“बिना साक्ष्य के अग्रिम राशि वसूली का दावा अस्वीकार्य: कर्नाटक उच्च न्यायालय का विश्लेषणात्मक निर्णय”
(Earnest Money Recovery Denied Without Proof of Payment and Clear Title: Karnataka High Court Judgment)
📚 विस्तृत विश्लेषणात्मक लेख:
🔰 न्यायालय:
कर्नाटक उच्च न्यायालय (High Court of Karnataka)
🔰 न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति एच. पी. संदेश (H. P. Sandesh J.)
🔰 विधि संदर्भ: Specific Relief Act, 1963 की धारा 22
🔰 विषय: अग्रिम राशि (Earnest Money) की वसूली – विक्रय अनुबंध (Agreement to Sell)
🔍 विषय की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ताओं (Vendees) ने यह दावा किया कि उन्होंने एक संपत्ति के विक्रय के लिए विक्रेता (Vendor) के साथ समझौता (Agreement to Sell) किया था, और उन्होंने अग्रिम राशि (Earnest Money) का भुगतान भी किया। लेकिन बाद में, विक्रेता ने संपत्ति बेचने से इनकार कर दिया, जिस पर खरीदारों ने अग्रिम राशि की वसूली हेतु मुकदमा दायर किया।
⚖️ मुख्य प्रश्न:
क्या ऐसे खरीदार (Vendees), जो अग्रिम राशि का भुगतान प्रमाणित नहीं कर सकते और जिनकी खरीदी गई संपत्ति पर विक्रेता का वैध स्वामित्व संदिग्ध है, वे Specific Relief Act की धारा 22 के तहत अग्रिम राशि की वसूली का दावा कर सकते हैं?
🏛️ कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:
माननीय न्यायमूर्ति एच. पी. संदेश की अध्यक्षता में न्यायालय ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्णय दिया:
- भुगतान का साक्ष्य आवश्यक है:
- केवल कथित मौखिक समझौते या दस्तावेज में लिखे गए वचनों के आधार पर अग्रिम राशि की वसूली नहीं की जा सकती, जब तक कि वास्तविक भुगतान का स्पष्ट और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत न किया जाए।
- संपत्ति का वैध स्वामित्व:
- यदि विक्रेता के पास उस संपत्ति को बेचने का अधिकार ही स्पष्ट नहीं है – विशेष रूप से जब वह संपत्ति किसी वैधानिक निकाय (Statutory Body) द्वारा पूर्व में अधिग्रहित (Acquired) की जा चुकी हो – तो उस पर कोई वैध अनुबंध लागू नहीं होता।
- Specific Relief Act की धारा 22 का अनुप्रयोग:
- धारा 22 के तहत, खरीदार केवल उसी स्थिति में राहत मांग सकता है जब विक्रय अनुबंध वैध हो, और उसमें की गई शर्तें पारदर्शी व सिद्ध हों।
- इस मामले में न तो भुगतान का सबूत था और न ही विक्रेता की संपत्ति पर स्पष्ट वैधता – इसलिए खरीदार अग्रिम राशि की वसूली के पात्र नहीं माने गए।
🔎 विधिक दृष्टिकोण और महत्त्व:
Specific Relief Act, 1963 – Section 22:
यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि यदि किसी संपत्ति का विशेष निष्पादन (specific performance) नहीं हो पाता, तो वह खरीदार को संपत्ति से संबंधित भुगतान की वापसी या क्षतिपूर्ति का आदेश दे सकती है – परंतु तभी जब अग्रिम राशि का भुगतान प्रमाणित हो और विक्रेता का स्वामित्व निर्विवाद हो।
📌 न्यायालय का निष्कर्ष:
“जहां अग्रिम राशि के भुगतान का कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है, और संपत्ति का स्वामित्व विवादित या वैधानिक रूप से बाधित हो, वहां विशिष्ट निष्पादन या अग्रिम राशि की वापसी की मांग विधिक रूप से अस्थिर होती है।”
📘 निर्णय का प्रभाव और उपयोगिता:
- यह निर्णय उन खरीदारों के लिए चेतावनी है जो बिना जाँच-पड़ताल के संपत्ति खरीद के अनुबंध करते हैं।
- यह Specific Relief के सिद्धांतों को मजबूती से दोहराता है – कि अदालतें केवल वैधता और साक्ष्य के आधार पर राहत प्रदान करेंगी।
- संपत्ति लेनदेन में लेखा-परीक्षा (due diligence) की आवश्यकता को दोहराता है।
✍️ निष्कर्ष:
कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय संपत्ति के अनुबंधों में पारदर्शिता, विधिक स्पष्टता और वित्तीय साक्ष्य की अनिवार्यता को पुनः पुष्ट करता है।
बिना वैध दस्तावेज, भुगतान की पुष्टि और संपत्ति स्वामित्व की स्पष्टता के, Agreement to Sell का उल्लंघन और Earnest Money की वापसी का दावा न्यायिक दृष्टि से अस्वीकृत है।