“बच्चे की हिरासत-मामले में ‘हाबेयस कॉरपस’ याचिका का दायरा: Punjab & Haryana High Court का दृष्टिकोण — माता द्वारा पहले की हिरासत याचिकाएँ छिपाना और उसकी संवैधानिक व विधिक विवेचना”
प्रस्तावना
बच्चों की हिरासत-विवादों में संवैधानिक न्यायालयों के समक्ष अक्सर यह प्रश्न आता है कि क्या एक प्रयुक्त विधि-माध्यम जैसे “हाबेयस कॉरपस” याचिका बच्चों की हिरासत-विषयक विवादों में लागू हो सकती है, विशेषकर जब हिरासतकर्ता प्राकृतिक अभिभावक हो और बच्चे के हित-भलाई का सवाल हो। पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट ने हाल में इस विषय में महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए हैं जिसमें विशेष रूप से यह उल्लेख है कि यदि माता-पक्ष ने पहले प्रारंभिक हिरासत-याचिकाएँ (उदाहरणस्वरूप Guardians and Wards Act, 1890 के अंतर्गत) दायर की थीं मगर न्यायालय से उसे छिपाया गया हो, तो उस याचिका-प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठता है।
इस लेख में हम (1) हिरासत-मामलों में हाबेयस कॉरपस याचिका का वैध दायरा, (2) पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट के निर्णयों का विश्लेषण, (3) माता द्वारा पहले की याचिकाओं को छिपाने के प्रभाव और न्यायशास्त्र-सिद्धांत, (4) व्यावहारिक सुझाव व अधिवक्ताओं-पक्षों के लिए दिशानिर्देश, तथा (5) निष्कर्ष प्रस्तुत करेंगे।
I. हिरासत-मामलों में “हाबेयस कॉरपस” का दायरा
(अ) “हाबेयस कॉरपस” याचिका – सामान्य विवेचना
हाबेयस कॉरपस याचिका मूलतः एक संवैधानिक–प्रिविलेज है, जिसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अनैतिक या अवैध तरीके से हिरासत में रखना — यानी कि उसकी आजादी को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त प्राधिकरण के बिना प्रतिबंधित करना — को चुनौती देना। न्यायालय के समक्ष यह पूछा जाता है: क्या हिरासत “कानून द्वारा अधिकृत नहीं है” या “अन्यायपूर्ण द्वार से है”?
जब इस अवधारणा को नाबालिग बच्चे की हिरासत-विवाद में लाया जाता है, तो न्यायालयों ने यह स्थापित किया है कि याचिका केवल तभी मान्य है जब:
- बच्चे की हिरासत अनधिकृत या अवैध हो — यानी वर्तमान हिरासतकर्ता-पक्ष को हिरासत का कानूनी अधिकार न हो।
- अन्य विधिक उपाय (जैसे हिरासत आवेदन-प्रक्रिया अधिनियमों के तहत) उपलब्ध हों, तब हाबेयस याचिका को अंतिम उपाय (remedy of last resort) माना जाए।
- हिरासत-प्रस्तुति, बच्चा-हित-विचार (welfare of child) एवं प्राकृतिक अभिभावक-अधिकारों (natural guardian rights) के बीच संतुलन दृष्टिगत हो।
(ब) हिरासत-मामलों में किन मामलों में याचिका स्वीकार हो सकती है
उदाहरणस्वरूप — यदि बच्चा अभिभावक-ऋणित व्यक्ति के यहाँ बिना अनुमति या न्यायालय-निर्णय के रखा شود, अथवा माता/पिता में से जिसे हिरासत नहीं मिली हो, वह बच्चा-कहने-पर हिरासतकर्ता को न्यायालय के समक्ष चुनौती दे सकती हो। ऐसी स्थितियों में हाबेयस कॉरपस-याचिका न्यायालय द्वारा अपनाई गई है।
(स) ध्यान देने योग्य बाधाएँ
पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिरासत-विवाद के लिए मूलतः परिचित विधिक प्लेटफॉर्म (जैसे Guardians and Wards Act, 1890) उपलब्ध हैं और हाबेयस याचिका उन्हें प्रतिस्थापित नहीं कर सकती।
II. पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट का विश्लेषण
(अ) प्रमुख निर्णय – Veerpal Kaur v. State of Punjab (2025)
- याचिकाकर्ता (माता) ने अपनी चार-साल की पुत्र की हिरासत पिता से छीनने हेतु हाबेयस कॉरपस याचिका दायर की।
- परन्तु न्यायालय ने पाया कि माता ने पहले ही हिरासत निर्गमन हेतु Guardians and Wards Act के अंतर्गत याचिका दायर कर रखी थी, मगर इसे याचिकाकर्ता ने हाबेयस याचिका में छिपाया था।
- न्यायमूर्ति Sumeet Goel ने स्पष्ट किया कि:
“हाबेयस कॉरपस याचिका हिरासत-विवादों में न्यायालय का प्राथमिक साधन नहीं है; इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में, जहाँ हिरासत स्पष्ट रूप से अवैध हो, प्रयोग किया जाना चाहिए।”
- न्यायालय ने यह देखा कि पिता नाबालिग का प्राकृतिक अभिभावक था एवं हिरासत-अस्वीकार की अवधि में कोई ठोस अवैधता नहीं पाई गई।
- अतः याचिका खारिज कर दी गयी, और माता को हाई-कोर्ट के समक्ष आगे की हिरासत-प्रक्रिया हेतु निर्देश दिया गया।
(ब) विश्लेषणात्मक बिंदु
- वैकल्पिक उपायों की उपलब्धता: माता ने पहले Guardians and Wards Act के अंतर्गत प्रक्रिया शुरू कर रखी थी — इसलिए हाबेयस याचिका तुरंत नहीं स्वीकार हो सकती थी।
- हिरासत की अवैधता की पूर्वापेक्षा: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बच्चे की हिरासत को ‘अवैध’ मानने के लिए कोई न्यायालय-आदेश नहीं था कि पिता हिरासत में रखने वाला अवैध है। इसलिए हाबेयस याचिका का दायरा नहीं खुला।
- याचिकाकर्ता द्वारा तथ्य-छिपाना: माता ने पहले की प्रक्रिया का खुलासा नहीं किया, जिससे न्यायालय ने उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाया। यह एक गंभीर कारक रहा।
- बच्चे-हित (Welfare of child) की सर्वोच्चता: न्यायालय ने बार-बार कहा कि हिरासत-विवाद में बच्चा-हित सर्वोच्च मानदंड है — मगर वह स्वचालित हिरासत-परिवर्तन का आधार नहीं हो जाता।
- हाबेयस याचिका का सीमित दायरा: रुलिंग ने यह पुनर्स्थापित किया कि हाबेयस कॉरपस हिरासत-विवादों में “सब से अंतिम उपाय” होना चाहिए — अर्थात् प्राथमिक रूप से संरक्षक-अधिनियमों के अंतर्गत सुनवाई होनी चाहिए।
(स) अन्य निर्णय-प्रसंग
- उदाहरणस्वरूप में, 2024 में Rajwinder Kaur v. State of Punjab (PHHC) में 8-वर्षीय बच्ची की हिरासत-मामले में हाई-कोर्ट ने माता की याचिका खारिज की क्योंकि बच्ची स्वयं “बुद्धिमत्ता से अपनी इच्छा व्यक्त करने योग्य” थी।
- न्यायालय ने कहा कि बड़ी आयु का बच्चा अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर फैसला कर सकता है — और हिरासत-परिवर्तन सिर्फ इसके आधार पर नहीं हो सकता।
III. माता द्वारा पहले की याचिकाएँ छिपाने का प्रभाव
(अ) तथ्य-सत्यापन एवं विश्वसनीयता
माता-पक्ष द्वारा पहले दायर याचिकाओं को नई याचिका में खुलासा न करना न्यायालय में उसकी विश्वसनीयता को प्रभावित करता है। हाई-कोर्ट ने इसे “unscrupulous attempt to circumvent proper forum” कहा।
जब याचिकाकर्ता न्यायालय को पूरी तर्क-स्थिति प्रस्तुत नहीं करती, तो न्यायालय समीकरण में पक्षपात या तथ्य-विफलता का जोखिम उठाता है।
(ब) प्रक्रिया-सिद्धांत के दृष्टिकोण से
- यदि माता पहले हिरासत याचिकाएँ दायर कर चुकी है, तो उसे हाबेयस याचिका के बजाय उस प्रचलित चल रही प्रक्रिया को आगे ले जाना उचित है।
