बाल संरक्षण और आपराधिक विधि: POCSO अधिनियम और FSL रिपोर्ट में देरी की चुनौती

बाल संरक्षण और आपराधिक विधि: POCSO अधिनियम और FSL रिपोर्ट में देरी की चुनौती


🔷 प्रस्तावना

बाल यौन शोषण न केवल एक जघन्य अपराध है, बल्कि यह समाज की नैतिकता और मानवता पर सीधा प्रहार करता है। भारत सरकार ने बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के लिए POCSO अधिनियम, 2012 लागू किया, जो बच्चों के विरुद्ध होने वाले यौन अपराधों की जांच, सुनवाई और सजा की प्रक्रिया को विशेष रूप से संबोधित करता है।

हालाँकि, “In Re: Alarming Rise in the Number of Reported Child Rape Incidents” नामक वाद में दिनांक 15 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से Forensic Science Laboratory (FSL) रिपोर्टों में देरी को लेकर जो न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करती है।


🔶 प्रमुख विषय: FSL रिपोर्ट में देरी – न्याय की राह में बाधा

FSL रिपोर्ट किसी भी यौन अपराध के मामलों में एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक साक्ष्य होती है, विशेषकर तब जब मामला बलात्कार या POCSO के अंतर्गत आता है। इन रिपोर्टों में देरी के कारण कई बार:

  • आरोपी को ज़मानत मिल जाती है
  • पीड़ित परिवार को न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं
  • ट्रायल लंबित रहता है
  • पीड़ितों में न्याय प्रणाली के प्रति अविश्वास पैदा होता है

🔶 सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – 15 मई 2025

सुप्रीम कोर्ट ने इस स्वत: संज्ञान (Suo Motu) वाद में राज्य सरकारों को निर्देशित किया कि:

  1. राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि वर्तमान FSL प्रयोगशालाएं पूरी क्षमता से कार्य करें।
  2. अपर्याप्त स्टाफ और संसाधनों की समस्या को शीघ्रता से दूर किया जाए।
  3. हर राज्य में पर्याप्त संख्या में FSL प्रयोगशालाएं स्थापित की जाएं।
  4. FSL रिपोर्ट को 30-60 दिनों के भीतर प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाया जाए।
  5. FSL देरी के कारण ट्रायल में उत्पन्न होने वाली रुकावटों के लिए विशेष न्यायिक तंत्र विकसित किया जाए।

🔶 POCSO अधिनियम और न्यायिक समयबद्धता

POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 35 यह प्रावधान करती है कि:

  • मामले का निपटारा 1 वर्ष के भीतर होना चाहिए।
  • बच्चे को संवेदनशील, सहानुभूतिपूर्ण और सुरक्षित वातावरण में बयान देने की अनुमति होनी चाहिए।
    लेकिन FSL रिपोर्ट की देरी के कारण इस उद्देश्य की पूर्ति बाधित हो जाती है।

🔶 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार

  • 2023-2024 में POCSO मामलों की संख्या में 18% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • परंतु 70% मामलों में FSL रिपोर्ट समय पर प्रस्तुत नहीं हुई।
  • इससे 60% मामलों में ट्रायल लंबित हैं।

🔶 संभावित समाधान

  • प्रत्येक जिले में मिनी-FSL लैब की स्थापना
  • फॉरेंसिक स्टाफ की भर्ती और प्रशिक्षण में वृद्धि
  • ई-ट्रैकिंग सिस्टम द्वारा रिपोर्ट की प्रगति पर निगरानी
  • अंतरिम रिपोर्टिंग प्रणाली लागू करना ताकि ट्रायल प्रारंभ हो सके
  • FSL की देरी के लिए जवाबदेही प्रणाली विकसित करना

🔶 न्यायिक निर्णयों का प्रभाव

  • In Re: Alarming Rise… केस सुप्रीम कोर्ट की संवेदनशीलता को दर्शाता है कि केवल क़ानून बनाना पर्याप्त नहीं, उनका प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है।
  • यह निर्णय राज्य की संस्थागत ज़िम्मेदारी को इंगित करता है कि वैज्ञानिक साक्ष्य प्रणाली को मज़बूत किया जाए।

🔷 निष्कर्ष

बच्चों की सुरक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि उसकी निष्पक्ष और त्वरित कार्यवाही से सुनिश्चित होती है। FSL रिपोर्टों में देरी न्याय के उस मूलभूत सिद्धांत को तोड़ती है कि “Justice delayed is justice denied.” POCSO अधिनियम तब ही प्रभावशाली होगा जब उसकी प्रक्रिया में शामिल सभी अंग — पुलिस, FSL, अभियोजन और न्यायालय — समन्वय में कार्य करें। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश न्याय प्रणाली को मजबूती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका अनुपालन राष्ट्र की नैतिक ज़िम्मेदारी है।