय के लिए पंजीकरण (Registration of Insurers):
किसी भी कंपनी को बीमा व्यवसाय करने के लिए बीमा नियामक (IRDAI) से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य है।

धारा 6 – न्यूनतम पूंजी आवश्यकताएँ:
किसी बीमा कंपनी को न्यूनतम पूंजी के रूप में 100 करोड़ रुपये (जीवन या सामान्य बीमा) तथा 200 करोड़ रुपये (पुनर्बीमा) रखने होते हैं।

धारा 14 – बीमा फंड:
यह जीवन बीमा कंपनियों को एक बीमा फंड बनाए रखने की बाध्यता देती है जिससे दावों का भुगतान किया जा सके।

धारा 27 – निवेश से संबंधित प्रावधान:
यह धारा बीमा कंपनियों को उनके फंड का एक निश्चित प्रतिशत सरकारी प्रतिभूतियों और स्वीकृत निवेशों में लगाने का निर्देश देती है।

धारा 40 – कमीशन का विनियमन:
यह एजेंटों को दिए जाने वाले कमीशन की सीमा निर्धारित करती है।

धारा 42 – बीमा एजेंट का लाइसेंस:
बीमा एजेंट को पंजीकरण और लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है।

धारा 64-यू – प्रीमियम दरों का निर्धारण:
यह बीमा प्रीमियम के निर्धारण को नियंत्रित करती है, विशेष रूप से गैर-जीवन बीमा में।


2. बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (IRDA Act, 1999)

IRDA की स्थापना:
इस अधिनियम के तहत भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की स्थापना की गई, जो भारत में बीमा क्षेत्र का नियामक निकाय है।

प्रमुख प्रावधान:

  • धारा 14 – प्राधिकरण की शक्तियाँ और कार्य:
    • बीमाकर्ताओं का पंजीकरण और विनियमन।
    • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा।
    • बीमा कंपनियों की वित्तीय स्थिति की निगरानी।
    • बीमा एजेंटों और ब्रोकरों का विनियमन।
    • बीमा उत्पादों की स्वीकृति।
  • धारा 26 – विनियमन बनाना:
    IRDA को बीमा विनियमन बनाने का अधिकार प्राप्त है।

3. जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956

इस अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार ने सभी निजी जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर LIC की स्थापना की।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • LIC का एकाधिकार (अब समाप्त)।
  • निवेशकों और बीमाधारकों के हितों की रक्षा।
  • सरकार द्वारा पूंजी और गारंटी।

4. जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (नेशनलाइजेशन) अधिनियम, 1972

  • गैर-जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण।
  • सार्वजनिक क्षेत्र की 4 जनरल इंश्योरेंस कंपनियों की स्थापना।
  • अब यह क्षेत्र भी उदारीकरण के तहत निजी कंपनियों के लिए खुला है।

5. बीमा क्षेत्र में अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान

(i) बीमा अनुबंध की विशेषताएँ:

  • विशुद्ध अनुबंध (Contract of Utmost Good Faith)
  • प्रस्ताव और स्वीकृति (Proposal and Acceptance)
  • बीमाकर्ता और बीमाधारक का वैध संबंध
  • हानि की सिद्धि (Proof of Loss)
  • प्रीमियम का भुगतान आवश्यक

(ii) द्वैतीय बीमा और पुनर्बीमा:

  • द्वैतीय बीमा (Double Insurance): एक ही संपत्ति पर एक से अधिक बीमा।
  • पुनर्बीमा (Reinsurance): बीमा कंपनी द्वारा अपने जोखिम का पुनः बीमा।

(iii) दावे का निपटान (Settlement of Claims):
बीमाधारक द्वारा दावे के लिए दस्तावेज़ जमा करने पर, बीमाकर्ता को एक निश्चित अवधि में दावा निपटाना होता है।

(iv) सामाजिक सुरक्षा और बीमा:
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ जैसे – प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना आदि, सामाजिक बीमा की अवधारणा को बढ़ावा देती हैं।


निष्कर्ष (Conclusion):

भारत में बीमा कानून और इससे संबंधित धाराएँ बीमाधारकों की सुरक्षा और बीमा कंपनियों के उचित संचालन को सुनिश्चित करती हैं। बीमा अधिनियम, 1938 और IRDA अधिनियम, 1999 इसके मूल स्तंभ हैं। आज के समय में, बीमा केवल जोखिम प्रबंधन का साधन ही नहीं बल्कि वित्तीय समावेशन और सामाजिक सुरक्षा का सशक्त माध्यम भी बन चुका है।