- छिपाने से न्यायालय को यह शिकायत होती है कि याचिका-प्रक्रिया “proper statutory remedy” को दरकिनार करने का प्रयास है, जो न्यायशास्त्र-सिद्धांतों के विपरीत है।
- ऐसा छुपाना आगे उचित निर्णय हेतु बाधा बन सकता है, विशेषकर जब हिरासत-विवाद में पक्षों की दावेदारी एवं तथ्य परख की जाती है।
(स) उदाहरण के प्रभाव
उपरोक्त Veerpal-मामले में, माता के द्वारा पहले की याचिका न बताना न्यायालय द्वारा उसकी दलील-स्थिति को कमजोर करने वाला माना गया। न्यायालय ने यह कहा कि “‘pre-requisite jurisdictional fact’ के बिना writ याचिका नहीं दी जा सकती”।
IV. व्यावहारिक सुझाव – अधिवक्ताओं और पक्षों के लिए
(१) माता-पक्ष के लिए सुझाव
- हिरासत-मामले में तुरंत उचित प्लेटफॉर्म (जैसे Guardians and Wards Act) के अंतर्गत याचिका दायर करें; हाबेयस याचिका सिर्फ तब पूछें जब हिरासत अवैध हो।
- यदि पहले याचिका दायर की हो, तो हाबेयस याचिका में उस याचिका-प्रक्रिया की जानकारी पूर्णतः दें।
- याचिका में बच्चा-हित (welfare of child) का स्पष्ट प्रदर्शन करें — जैसे वातावरण, माता-संबंध, शिक्षा-स्थिति, सामाजिक सुरक्षा आदि।
- तथ्य छुपाना या गलत जानकारी देने से न्यायालय की सहानुभूति खो सकती है — विश्वास-निर्माण महत्वपूर्ण है।
(२) पिता-प्रति पक्ष / हिरासतकर्ता के लिए सुझाव
- यदि आप हिरासत में हैं, सुनिश्चित करें कि आपके पास कानूनी अधिकार मौजूद है (उदाहरण-न्यायालय-निर्णय या अभिभावक-अधिकार) ताकि हिरासत ‘वैध’ मानी जा सके।
- हाबेयस याचिका के विरुद्ध-दलील में यह स्पष्ट हो कि हिरासत अवैध नहीं थी और उचित प्रकिया चलते रही।
- प्रतिवादी को यह भी देखना चाहिए कि हिरासत-मामले में प्रतिपक्ष द्वारा पहले याचिकाएँ दायर की गई थीं या नहीं — और अगर हाँ, उन्हें न्यायालय के सामने उजागर करें।
(३) अधिवक्ताओं के लिए रणनीतिक बिंदु
- याचिका दाखिल करते समय, “हिरासत अवैध/अनधिकृत है”-का आधार चलायें — सिर्फ ‘माता-मैं बेहतर देखभाल कर सकती हूँ’-पर निर्भर नहीं रहें।
- न्यायालय-पूर्व चर्चाओं (precedents) को ध्यान से देखें — जैसे कि P&H HC ने कहा है कि “हाबेयस कॉरपस याचिका वितरण मंच नहीं” है।
- यदि पक्ष पहले की याचिकाएँ छिपा रहा है, तो उसे निरूपित करें — यह केस-दलील में महत्वपूर्ण बन सकती है।
- बच्चा-हित (best interest of minor) की ओर रुख करें; तथ्य-साक्ष्य-सुनवाई-मूल्यांकन को प्राथमिकता दें।
V. निष्कर्ष
पंजाब एवं हरियाणा हाई-कोर्ट की यह व्याख्या अत्यंत प्रासंगिक है — कि बच्चों की हिरासत-मामलों में हाबेयस कॉरपस याचिका स्वतः प्रथम विकल्प नहीं है। यह तभी स्वीकार्य होगी जब हिरासत अवैध या अनधिकृत हो, अन्यथा वह उचित जागरूक प्रक्रिया-मंच (जैसे Guardians and Wards Act) को दरकिनार करने का माध्यम बनी। साथी-साथ, माता-पक्ष द्वारा पहले की हिरासत-याचिकाओं का खुलासा न करना न्यायालय की दृष्टि में घटक-तत्व बन जाता है जो पक्ष की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।
इस प्रकार, हिरासत-विवादों में न्यायशास्त्र-दृष्टि से उचित मार्ग यही है कि पक्ष समय-प्रति समय उचित विधिक मंच को चुनें, तथ्य-प्रस्तुति स्पष्ट करें, और हाबेयस कॉरपस-याचिका को तभी प्रयोग करें जब विधिक रूप से उपयुक्त आधार मौजूद हो।
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