बाल पोषण और कल्याण योजनाएँ: एक कानूनी विश्लेषण

बाल पोषण और कल्याण योजनाएँ: एक कानूनी विश्लेषण


भूमिका

भारत जैसे विकासशील देश में बच्चों का पोषण और कल्याण केवल सामाजिक दायित्व ही नहीं बल्कि संवैधानिक और कानूनी जिम्मेदारी भी है। बालक किसी भी राष्ट्र का भविष्य होते हैं, और उनके शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास के लिए उचित पोषण और कल्याणकारी वातावरण आवश्यक है। कुपोषण, शिशु मृत्यु दर, शिक्षा में बाधा और बाल श्रम जैसी समस्याएँ केवल सामाजिक या आर्थिक नहीं, बल्कि कानूनी हस्तक्षेप की भी मांग करती हैं। इसीलिए, भारत में केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर अनेक बाल पोषण एवं कल्याण योजनाएँ लागू करती हैं, जिन्हें संवैधानिक प्रावधान, अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और न्यायालयों के निर्देश मजबूती प्रदान करते हैं।


कानूनी आधार

  1. संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसमें स्वास्थ्य और पोषण का अधिकार शामिल है।
    • अनुच्छेद 21-ए – 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, जिसमें मध्याह्न भोजन योजना भी जुड़ी है।
    • अनुच्छेद 39 (f) – राज्य का दायित्व है कि बच्चों को स्वस्थ तरीके से बढ़ने का अवसर और स्वतंत्रता मिले।
    • अनुच्छेद 45 – 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा और देखभाल का प्रावधान।
    • अनुच्छेद 47 – पोषण स्तर को ऊँचा उठाने और जन स्वास्थ्य सुधारने का दायित्व।
  2. महत्वपूर्ण अधिनियम और नीतियाँ
    • बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 – इसमें बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी सेवाएँ अनिवार्य की गई हैं।
    • जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) अधिनियम, 2015 – बच्चों के संरक्षण, पुनर्वास और पोषण पर विशेष जोर।
    • राष्ट्रीय बाल नीति, 2013 – बच्चों के विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए व्यापक नीति ढांचा।
  3. अंतर्राष्ट्रीय दायित्व
    • संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC), 1989 – भारत 1992 से इसका पक्षकार है, जिसमें बच्चों के जीवन, स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के अधिकारों की गारंटी है।

प्रमुख बाल पोषण और कल्याण योजनाएँ

  1. एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
    • 1975 में शुरू हुई, 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पूरक पोषण, स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करती है।
    • आंगनवाड़ी केंद्र इसके मुख्य क्रियान्वयन केंद्र हैं।
    • कानूनी आधार – राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 4 और 5 में इन सेवाओं का अधिकार निहित है।
  2. मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme)
    • 1995 में राष्ट्रीय स्तर पर शुरू, जिसका उद्देश्य स्कूल में नामांकन बढ़ाना, ड्रॉपआउट घटाना और बच्चों को पौष्टिक भोजन देना है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2001) में इसे अधिकार आधारित योजना घोषित किया।
  3. राष्ट्रीय पोषण मिशन (POSHAN Abhiyaan)
    • 2018 में प्रारंभ, इसका लक्ष्य कुपोषण मुक्त भारत है।
    • यह ICDS-CAS (Common Application Software) के माध्यम से बच्चों के विकास और पोषण की निगरानी करता है।
  4. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
    • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 5000 रुपये की वित्तीय सहायता, ताकि गर्भावस्था के दौरान पोषण और स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित हो सके।
  5. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK)
    • जन्म से 18 वर्ष तक के बच्चों की स्वास्थ्य जांच, उपचार और रेफरल सेवाएँ।

न्यायिक दृष्टिकोण

  1. पी.यू.सी.एल. बनाम भारत संघ (2001) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भोजन का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
  2. सुप्रीम कोर्ट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ICDS Case) – आंगनवाड़ी सेवाओं के विस्तार और गुणवत्ता सुधार का आदेश दिया।
  3. लक्ष्मी मांडल बनाम भारत संघ (2010) – दिल्ली हाई कोर्ट ने मातृ और शिशु पोषण योजनाओं की विफलता को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना।

चुनौतियाँ

  • कुपोषण की उच्च दर – NFHS-5 (2019-21) के अनुसार 35% बच्चे स्टंटेड और 19% बच्चे वेस्टेड हैं।
  • संसाधन और अवसंरचना की कमी – कई आंगनवाड़ी केंद्रों में भवन, रसोई और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएँ नहीं।
  • भ्रष्टाचार और लीकेज – भोजन और पोषण सामग्री की आपूर्ति में अनियमितताएँ।
  • जागरूकता की कमी – माताओं और परिवारों में संतुलित आहार और पोषण के महत्व के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं।
  • शहरी गरीब और प्रवासी बच्चों तक पहुँच की समस्या

सुधार के सुझाव

  1. कानूनी प्रवर्तन को मजबूत करना – ICDS और Mid-Day Meal को सिर्फ नीति नहीं, बल्कि अधिकार आधारित और न्यायालय में लागू करने योग्य बनाना।
  2. तकनीकी निगरानी – POSHAN Tracker जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग, ताकि पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित हो।
  3. सामुदायिक भागीदारी – स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों और अभिभावक समितियों को भोजन की गुणवत्ता जांच में शामिल करना।
  4. पोषण शिक्षा – स्कूल और आंगनवाड़ी स्तर पर पोषण संबंधी जागरूकता अभियान।
  5. शहरी गरीब और प्रवासी बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम

निष्कर्ष

बाल पोषण और कल्याण केवल कल्याणकारी विषय नहीं, बल्कि संवैधानिक, कानूनी और मानवाधिकार का मुद्दा है। भारतीय संविधान, राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि प्रत्येक बच्चे को पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा का अधिकार है। हालांकि, योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन यदि सरकार, न्यायपालिका, नागरिक समाज और समुदाय मिलकर कार्य करें, तो “कुपोषण मुक्त भारत” का सपना साकार हो सकता है।
एक स्वस्थ और पोषित बाल पीढ़ी ही भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव है।