बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016: एक संवेदनशील सामाजिक सुधार की दिशा में कदम

बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016: एक संवेदनशील सामाजिक सुधार की दिशा में कदम

प्रस्तावना
भारत में बाल श्रम एक दीर्घकालिक सामाजिक समस्या रही है, जो बच्चों के शैक्षणिक, मानसिक, शारीरिक और नैतिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, भारतीय संसद ने 1986 में “बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम” पारित किया था। लेकिन समाज में आए बदलाव, वैश्विक मानकों और बाल अधिकारों की बढ़ती चेतना के मद्देनज़र वर्ष 2016 में इस अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। यह संशोधन बच्चों को कार्यस्थलों से हटाकर शिक्षा और बाल्यावस्था के संरक्षण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जाता है।

मुख्य प्रावधान
बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016 के प्रमुख प्रावधानों में यह स्पष्ट किया गया कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार के रोजगार में नियुक्त नहीं किया जा सकता, चाहे वह पारिवारिक व्यवसाय हो या कोई अनौपचारिक क्षेत्र। यह प्रतिबंध पूर्णतः कठोर है और इससे पहले मौजूद अपवादों को सीमित कर दिया गया है।

हालांकि, अधिनियम में यह प्रावधान भी किया गया है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे यदि स्कूल के बाद या अवकाश के समय अपने परिवार की गैर-जोखिमपूर्ण पारिवारिक गतिविधियों में सहयोग करते हैं, तो वह प्रतिबंध के अंतर्गत नहीं आएगा।

इसके अलावा, 14 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के लिए जोखिमयुक्त व्यवसायों और प्रक्रियाओं में कार्य करने पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिससे किशोरों के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।

दंड और प्रवर्तन तंत्र
इस अधिनियम में उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। पहली बार उल्लंघन पर 6 महीने से 2 वर्ष की कैद अथवा ₹20,000 से ₹50,000 तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पुनरावृत्ति की स्थिति में सजा और भी अधिक कठोर हो सकती है। इसके अलावा, सरकार द्वारा “बाल एवं किशोर श्रम पुनर्वास कोष” की स्थापना की गई है जिसमें उल्लंघनकर्ता द्वारा दिया गया जुर्माना जमा किया जाता है, जिससे पीड़ित बच्चों के पुनर्वास में सहायता मिलती है।

महत्त्व और आलोचना
इस संशोधन को बाल अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना गया। यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 21A (शिक्षा का अधिकार), अनुच्छेद 24 (बाल श्रम पर रोक) और संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) के अनुरूप है, जिसका भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है।

हालांकि, कुछ आलोचक यह तर्क देते हैं कि पारिवारिक कार्यों में बच्चों के शामिल होने की छूट एक कानूनी छिद्र (loophole) बन सकती है, जिसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इससे बाल मजदूरी का शोषण अप्रत्यक्ष रूप से जारी रह सकता है, विशेष रूप से गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में।

निष्कर्ष
बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016 न केवल भारत की सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है, बल्कि बच्चों के बेहतर भविष्य की नींव भी रखता है। हालांकि इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सख्त निगरानी, जन-जागरूकता, शिक्षा की पहुंच और सामाजिक सहयोग अत्यंत आवश्यक हैं। यह कानून तभी प्रभावी हो सकता है जब समाज, सरकार और परिवार मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर बच्चा विद्यालय में हो, कार्यस्थल पर नहीं।