बलात्कार मामले में अभियोजन की कहानी अविश्वसनीय – आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बरी का फैसला बरकरार रखा

बलात्कार मामले में अभियोजन की कहानी अविश्वसनीय – आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बरी का फैसला बरकरार रखा

प्रस्तावना
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने State of Andhra Pradesh बनाम के.बी. गोविंदु (07 अगस्त 2025) में एक महत्वपूर्ण आपराधिक अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें बलात्कार और घर में घुसपैठ के आरोपों से आरोपी को बरी करने का निचली अदालत का निर्णय बरकरार रखा गया। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष की कहानी तथ्यों और परिस्थितियों से मेल नहीं खाती, और इसमें कई गंभीर विरोधाभास हैं।


मामले की पृष्ठभूमि

  • धारा 376 आईपीसी – बलात्कार
  • धारा 450 आईपीसी – घर में घुसकर गंभीर अपराध करना
    अभियोजन का आरोप था कि आरोपी ने पीड़िता के घर में प्रवेश कर, उसे रस्सी से बांधकर और मुंह पर कपड़ा बांधकर बलात्कार किया। पीड़िता उस समय घर पर अकेली थी।

हाईकोर्ट में उठे संदेह के मुख्य बिंदु

  1. एक व्यक्ति द्वारा पूरी तरह नियंत्रण असंभव
    अदालत ने सवाल उठाया कि यदि पीड़िता होश में थी, तो आरोपी अकेले कैसे बिना किसी प्रतिरोध के—

    • पीड़िता का मुंह बंद कर,
    • उसके हाथ रस्सी से बांधकर,
    • पैरों को लुंगी से कसकर बांधकर,
      बलात्कार कर सकता है।
  2. चिकित्सकीय साक्ष्य का विरोधाभास
    • मेडिकल जांच में पीड़िता की पीठ, नितंब, पैर या निजी अंगों पर कोई चोट के निशान नहीं पाए गए।
    • अभियोजन की कहानी के अनुसार, हिंसक तरीके से बांधने और प्रतिरोध करने पर चोटें होना स्वाभाविक था, जो अनुपस्थित थीं।
  3. शारीरिक संभावना पर सवाल
    • अभियोजन ने यह नहीं बताया कि पैरों को कसकर बांधे जाने और टांगें क्रॉस होने की स्थिति में बलात्कार शारीरिक रूप से कैसे संभव हुआ।
  4. शोर और पड़ोसियों की प्रतिक्रिया का अभाव
    • अभियोजन ने यह नहीं समझाया कि घटना के दौरान कोई पड़ोसी या राहगीर पीड़िता की चीखें क्यों नहीं सुन सका।
  5. प्राकृतिक आचरण का अभाव
    • कोर्ट ने माना कि यह स्वाभाविक नहीं है कि एक अकेला व्यक्ति होश में मौजूद महिला को बिना संघर्ष और शोर के इस तरह नियंत्रित कर सके।

अदालत का निष्कर्ष

  • अभियोजन की कहानी में गंभीर असंगतियां और असंभव परिस्थितियां थीं।
  • चिकित्सकीय साक्ष्य और प्रत्यक्ष परिस्थितियां अभियोजन के दावे से मेल नहीं खातीं।
  • संदेह का लाभ आरोपी को दिया गया।

फैसला:
ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी करने का निर्णय सही था और उसे बरकरार रखा गया।


कानूनी महत्व

  • यह फैसला इस सिद्धांत को दोहराता है कि गंभीर आपराधिक मामलों में अभियोजन को संदेह से परे अपराध साबित करना अनिवार्य है
  • चिकित्सकीय साक्ष्य और परिस्थितिजन्य साक्ष्य यदि अभियोजन की कहानी का खंडन करते हैं, तो अदालत बरी करने का आदेश दे सकती है।
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल आरोप पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके समर्थन में विश्वसनीय, तर्कसंगत और संगत साक्ष्य होना जरूरी है।