“फ्रीज अकाउंट के कारण चेक बाउंस: क्या यह धारा 138 NI Act के अंतर्गत अपराध है?”

“फ्रीज अकाउंट के कारण चेक बाउंस: क्या यह धारा 138 NI Act के अंतर्गत अपराध है?”

लेख:
धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत चेक के अनादर (Dishonour of Cheque) को एक दंडनीय अपराध माना गया है, जब चेक “अपर्याप्त धनराशि” (insufficient funds) या “अकाउंट बंद” (account closed) जैसे कारणों से बाउंस होता है। परंतु जब किसी व्यक्ति का खाता “फ्रीज़” (Frozen Account) होता है और इस कारण से चेक अनादरित होता है, तब प्रश्न उठता है कि क्या इसे भी धारा 138 के अंतर्गत अपराध माना जाएगा?

🔍 दिल्ली हाईकोर्ट का निर्णय:

मामला: Advocate Devender v. State (NCT of Delhi)
फैसला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि चेक इसलिए बाउंस होता है क्योंकि खाता फ्रीज़ कर दिया गया है, तो इसे परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता।

न्यायालय की मुख्य टिप्पणी:

“When a cheque is dishonoured due to a ‘frozen account’ and not due to insufficiency of funds or account closure at the behest of the drawer, the essential ingredients of Section 138 NI Act are not fulfilled.”

⚖️ धारा 138 के लिए आवश्यक तत्व (Essential Ingredients):

  1. चेक की निकासी किसी ऋण या दायित्व के भुगतान के लिए होनी चाहिए।
  2. चेक प्रस्तुत करने के पश्चात वह बैंक द्वारा अनादरित होना चाहिए (insufficient funds/ exceeds arrangement) के कारण।
  3. अनादर के बाद विधिक नोटिस 15 दिनों में भेजा जाना चाहिए।
  4. भुगतान के लिए 15 दिन का अवसर दिए जाने के बावजूद भुगतान नहीं किया गया हो।

❌ लेकिन “फ्रीज्ड अकाउंट” के मामलों में यह तत्व पूर्ण नहीं होते। खाता फ्रीज़ होना व्यक्ति की मंशा या उसकी वित्तीय स्थिति का प्रतिबिंब नहीं होता, बल्कि यह कानूनी प्रतिबंधों या जांच एजेंसियों के आदेशों के कारण होता है।

📌 निष्कर्ष:

यदि कोई चेक फ्रीज़ किए गए खाते से जारी किया गया हो और वह अनादरित हो जाए, तो इसे धारा 138 NI Act के तहत दंडनीय अपराध नहीं माना जाएगा। यह निर्णय उन मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है जहां खाताधारक की मंशा धोखाधड़ी की नहीं थी, बल्कि खाते पर वैधानिक प्रतिबंध के चलते भुगतान असंभव हो गया।