शीर्षक:
“बाल स्वास्थ्य और पोषणः कानूनी व नीतिगत पहल”
भूमिका
किसी भी देश का भविष्य उसके बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण स्तर पर निर्भर करता है। एक स्वस्थ और पोषित बच्चा न केवल शिक्षा और विकास में आगे बढ़ता है, बल्कि वह राष्ट्र की प्रगति का भी आधार बनता है। भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में बच्चों के लिए स्वास्थ्य और पोषण संबंधी चुनौतियाँ कई कारणों से गंभीर हैं—गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक असमानता, और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच। इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने वर्षों में कई कानूनी प्रावधान और नीतिगत पहल लागू की हैं, ताकि हर बच्चा स्वस्थ, मजबूत और सक्षम बन सके।
1. बाल स्वास्थ्य और पोषण की वर्तमान स्थिति
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार:
- पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 35% बच्चे कम वजन (Underweight) के हैं।
- लगभग 32% बच्चे ठिगनेपन (Stunting) से पीड़ित हैं।
- 19% बच्चे कमज़ोर (Wasting) श्रेणी में आते हैं।
- एनीमिया (खून की कमी) से पीड़ित बच्चों का प्रतिशत 67% से अधिक है।
ये आँकड़े बताते हैं कि भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति अभी भी चुनौतीपूर्ण है और इसके लिए सशक्त कानूनी व नीतिगत कदम आवश्यक हैं।
2. संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
स्वास्थ्य और पोषण, जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग हैं।
अनुच्छेद 39(f) – बच्चों के स्वास्थ्य और अवसरों की सुरक्षा
राज्य का दायित्व है कि वह बच्चों को स्वस्थ विकास का अवसर दे।
अनुच्छेद 47 – पोषण स्तर और स्वास्थ्य सुधार
राज्य का कर्तव्य है कि वह जनता के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा उठाए।
3. प्रमुख कानूनी प्रावधान
3.1 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA)
- धारा 4: गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों को पोषण युक्त भोजन का अधिकार।
- आंगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में मिड-डे मील योजना का कानूनी आधार।
3.2 किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- बाल कल्याण समितियों के माध्यम से परित्यक्त, अनाथ और असहाय बच्चों के लिए स्वास्थ्य और पोषण की व्यवस्था।
3.3 मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961
- मातृत्व के दौरान महिलाओं को आर्थिक सहायता, ताकि बच्चे का पोषण प्रभावित न हो।
4. प्रमुख नीतिगत पहलें
4.1 एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
- 1975 में शुरू हुई यह योजना 0-6 वर्ष के बच्चों को पूरक पोषण, स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण और स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करती है।
- आंगनवाड़ी केंद्र इसके मुख्य संचालन स्थल हैं।
4.2 मिड-डे मील योजना
- प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को मुफ्त, पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना।
- बच्चों के स्कूल आने की दर और पोषण स्तर दोनों में सुधार।
4.3 प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
- गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को तीन किस्तों में ₹5,000 की आर्थिक सहायता।
- उद्देश्य – माताओं को पोषण पर खर्च के लिए प्रोत्साहित करना।
4.4 पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan)
- 2018 में शुरू, लक्ष्य – 2025 तक Stunting, Wasting और Anaemia की दर कम करना।
- जन आंदोलन के रूप में पोषण सुधार को बढ़ावा।
4.5 राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाना।
- Janani Suraksha Yojana और Rashtriya Bal Swasthya Karyakram (RBSK) इसके अंतर्गत।
5. अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ और भारत
संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (UNCRC)
- अनुच्छेद 24: बच्चों के लिए सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधा और पोषण का अधिकार।
- अनुच्छेद 27: उचित जीवन स्तर और भोजन की उपलब्धता।
सतत विकास लक्ष्य (SDGs)
- लक्ष्य 2: भूखमरी समाप्त करना और पोषण सुधारना।
- लक्ष्य 3: सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन और कल्याण सुनिश्चित करना।
6. चुनौतियाँ
- गरीबी और असमानता – पोषणयुक्त भोजन तक सीमित पहुँच।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी – ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
- सांस्कृतिक और सामाजिक कारक – लड़कियों और बच्चों के भोजन में भेदभाव।
- सूचना का अभाव – माताओं में पोषण संबंधी जागरूकता की कमी।
7. आगे की रणनीतियाँ
- पोषण शिक्षा – स्कूल और आंगनवाड़ी स्तर पर पोषण जागरूकता अभियान।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधार – हर गाँव में आंगनवाड़ी केंद्र और स्वास्थ्य उपकेंद्र का सुदृढ़ीकरण।
- मल्टी-सेक्टोरल अप्रोच – स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और महिला सशक्तिकरण विभाग का समन्वय।
- डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम – बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य डेटा का रियल-टाइम मॉनिटरिंग।
- सामुदायिक सहभागिता – स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों और पंचायतों को शामिल करना।
निष्कर्ष
बाल स्वास्थ्य और पोषण, केवल चिकित्सा या भोजन का विषय नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार, सामाजिक न्याय और आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ मुद्दा है। भारत में कानूनी और नीतिगत पहलों ने एक मजबूत ढाँचा तैयार किया है, लेकिन वास्तविक बदलाव तभी संभव है जब इन नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन हो और समाज में हर स्तर पर बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।