“बिलकिस बानो बनाम भारत संघ (W.P. (Crl.) No. 491/2022): सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्याय, कानून के शासन और पीड़िता के अधिकारों की पुनर्स्थापना”
परिचय:
बिलकिस बानो बनाम भारत संघ (Bilkis Yakub Rasool vs Union of India) मामला भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल कानून के शासन (Rule of Law) की पुष्टि की, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि पीड़िता के अधिकार किसी राजनीतिक या प्रशासनिक निर्णय से उपेक्षित नहीं किए जा सकते। यह मामला 2002 गुजरात दंगों के दौरान हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या से संबंधित है, जिसमें 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, परंतु उन्हें 2022 में गुजरात सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो, जो उस समय गर्भवती थीं, के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके परिवार के 14 सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी गई। इस जघन्य अपराध के लिए 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए 2008 में विशेष सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा दी थी।
हालांकि, 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने इन 11 दोषियों को “अच्छे आचरण” के आधार पर रिहा कर दिया, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया और पीड़िता ने इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें:
- गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई माफी (remission) को अवैध और मनमाना करार दिया गया।
- यह स्पष्ट किया कि गुजरात सरकार को इस मामले में माफी देने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि यह मामला महाराष्ट्र में स्थानांतरित किया गया था और फैसला भी वहीं हुआ था।
- अदालत ने कहा कि दोषियों की रिहाई कानून के शासन और न्याय की मूल अवधारणा के विरुद्ध है।
- सभी दोषियों को फिर से जेल में लौटने का आदेश दिया गया।
मुख्य टिप्पणियाँ:
- “कानून सबके लिए समान है और पीड़िता के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।”
- “माफी देने का निर्णय प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण, अनुचित और कानून के विपरीत था।”
- “यह मामला केवल व्यक्तिगत न्याय का नहीं, बल्कि समाज में न्याय और कानून की गरिमा की बहाली का है।”
महत्वपूर्ण प्रभाव:
- यह निर्णय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी नैतिक शक्ति का एक उदाहरण है।
- यह मामले इस बात की मिसाल बनता है कि कैसे न्यायालय, राजनीतिक निर्णयों की वैधानिकता की समीक्षा कर सकते हैं।
- यह फैसला पीड़ितों के अधिकारों की सर्वोच्चता को स्थापित करता है और माफी की शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध एक मजबूत संदेश देता है।
निष्कर्ष:
बिलकिस बानो बनाम भारत संघ मामला भारतीय न्याय व्यवस्था की नैतिक प्रतिबद्धता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की एक सशक्त अभिव्यक्ति है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि न्याय केवल निर्णय देने का नाम नहीं है, बल्कि यह समाज में पीड़ितों की गरिमा और अधिकारों की पुनर्स्थापना का माध्यम भी है। यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए कानून की सर्वोच्चता और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की एक स्थायी मिसाल बनेगा।