बहराइच दुर्गा विसर्जन यात्रा हत्या कांड: अदालत ने सुनाया कठोर फैसला — मुख्य आरोपी सरफराज उर्फ रिंकू को फांसी, नौ को आजीवन कारावास
Court cites Manusmriti; Calls the murder “brutal, heinous and cold-blooded”
उत्तर प्रदेश के बहराइच में 13 अक्टूबर 2024 को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन यात्रा के दौरान हुई दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था। इस सांप्रदायिक तनावपूर्ण माहौल में भीड़ ने रामगोपाल मिश्रा नामक व्यक्ति को निशाना बनाकर जिस बर्बरता से हत्या की, उसने मानवता को शर्मसार कर दिया। महीनों चली सुनवाई के बाद अदालत ने गुरुवार, 11 दिसंबर 2024 को अपना ऐतिहासिक और कठोर फैसला सुनाया।
कोर्ट ने मुख्य आरोपी सरफराज उर्फ रिंकू को मौत की सज़ा सुनाई, जबकि अन्य नौ आरोपियों—
अब्दुल हमीद, फहीम, तालिब उर्फ सबलू, सैफ अली, जावेद खान, जिशान उर्फ राजा, शोएब खान, ननकऊ और मारूफ अली—को आजीवन कारावास की सज़ा दी।
अदालत ने सभी आरोपियों को जिला कारागार से कड़ी सुरक्षा में पेश कराया।
फैसले में अदालत ने न केवल हत्या की क्रूरता का उल्लेख किया, बल्कि मनुस्मृति का भी उल्लेख कर यह स्पष्ट किया कि समाज में व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखने के लिए कठोर दंड अनिवार्य है।
1. घटनाक्रम जिसने पूरे प्रदेश को दहला दिया
13 अक्टूबर 2024 की शाम बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन यात्रा जोश और उत्साह के साथ आगे बढ़ रही थी। इसी दौरान सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ और कुछ उपद्रवी तत्वों ने मौके का फायदा उठाकर रामगोपाल मिश्रा पर हमला किया। भीड़ उग्र होती चली गई और देखते ही देखते रामगोपाल को पकड़कर उसके साथ निर्मम अत्याचार किए गए।
अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फॉरेंसिक विवरणों ने अदालत को भी स्तब्ध कर दिया। रामगोपाल पर न केवल 7-8 राउंड गोलियां चलाई गईं, बल्कि उसके शरीर पर लगभग 40 प्रवेश घाव (entry wounds) और 2 निकास घाव पाए गए। यही नहीं, हत्या से पहले पीड़ित के पैरों के अंगूठों को जलाकर deep burn injuries दी गईं और उसके नाखूनों को खींचा गया था।
अदालत ने कहा कि यह घटना किसी भी सभ्य समाज की आत्मा को झकझोर देने के लिए पर्याप्त है।
2. अभियोजन पक्ष का तर्क: ‘यह सामान्य हत्या नहीं, समाज पर सीधा हमला’
सरकारी वकील ने अदालत के सामने बड़े विस्तार से बताया कि यह हत्या किसी आकस्मिक झगड़े का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह पूरी तरह योजनाबद्ध, क्रूर और घोर जघन्य अपराध था। उन्होंने कहा—
“यह हत्या brutality और heinousness का चरम उदाहरण है।”
अभियोजन का कहना था कि इस हत्याकांड का उद्देश्य केवल एक व्यक्ति की हत्या करना नहीं था, बल्कि शहर में अपना वर्चस्व स्थापित करना था। इस घटना के बाद बहराइच शहर में भारी दहशत फैल गई।
- स्कूल बंद करने पड़े
- इंटरनेट सेवाएं तीन दिनों तक बंद रखी गईं
- RAF और PAC की तैनाती हुई
- बाजार बंद रहे
- लोगों में भय का माहौल था
- सामान्य स्थिति लौटने में एक महीने से अधिक का समय लगा
सरकारी वकील ने इसे “मां भारती पर प्रहार” बताते हुए कठोरतम दंड की मांग की।
3. अदालत ने मनुस्मृति का किया उल्लेख: दंड ही समाज की सुरक्षा का आधार
अपने फैसले में न्यायालय ने मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा—
“दण्ड शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति,
दण्ड सुप्तेषु जागर्ति, दण्ड धर्म विदुर्वधा।”**
अर्थात—
समाज की रक्षा दंड व्यवस्था से होती है। दंड ही वह तत्व है जो सोए हुए लोगों की भी सुरक्षा करता है और अधर्म को नियंत्रित कर समाज में शांति और अनुशासन बनाए रखता है।
न्यायालय ने कहा कि हत्या की इस क्रूरता और इसके सामाजिक प्रभाव को देखते हुए, दोषियों को कठोर दंड देना ही न्याय एवं समाज दोनों के हित में है। यदि ऐसे अपराधियों को दंड नहीं दिया जाएगा तो यह संदेश जाएगा कि कानून का भय समाप्त हो गया है।
4. बचाव पक्ष की दलीलें और अदालत की प्रतिक्रिया
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि—
- यह आरोपियों का पहला अपराध है
- उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है
- वे कम सजा के पात्र हैं
- उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए
मगर अदालत ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया।
कोर्ट ने कहा कि जब अपराध सामाजिक मूल्यों को चुनौती देता है, सांप्रदायिक सद्भाव को प्रभावित करता है, शहर की व्यवस्था को ठप कर देता है और मानवता के सभी मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तब “पहला अपराध” भी दया का आधार नहीं बन सकता।
अदालत ने कहा—
“यह हत्या आकस्मिक आवेग में नहीं, बल्कि ठंडे दिमाग और पूरी योजना के साथ की गई थी।”
5. हत्या की योजना: अदालत ने कैसे स्थापित की?
कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण तथ्य लिखे—
- दोषियों ने मृतक को उसके घर से खींचकर बाहर लाया।
- सरफराज ने लाइसेंसी बंदूक से जानलेवा हमला किया।
- फायरिंग रुकने के बाद भी मृतक को यातना दी गई।
- मृतक का शरीर ‘छन्नी जैसा’ हो चुका था।
- अंगूठों को जलाना और नाखून निकालना साबित करता है कि यह कोई सामान्य हत्या नहीं थी।
अदालत ने इसे “हिंसा की पराकाष्ठा” बताया।
6. ‘Rarest of Rare Case’: मौत की सज़ा क्यों?
भारत में मृत्युदंड केवल ‘Rarest of Rare’ मामलों में दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णयों—
- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980)
- मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य (1983)
—में मृत्युदंड देने के सिद्धांतों का स्पष्ट विवरण मिलता है।
कोर्ट ने कहा कि मृत्युदंड देने के लिए यह देखना आवश्यक है—
- अपराध की प्रकृति कितनी जघन्य है
- अपराध का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा
- आरोपी की मानसिकता और योजना क्या थी
- क्या आजीवन कारावास अपराध के अनुरूप दंड है?
अदालत ने पाया कि—
- हत्या पूरी तरह योजनाबद्ध थी
- मृतक को अत्यधिक क्रूरता से मारा गया
- यह हत्या सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने वाली थी
- शहर की शांति और व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई
- दोषियों में किसी प्रकार का सुधार की संभावना कम दिखी
इन सभी आधारों पर अदालत ने मुख्य आरोपी सरफराज को मृत्युदंड दिया।
7. बाकी आरोपियों को आजीवन कारावास क्यों?
कोर्ट ने माना कि —
- नौ अन्य आरोपियों ने भी हत्या की पूरी योजना में सक्रिय भूमिका निभाई
- उन्होंने मृतक को पकड़ने, घसीटने, घेरने और मारने में प्रत्यक्ष भागीदारी की
- लेकिन गोली चलाने वाला मुख्य अपराधी सरफराज था
इसलिए उसके लिए मृत्युदंड और बाकी दोषियों के लिए आजीवन कारावास उपयुक्त है।
कोर्ट ने कहा—
“समाज का विश्वास बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि ऐसे अपराधों पर कठोरतम दंड दिया जाए।”
8. अदालत का विश्लेषण: अपराध की क्रूरता शब्दों से परे
न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में लिखा—
- “मृतक को जिस प्रकार मारा गया वह किसी युग की सबसे बर्बर घटनाओं में से एक है।”
- “मानवता को शर्मसार करने वाला अपराध।”
- “यह घटना केवल हत्या नहीं, बल्कि संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था पर हमला है।”
कोर्ट ने आगे कहा कि यदि ऐसे अपराधों में कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तो कानून का शासन (Rule of Law) कमजोर हो जाएगा और समाज अराजकता की ओर बढ़ जाएगा।
9. इस फैसले का सामाजिक और कानूनी महत्व
(1) समाज में कानून की शक्ति का संदेश
इस फैसले ने यह संदेश दिया कि—
कानून के खिलाफ खड़े होने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा।
(2) सांप्रदायिक सद्भाव की रक्षा
सांप्रदायिक हिंसा फैलाने वालों को कड़ी सज़ा देकर अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत जैसे विविधता वाले देश में ऐसी घटनाएं असहनीय हैं।
(3) न्यायपालिका की संवेदनशीलता
अदालत ने पीड़ित के परिवार, शहर के माहौल और जघन्य अपराध के सामाजिक प्रभाव को ध्यान में रखकर निर्णय दिया।
(4) धर्मग्रंथों का संदर्भ और कानून व्यवस्था
मनुस्मृति का उल्लेख न्याय व्यवस्था की प्राचीन अवधारणाओं और आधुनिक दंड सिद्धांतों के संगम को दर्शाता है।
10. निष्कर्ष: न्याय का कठोर लेकिन आवश्यक निर्णय
बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन यात्रा के दौरान हुई रामगोपाल मिश्रा की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि यह समाज में भय, सांप्रदायिक तनाव, और हिंसा का बीज बोने की कोशिश थी। अदालत ने न केवल अपराध की क्रूरता को समझा, बल्कि उसके व्यापक सामाजिक प्रभाव को भी गहराई से परखा।
मुख्य आरोपी सरफराज को मृत्युदंड और बाकी दोषियों को आजीवन कारावास देकर अदालत ने यह संदेश दिया है कि—
अपराध कितना भी योजनाबद्ध और क्रूर क्यों न हो, कानून उससे भी अधिक शक्तिशाली है।
मनुस्मृति के सिद्धांतों और आधुनिक कानून के दंड सिद्धांतों का समन्वय करते हुए अदालत ने न्याय का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसे आने वाले वर्षों तक उद्धृत किया जाएगा।