बाल श्रम कानूनः भारत की स्थिति और सुधार की आवश्यकता

बाल श्रम कानूनः भारत की स्थिति और सुधार की आवश्यकता

प्रस्तावना
बाल श्रम (Child Labour) भारत में एक जटिल और संवेदनशील सामाजिक समस्या है। यह न केवल बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधक है, बल्कि उनके मूल अधिकारों का भी हनन करता है। बाल श्रम का मुख्य कारण गरीबी, अशिक्षा, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ और सामाजिक असमानता है। इसे समाप्त करने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न कानून बनाए हैं, परंतु व्यवहारिक क्रियान्वयन में अब भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

बाल श्रम की परिभाषा
बाल श्रम का तात्पर्य उस कार्य से है जिसमें कोई बच्चा—जो कानूनन कार्य करने की उम्र से कम है—अपने जीवनयापन के लिए या परिवार की सहायता हेतु काम करता है। यह कार्य यदि बच्चे की शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा या नैतिकता को प्रभावित करता है तो वह बाल श्रम की श्रेणी में आता है।

भारत में बाल श्रम की स्थिति
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत में लाखों बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में बाल श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं। इनमें घरेलू कार्य, कृषि, ईंट भट्टे, चाय की दुकानें, गली की दुकानें, मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स और खदानें शामिल हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक विकराल रूप में दिखाई देती है। बालिकाएं विशेष रूप से घरेलू नौकरियों और असंगठित क्षेत्रों में शोषण का शिकार होती हैं।

प्रमुख कानूनी प्रावधान

  1. बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (संशोधित 2016)
    इस अधिनियम के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी प्रकार के कार्य में नियोजित करना प्रतिबंधित है। 14 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों को खतरनाक व्यवसायों में काम पर रखना निषिद्ध है। 2016 के संशोधन में यह जोड़ा गया कि बच्चे “पारिवारिक उपक्रम” में “स्कूल के बाद” कार्य कर सकते हैं, बशर्ते वह उनकी पढ़ाई को बाधित न करे।
  2. भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धाराएँ
    IPC की धारा 370 और 374 के अंतर्गत बच्चों को जबरन श्रम में लगाने वाले व्यक्तियों के लिए दंड का प्रावधान है।
  3. श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा ‘पेंसिल’ पोर्टल
    भारत सरकार ने बाल श्रम की निगरानी और उन्मूलन के लिए PENCIL (Platform for Effective Enforcement for No Child Labour) पोर्टल आरंभ किया है, जिससे बाल श्रम की घटनाओं की शिकायत की जा सकती है।
  4. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
    इस अधिनियम के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। यह अधिनियम परोक्ष रूप से बाल श्रम की रोकथाम करता है।

न्यायपालिका की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से बाल श्रम के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुप्रीम कोर्ट ने M.C. Mehta बनाम तमिलनाडु राज्य (1996) मामले में बाल श्रम पर सख्त रवैया अपनाते हुए निर्देश दिए थे कि बाल श्रमिकों को शिक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था मिलनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, Bachpan Bachao Andolan और Save the Childhood Foundation जैसे संगठनों द्वारा दायर जनहित याचिकाओं के माध्यम से कोर्ट ने सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

चुनौतियाँ और विरोधाभास

  1. कानून और व्यवहार में अंतर
    कानून तो सख्त हैं, परंतु कार्यान्वयन में ढिलाई, भ्रष्टाचार और निगरानी की कमी के कारण बाल श्रम अभी भी व्यापक है।
  2. पारिवारिक उपक्रम की छूट का दुरुपयोग
    2016 के संशोधन के अनुसार पारिवारिक व्यवसाय में बच्चों को काम करने की छूट दी गई, जिसका अक्सर व्यावसायिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जाता है।
  3. शैक्षणिक व्यवस्था की खामियाँ
    गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और अनियमित शिक्षण, बच्चों को पढ़ाई से दूर करते हैं और वे श्रम की ओर प्रवृत्त होते हैं।
  4. गरीबी और बेरोजगारी
    जब तक परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होगी, तब तक वे बच्चों को श्रम से नहीं रोक पाएंगे।

समाधान और सुझाव

  1. सख्त निगरानी और निष्पक्ष क्रियान्वयन
    बाल श्रम कानूनों का सख्ती से पालन हो और दोषियों को दंडित किया जाए।
  2. समाज की भागीदारी
    सामाजिक संगठनों, NGOs और स्थानीय समुदायों को बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाने में सहभागी बनाया जाना चाहिए।
  3. आर्थिक सहायता और पुनर्वास
    उन परिवारों को आर्थिक सहायता दी जाए जो बच्चों को स्कूल भेजते हैं और उन्हें श्रम से दूर रखते हैं। साथ ही, बाल श्रमिकों के लिए पुनर्वास केंद्रों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  4. शिक्षा प्रणाली में सुधार
    शिक्षा को अधिक आकर्षक, व्यावसायिक और रोजगारपरक बनाया जाए, जिससे बच्चे स्कूल जाने के लिए प्रेरित हों।

निष्कर्ष
भारत में बाल श्रम एक ऐसी समस्या है जो केवल कानूनी उपायों से नहीं, बल्कि समग्र सामाजिक प्रयासों से ही हल की जा सकती है। जब तक हर बच्चा विद्यालय नहीं जाता और हर हाथ किताबों से नहीं भरता, तब तक बाल श्रम का उन्मूलन अधूरा रहेगा। सरकार, समाज और न्यायपालिका को एकजुट होकर बच्चों को उनका बचपन लौटाने की दिशा में काम करना होगा।