लेख शीर्षक:
“बिना तलाक के दूसरी शादी अपराध: सुप्रीम कोर्ट की पुनः पुष्टि – हिंदू विवाह अधिनियम और IPC की धाराओं में सख्त सजा का प्रावधान”
परिचय:
भारत में विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक कानूनी संस्था भी है। विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत विवाह से जुड़े कुछ कड़े प्रावधान हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि पहले विवाह के वैधानिक समापन (तलाक या मृत्यु) के बिना दूसरी शादी करना न केवल अमान्य है, बल्कि यह एक आपराधिक कृत्य भी है। इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को 7 से 10 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
कानूनी प्रावधानों की समीक्षा:
1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(1):
इस धारा के अनुसार, किसी हिंदू व्यक्ति का विवाह तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक कि:
- विवाह के समय वह अपने पहले पति या पत्नी से विधिक रूप से अलग (तलाकशुदा) न हो,
- अथवा उसका पूर्व जीवनसाथी मृत न हो।
अर्थात, जीवित वैवाहिक साथी के रहते बिना तलाक लिए दूसरी शादी करना सीधे तौर पर इस अधिनियम का उल्लंघन है।
2. भारतीय दंड संहिता की धारा 494:
- यह धारा द्विविवाह (Bigamy) को अपराध घोषित करती है।
- यदि कोई व्यक्ति अपने पहले विवाह के जीवित रहते दूसरा विवाह करता है, तो उसे:
- 7 वर्ष तक की कारावास,
- जुर्माना, या
- दोनों की सजा हो सकती है।
3. भारतीय दंड संहिता की धारा 495:
- यदि किसी व्यक्ति ने अपने पहले विवाह को छुपाकर दूसरा विवाह किया हो, तो यह अपराध और भी गंभीर माना जाएगा।
- इसमें सजा:
- 10 वर्ष तक की सख्त कारावास,
- जुर्माना,
- या दोनों हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णयों में यह दोहराया है कि:
- दूसरा विवाह स्वतः अमान्य (Void ab initio) होता है,
- और यह विवाह किसी विधिक अधिकार को जन्म नहीं देता,
- इसके साथ ही यह अपराध की श्रेणी में आता है और अभियोजन के योग्य है।
महिला अधिकारों की रक्षा:
यह निर्णय विशेष रूप से महिलाओं के हित में है, क्योंकि अक्सर महिलाएं इस तरह के छिपे हुए दूसरे विवाहों का शिकार होती हैं। यदि किसी महिला को यह पता चलता है कि उसका पति पहले से विवाहित है, तो वह:
- आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है,
- मानसिक प्रताड़ना व धोखा देने का मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है,
- और पति की दूसरी शादी को निरस्त करवाने की कार्रवाई कर सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में द्विविवाह को लेकर कानून सख्त है और सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना तलाक लिए किया गया दूसरा विवाह अवैध, शून्य और दंडनीय है। यह न केवल विवाह संस्था की मर्यादा को बनाए रखने का माध्यम है, बल्कि महिलाओं और वैवाहिक अधिकारों की कानूनी सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी है।