बाल खिलाड़ियों का संरक्षण और खेलों में शोषण की रोकथाम (Protection of Child Athletes and Prevention of Exploitation in Sports)

बाल खिलाड़ियों का संरक्षण और खेलों में शोषण की रोकथाम (Protection of Child Athletes and Prevention of Exploitation in Sports)


🔶 प्रस्तावना

खेल एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ बच्चों की प्रतिभा, अनुशासन, और आत्मविश्वास का अद्वितीय विकास होता है। भारत जैसे देश में जहां युवा जनसंख्या अत्यधिक है, वहां खेलों के माध्यम से बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं प्रबल हैं। किंतु इस विकास के साथ बाल खिलाड़ियों के शोषण (Exploitation of Child Athletes), अत्यधिक प्रशिक्षण, यौन उत्पीड़न, आर्थिक शोषण, और मानसिक दबाव जैसी समस्याएं भी तेजी से उभर रही हैं। अतः बाल खिलाड़ियों के संरक्षण हेतु ठोस विधिक, सामाजिक और संस्थागत प्रयास आवश्यक हो गए हैं।


🔶 बाल खिलाड़ी कौन हैं?

बाल खिलाड़ी वे किशोर/बालक होते हैं जो किसी खेल में प्रशिक्षु या प्रतिस्पर्धी के रूप में भाग लेते हैं और जिनकी आयु सामान्यतः 18 वर्ष से कम होती है। ये बच्चे विभिन्न खेल अकादमियों, स्कूल प्रतियोगिताओं, राज्य व राष्ट्रीय खेल कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।


🔶 शोषण के प्रकार और कारण

1. शारीरिक शोषण

  • अत्यधिक अभ्यास और प्रशिक्षण
  • थकावट, चोट, नींद और पोषण की अनदेखी

2. मानसिक शोषण

  • दबाव बनाना, धमकियाँ, और मानसिक उत्पीड़न
  • असफलता पर तिरस्कार और प्रताड़ना

3. यौन उत्पीड़न

  • कोच, सहयोगी या अन्य वरिष्ठ द्वारा छेड़छाड़ या अनुचित व्यवहार
  • बालिका खिलाड़ियों के साथ विशेष रूप से बढ़ती समस्या

4. आर्थिक शोषण

  • स्पॉन्सरशिप और पुरस्कार राशि में धोखाधड़ी
  • अकादमियों में प्रवेश के नाम पर अवैध वसूली

5. बाल श्रम जैसा व्यवहार

  • अत्यधिक घंटे अभ्यास करवाना
  • शिक्षा और विश्राम से वंचित करना

🔶 भारत में लागू प्रमुख कानून

1. यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act)

  • बालकों के साथ किसी भी प्रकार के यौन अपराध को रोकने हेतु सख्त प्रावधान
  • सभी खेल अकादमियों में अनिवार्य रूप से POCSO अनुपालना होनी चाहिए

2. बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986

  • बच्चों से जबरन कार्य लेना गैरकानूनी है
  • खेल प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा का अधिकार सुरक्षित रखते हुए जबरदस्ती के विरुद्ध संरक्षण

3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009

  • सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार
  • खेल के नाम पर शिक्षा से वंचित करना गैरकानूनी है

4. किशोर न्याय अधिनियम, 2015

  • बाल अधिकार संरक्षण आयोग और बच्चों के लिए विशेष न्यायपालिका की भूमिका
  • बाल खिलाड़ियों के उत्पीड़न मामलों की स्वतंत्र जांच और सुनवाई

5. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR)

  • सभी कोचिंग संस्थानों, अकादमियों और खेल संघों की निगरानी हेतु अधिकार प्राप्त
  • बाल सुरक्षा दिशा-निर्देश जारी करना और शिकायतों का निवारण

🔶 खेल संगठनों की जिम्मेदारी

  • बाल खिलाड़ियों के प्रशिक्षण में स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा का ध्यान
  • सभी कोचों के लिए पुलिस सत्यापन अनिवार्य
  • महिला खिलाड़ियों के लिए महिला कोच या प्रतिनिधि की नियुक्ति
  • POSH Guidelines और POCSO Orientation की व्यवस्था
  • Child Safeguarding Policy को अपनाना अनिवार्य

🔶 न्यायालय की भूमिका और उदाहरण

⚖️ सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने यह स्पष्ट किया है कि:

  • बाल खिलाड़ियों की सुरक्षा किसी भी अन्य पहलू से अधिक महत्वपूर्ण है।
  • प्रशिक्षण केंद्रों को बाल अधिकारों का पालन करना अनिवार्य है।
  • महिला खिलाड़ियों के उत्पीड़न के मामलों में जांच हेतु स्वतंत्र समितियाँ गठित होनी चाहिए।

प्रसिद्ध मामले:

  • 2023 में महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत ने पूरे देश को झकझोर दिया।
  • दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि सभी खेल संस्थानों में बाल संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए जाएं।

🔶 चुनौतियाँ

  1. खेल अकादमियों में निगरानी और विनियमन का अभाव
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के शोषण की अधिक संभावना
  3. जागरूकता और विधिक जानकारी की कमी
  4. बालकों को आवाज़ उठाने में भय या संकोच
  5. अकादमियों में पेरेंट्स की भागीदारी की कमी

🔶 सुधार हेतु सुझाव

✅ सभी खेल संगठनों और अकादमियों के लिए बाल संरक्षण नीति अनिवार्य की जाए
✅ कोचों और ट्रेनिंग स्टाफ के लिए बाल अधिकार जागरूकता प्रशिक्षण
स्थायी शिकायत तंत्र और टोल फ्री हेल्पलाइन
बाल संरक्षण ऑडिट वर्ष में कम से कम एक बार
शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य – तीनों के संतुलन की व्यवस्था
पेरेंट्स और अभिभावकों की भागीदारी को अनिवार्य बनाया जाए


🔶 निष्कर्ष

बाल खिलाड़ी भारत की खेल शक्ति के भविष्य हैं। उन्हें केवल पदक जीतने की मशीन नहीं, बल्कि एक संवेदनशील, सुरक्षित और सम्मानित मानव के रूप में तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि खेल संस्थाएं, सरकार, न्यायपालिका और अभिभावक मिलकर बाल खिलाड़ियों के संरक्षण और शोषण की रोकथाम को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण ही भविष्य के महान खिलाड़ियों को जन्म देता है।