शीर्षक: बिना सहमति तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध माना
कोर्ट: सर्वोच्च न्यायालय | केस नंबर: सिविल अपील 1122/2023
🔷 प्रस्तावना:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि पति या पत्नी द्वारा एकतरफा रूप से दिया गया तलाक वैध नहीं माना जा सकता, जब तक कि दूसरे पक्ष की स्पष्ट सहमति प्राप्त न हो। यह फैसला सिविल अपील संख्या 1122/2023 में सुनाया गया, जो विवाह और पारिवारिक कानूनों की व्याख्या में एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
🔷 मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत से गुहार लगाई थी कि उसका पति बिना उसकी सहमति के, केवल एकतरफा रूप से तलाक की घोषणा करके विवाह से मुक्त होना चाहता है। याचिकाकर्ता (पत्नी) ने कहा कि उसने कभी सहमति नहीं दी, न ही कोई लिखित या मौखिक अनुमति तलाक के लिए प्रदान की।
🔷 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
मुख्य टिप्पणियाँ:
- सहमति से तलाक का प्रावधान:
अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी(1) का हवाला देते हुए कहा कि आपसी सहमति से तलाक तभी वैध माना जाएगा जब दोनों पति-पत्नी स्पष्ट रूप से विवाह समाप्त करने की इच्छा व्यक्त करें। - एकतरफा तलाक अमान्य:
यदि किसी एक पक्ष द्वारा बिना दूसरे की सहमति के तलाक की प्रक्रिया शुरू की जाती है, तो वह कानून की दृष्टि में शून्य और अवैध होगी। - महिला की सहमति अनिवार्य:
विशेष रूप से यह निर्णय महिला की सहमति और अधिकारों की रक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना गया। अदालत ने कहा कि विवाह एक सामाजिक संस्था है, और उसे समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों की स्पष्ट, स्वतंत्र और गंभीर इच्छा आवश्यक है।
🔷 कानूनी विश्लेषण:
- धारा 13-B (Mutual Consent Divorce):
यह धारा आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया को वैध बनाती है। इसमें दोनों पक्षों को एक संयुक्त याचिका दायर करनी होती है और छह माह की “कूलिंग पीरियड” के बाद अदालत के समक्ष अंतिम सुनवाई होती है। - यदि एक पक्ष सहमत नहीं है, तो यह प्रक्रिया रुक जाती है। ऐसे में एकतरफा कार्यवाही न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन मानी जाती है।
🔷 सामाजिक और नैतिक पहलू:
यह निर्णय भारतीय समाज में विवाह संस्था की मर्यादा और महिलाओं के अधिकारों को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह संदेश जाता है कि तलाक जैसी गंभीर प्रक्रिया में केवल एक पक्ष की मर्जी पर्याप्त नहीं है।
🔷 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से स्पष्ट है कि तलाक केवल दोनों पक्षों की स्वतंत्र और स्पष्ट सहमति से ही मान्य होगा। यह न केवल कानून की दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय के सिद्धांतों की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण और स्वागतयोग्य निर्णय है।