“बिना अनुमति नसबंदी और नवजात की मृत्यु: केजीएमयू कुलपति समेत चार डॉक्टरों पर धोखाधड़ी का मुकदमा, कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ केस”

लेख शीर्षक:
“बिना अनुमति नसबंदी और नवजात की मृत्यु: केजीएमयू कुलपति समेत चार डॉक्टरों पर धोखाधड़ी का मुकदमा, कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुआ केस”


परिचय:

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित क्वीन मेरी अस्पताल में एक गंभीर और मानवाधिकारों से जुड़ा मामला सामने आया है, जहाँ एक महिला की प्रसव के दौरान बिना सहमति के नसबंदी कर दी गई। आरोप है कि पीड़िता और उसके पति की जानकारी या अनुमति के बिना चिकित्सकों ने यह अमानवीय कदम उठाया, जिसके बाद नवजात शिशु की मृत्यु भी हो गई। अब इस घटना के लगभग तीन वर्ष बाद, कोर्ट के आदेश पर केजीएमयू के कुलपति समेत चार चिकित्सकों पर धोखाधड़ी और अन्य गंभीर आरोपों में मुकदमा दर्ज हुआ है।


घटना का विवरण:

  • तारीख: 4 अक्टूबर 2022
  • स्थान: क्वीन मेरी अस्पताल, लखनऊ
  • पीड़ित: हेमवती नंदन, निवासी रतनपुर आंझी गांव, शाहबाद, जनपद हरदोई

हेमवती नंदन ने अपनी पत्नी को प्रसव के लिए क्वीन मेरी अस्पताल में भर्ती कराया था। वहां डॉ. अमिता एंडेता, डॉ. मोनिका अग्रवाल, डॉ. निदा जात और डॉ. शिवानी द्वारा इलाज शुरू किया गया।

आपरेशन और नसबंदी का आरोप:

5 अक्टूबर 2022 को प्रसव के दौरान उनकी पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन नवजात की तबीयत गंभीर थी, जिससे उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। छह दिन बाद शिशु की मृत्यु हो गई। इसी दौरान वादी को ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी की बिना किसी पूर्व सहमति के नसबंदी कर दी गई है। जब इस पर उन्होंने आपत्ति जताई, तो उन्हें धमकाकर चुप करा दिया गया और कथित रूप से जाली हस्ताक्षर भी बनाए गए।


प्रशासनिक उदासीनता और धमकी:

  • पीड़ित ने 10 अक्टूबर 2022 को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद स्थानीय पुलिस चौकी में शिकायत की।
  • 13 अक्टूबर को मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत की।
  • इसके बावजूद कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई, बल्कि उन्हें कथित रूप से धमकाया गया।

न्यायिक हस्तक्षेप और मुकदमा दर्ज:

करीब तीन वर्ष बाद, कोर्ट के आदेश पर लखनऊ के चौक कोतवाली में मुकदमा दर्ज किया गया।
मुकदमे में शामिल हैं:

  • केजीएमयू कुलपति
  • क्वीन मेरी अस्पताल की चार महिला चिकित्सक
  • उत्तर प्रदेश राज्य सरकार को भी प्रतिवादी बनाया गया है।

मुकदमे में संभावित धाराएं (संभावित रूप से):

  • IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी)
  • धारा 467/468 (जालसाजी व जाली दस्तावेज बनाना)
  • धारा 506 (धमकी देना)
  • धारा 326 (गंभीर चोट पहुंचाना)
  • साथ ही, मानवाधिकार उल्लंघन और स्वास्थ्य कानूनों के उल्लंघन की धाराएं भी जुड़ सकती हैं।

कानूनी और नैतिक प्रश्न:

यह मामला कई गंभीर कानूनी व नैतिक प्रश्नों को जन्म देता है:

  1. क्या चिकित्सा प्रणाली में मरीज की सहमति को दरकिनार किया जा सकता है?
  2. यदि सहमति नहीं ली गई थी, तो क्या यह assault की श्रेणी में आता है?
  3. राज्य सरकार और अस्पताल प्रशासन की चुप्पी क्या दायित्व से पलायन है?

निष्कर्ष:

यह मामला भारत में चिकित्सा क्षेत्र में सूचित सहमति (Informed Consent) की अनिवार्यता और नैतिक चिकित्सा आचरण की विफलता को उजागर करता है। जहां एक ओर एक नवजात की जान चली गई, वहीं दूसरी ओर एक महिला को उसके जीवन पर स्थायी निर्णय बिना अनुमति के थोप दिया गया। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि न्याय की प्रक्रिया धीमी अवश्य हो सकती है, परन्तु यदि सतत प्रयास किया जाए, तो न्याय अवश्य मिलता है।