“बिना सास-ससुर वाला पति चाहिए तो बायोडाटा में स्पष्ट लिखें: संयुक्त परिवार प्रणाली, वैवाहिक अपेक्षाओं और वैवाहिक क्रूरता पर बरेली फैमिली कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी”
भूमिका — विवाह: संस्था, समझौता या अपेक्षाओं का टकराव
भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं बल्कि दो परिवारों का संगम माना जाता है। जहां पश्चिमी देशों में विवाह एक व्यक्तिगत अनुबंध (Personal Contract) की तरह देखा जाता है, वहीं भारतीय विचार में यह धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। बदलते समय, बढ़ती शहरी सोच, करियर आधारित प्राथमिकताएं, परमाणु परिवार का बढ़ता चलन और निजी स्वतंत्रता के दायरे ने विवाह की परिभाषा को आधुनिक और जटिल दोनों बना दिया है।
इसी बदलते परिदृश्य में बरेली फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी की टिप्पणी सामने आई—
“यदि किसी महिला को ऐसा पति चाहिए जिसके माता-पिता न हों, तो उसे शादी के बायोडेटा में पहले ही लिख देना चाहिए।”
यह टिप्पणी केवल एक कथन नहीं, बल्कि संयुक्त परिवार प्रणाली, वैवाहिक अधिकार–कर्तव्य, अपेक्षाओं की पारदर्शिता और वैवाहिक क्रूरता की परिभाषा पर गहरा सामाजिक–कानूनी विमर्श खोलती है।
मामले की पृष्ठभूमि — विवाह, असहजता और अलग रहने की मांग
- कारोबारी शुभाशीष सिंह, निवासी बदायूं
- विवाह — वर्ष 2019
- पत्नी — दीक्षा वर्मा, प्राथमिक स्कूल में अध्यापिका
- विवाद — शादी के तुरंत बाद संयुक्त परिवार में रहने से असहमति
- पत्नी की मांग — अलग घर लेकर रहने की शर्त
- पति की असहमति — माता-पिता को छोड़ना उचित नहीं
- 6 अक्टूबर 2020 — दीक्षा मायके वापस चली गई
- पति पर दबाव — “माता-पिता से अलग रहें, तभी साथ रह सकती हूँ”
महिला ने अदालत में पति पर मानसिक प्रताड़ना, असहयोग, असुरक्षा और उपेक्षा का आरोप लगाया। लेकिन अदालत ने साक्ष्यों से पाया कि मुख्य विवाद पत्नी की संयुक्त परिवार से चिढ़, दूरी और अनिच्छा थी, न कि पति द्वारा प्रताड़ना।
न्यायालय की टिप्पणी — सीधे शब्दों में कठोर, पर सामाजिक रूप से विचारणीय
फैसले में न्यायाधीश ने कहा:
“जो महिलाएँ शादी के बाद संयुक्त परिवार को बोझ मानती हैं, उन्हें अपनी प्राथमिकताएँ बायोडाटा में स्पष्ट लिखनी चाहिए। विवाह पारदर्शिता पर आधारित हो, छल-कपट पर नहीं।”
कहने का आशय —
अगर किसी महिला या पुरुष की विवाह से पहले से यह स्पष्ट प्राथमिकता है कि वे माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहते, तो यह जानकारी गोपनीय रखना न केवल धोखा है बल्कि विवाह के बाद विवाद का प्रमुख कारण बन सकता है।
क्या पति से माता-पिता से अलग होने की मांग उचित है?
मुद्दा है इच्छा बनाम दबाव —
यदि पति स्वयं की इच्छा से माता-पिता से अलग रहे
यह उसका व्यक्तिगत और वैवाहिक निर्णय है।
लेकिन विवाह के बाद पति/पत्नी पर दबाव डालना —
“माता-पिता छोड़ो, तब ही साथ रहूँगी”, कानून में इसे वैवाहिक क्रूरता (Matrimonial Cruelty) की श्रेणी में माना गया है, क्योंकि—
- यह भावनात्मक शोषण है,
- पारिवारिक संबंधों में हस्तक्षेप है,
- संस्कारों और दायित्वों को तोड़ने की कोशिश है,
- और विवाह के मूलभूत आधार — सम्मान एवं स्वीकार्यता — का उल्लंघन है।
संयुक्त परिवार प्रणाली पर न्यायालय की चिंता
अदालत ने कहा —
“यह सोच सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकती है।”
क्योंकि भारतीय समाज में—
| पारिवारिक मूल्य | सामाजिक प्रभाव |
|---|---|
| बुजुर्गों का सम्मान | नैतिक संस्कृति मजबूत |
| संयुक्त जिम्मेदारी | आर्थिक स्थिरता |
| सामूहिक पालन-पोषण | बच्चों का सुरक्षित वातावरण |
| परंपरा और अनुभव | सलाह और समर्थन |
संयुक्त परिवार के टूटने से —
- बुजुर्ग उपेक्षित
- बच्चों का अकेलापन
- तनाव और अवसाद
- आर्थिक असुरक्षा
बढ़ते हैं।
महिला की आधुनिक सोच — क्या यह गलत है?
