शीर्षक:
“बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में समझौता अस्वीकार्य: समाजहित बनाम व्यक्तिगत सहमति का न्यायिक मूल्यांकन”
(Dnyaneshwar S/o Vishnu Suryawanshi Versus State of Maharashtra)
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
भूमिका:
भारतीय दंड कानून व्यवस्था में बलात्कार (Rape) जैसे गंभीर अपराध को अत्यंत संवेदनशील एवं समाज पर गहरे प्रभाव वाला अपराध माना जाता है। यह न केवल एक व्यक्ति विशेष के विरुद्ध अपराध है, बल्कि समूचे समाज के नैतिक ताने-बाने पर आघात करता है। इसी संदर्भ में, बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने Dnyaneshwar S/o Vishnu Surywanshi बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि बलात्कार जैसे अपराधों में ‘समझौता’ स्वीकार नहीं किया जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में, दो पुरुषों पर एक महिला द्वारा बलात्कार का आरोप लगाया गया था। जांच के दौरान, यह दलील दी गई कि पीड़िता और आरोपी पक्ष के बीच समझौता हो गया है और इसलिए प्राथमिकी (FIR) को रद्द किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता ने अदालत से धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत FIR रद्द करने की अपील की।
अदालत का विश्लेषण:
औरंगाबाद पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बलात्कार जैसे गंभीर और नैतिक रूप से घृणित अपराध में ‘समझौता’ एक ऐसा तर्क नहीं हो सकता जो FIR को रद्द करने का आधार बने। अदालत ने यह माना कि ऐसा समझौता न केवल विधिक नीति के विरुद्ध है, बल्कि सामाजिक हित और न्याय की अवधारणा पर भी कुठाराघात करता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- बलात्कार कोई निजी विवाद नहीं है:
बलात्कार का अपराध केवल पीड़िता पर ही नहीं, पूरे समाज की चेतना और नैतिकता पर हमला करता है। इसीलिए, यह एक ऐसा अपराध है जिसमें समझौता सामाजिक हित के विरुद्ध माना जाता है। - समझौता न्याय को बाधित करता है:
यदि ऐसे मामलों में समझौता स्वीकार कर लिया जाए, तो यह न केवल आरोपियों को सजा से बचाने का मार्ग बनता है, बल्कि पीड़िताओं को न्याय से वंचित करता है। - FIR रद्द करने का अधिकार सीमित:
भारतीय न्यायालयों ने बार-बार दोहराया है कि धारा 482 सीआरपीसी का उपयोग गंभीर अपराधों में FIR रद्द करने के लिए नहीं किया जा सकता, खासकर जब अपराध समाज के नैतिक ढांचे को प्रभावित करता हो।
न्यायालय का निर्णय:
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से याचिका को खारिज करते हुए कहा कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में कोई भी समझौता स्वीकार्य नहीं है और ऐसे मामलों में FIR को रद्द करना न्याय की अवमानना होगी।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय न केवल एक उदाहरण है कि कैसे भारतीय न्यायपालिका गंभीर अपराधों में कठोर रुख अपनाती है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कानून केवल पीड़िता और आरोपी तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक सामाजिक हितों की रक्षा के लिए भी है।
निष्कर्ष:
Dnyaneshwar S/o Vishnu Surywanshi केस में लिया गया निर्णय यह दर्शाता है कि न्याय केवल व्यक्तिगत सहमति या समझौते के आधार पर नहीं, बल्कि विधिक सिद्धांतों और सामाजिक नैतिकता पर आधारित होना चाहिए। इस निर्णय ने एक बार फिर यह स्थापित किया है कि बलात्कार जैसे अपराधों में कोई भी समझौता समाजहित में स्वीकार्य नहीं है, और अपराधियों को सजा से बच निकलने का अवसर नहीं दिया जा सकता।