न्यायालय ने यह नहीं कहा कि—
- महिला पर संयुक्त परिवार में रहने का दबाव डालना चाहिए
- या कि अलग रहना अपराध है
न्यायालय की आपत्ति — तरीका और अपेक्षाओं की सत्यता पर है।
यदि कोई महिला किसी खास जीवनशैली की आकांक्षा रखती है —
जैसे— करियर आधारित, स्वतंत्र, गोपनीयता प्रधान जीवन —
तो यह उसका व्यक्तिगत अधिकार है।
लेकिन
विवाह से पूर्व इसे स्पष्ट किए बिना, बाद में शर्त थोपना —
विवाह के उद्देश्य और विश्वास दोनों के विपरीत है।
समस्या कहाँ उत्पन्न होती है? विवाह में पारदर्शिता की कमी
| विवाह से पहले | विवाह के बाद |
|---|---|
| “हम समायोजन करेंगे” | “मेरी शर्ते माननी होंगी” |
| “परिवार अच्छा है” | “परिवार के साथ नहीं रह सकती” |
| “सब ठीक है” | “अलग रहो, अन्यथा नहीं” |
यही दोहरी भाषा विवाद को जन्म देती है।
समाज का बदलता ढांचा — संयुक्त से परमाणु
| संयुक्त परिवार | परमाणु परिवार |
|---|---|
| सामर्थ्य और सुरक्षा | स्वतंत्रता |
| बुजुर्गों को सहारा | नौकरी आधारित परिवर्तन |
| निर्णयों में सामूहिकता | निजी जीवन की प्राथमिकता |
| रिश्तों में भावनात्मक गहराई | समय और कार्य की मांग |
बदलते समय में—
- नौकरी,
- ट्रांसफर,
- करियर,
- शिक्षा,
- जीवन की प्राथमिकताएँ
—परमाणु परिवार को जन्म दे रही हैं। यह बदलाव अपराध नहीं, बल्कि समाज का विकास है।
पर समस्या तब होती है जब—
परिवर्तन संवाद के स्थान पर संघर्ष में बदल जाए।
कानून क्या कहता है? — माता-पिता से अलग रहने की मांग कब Cruelty मानी जाती है
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई फैसलों में कहा गया है—
“यदि पत्नी पति पर माता-पिता से अलग होने का दबाव डालती है और उसका कोई उचित कारण नहीं है, तो यह मानसिक क्रूरता है।”
कब यह Cruelty है —
- केवल व्यक्तिगत पसंद के कारण
- अहंकारवश
- परिवार से चिढ़
- माता-पिता को बोझ कहना
कब यह Cruelty नहीं है —
- यदि माता-पिता पति-पत्नी पर अत्याचार करें
- आर्थिक शोषण
- दहेज की मांग
- घरेलू हिंसा
- जान का खतरा
- असहनीय वातावरण
इसलिए कानून दोनों पक्षों की परिस्थितियों को तौलने की मांग करता है।
यह निर्णय किसके पक्ष में?
- पति — संयुक्त परिवार में रहना चाहता था
- पत्नी — बिना ठोस कारण अलग रहने की शर्त थोप रही थी
अदालत ने इसे वैवाहिक क्रूरता माना और तलाक मंजूर किया।
निर्णय का केंद्र —
अलग रहना समस्या नहीं, “शर्त और दबाव” समस्या है।
समाज के लिए संदेश — विवाह समझौता नहीं, समझ है
यह टिप्पणी समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है—
- विवाह अपेक्षाओं का मेल है, थोपने का मंच नहीं
- रिश्ते पारदर्शिता मांगते हैं
- यदि प्राथमिकताएँ स्पष्ट हों तो विवाद कम होंगे
लड़की ही नहीं — यदि लड़का भी यह सोचता है कि—
- वह पत्नी को परिवार से दूर रखेगा
- या पत्नी को माता-पिता के साथ नहीं रखेगा
उसे भी स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
विवाह पूर्व सत्यता — समाधान का पहला चरण
यदि विवाह से पहले ही पूछा जाए और स्पष्ट लिखा हो—
- “संयुक्त परिवार में नहीं रहना है”
- “परमाणु परिवार चाहिए”
- “गोपनीय जीवन प्राथमिकता”
- “करियर आधारित निर्णय प्राथमिक”
तो—
✔ सही जीवन साथी चुनने में आसानी
✔ अप्रिय विवाह से बचाव
✔ तलाक की संख्या में कम
✔ मानसिक उत्पीड़न में कमी
इस प्रकार पारदर्शिता न्यायालय की भाषा नहीं, जीवन की जरूरत है।
निष्कर्ष — संबंध, आधुनिकता और भारतीय परिवार का संतुलित मॉडल
बरेली फैमिली कोर्ट की टिप्पणी केवल महिलाओं को नहीं, बल्कि विवाह में प्रवेश लेने वाले हर व्यक्ति को चेतावनी है—
विवाह अपेक्षाओं को छिपाने का मंच नहीं है।
संयुक्त परिवार बुरा नहीं —
पर हर व्यक्ति उसे निभा सके यह आवश्यक नहीं।
परमाणु परिवार आधुनिकता नहीं —
पर हर परिस्थिति में लागू भी नहीं।
सही यह है कि —
| न संयुक्त परिवार को अनिवार्य मानें | न परमाणु परिवार को श्रेष्ठ |
|---|---|
| संवाद रखें | निर्णय साझा हों |
| सम्मान दें | अहंकार हटे |
| समझ विकसित करें | प्रेम बने |
अतः विवाह का भविष्य तभी सुरक्षित है जब— अपेक्षाएँ स्पष्ट हों, निर्णय परस्पर हों, और सम्मान द्विपक्षीय हो।
यही इस निर्णय का सार और समाज के लिए संदेश है।