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फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त नियम: हाई सिक्योरिटी ज़ोन में पूर्ण प्रतिबंध

फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त नियम: हाई सिक्योरिटी ज़ोन में पूर्ण प्रतिबंध

भारत की सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) देश की न्यायपालिका का सर्वोच्च मंच है। यहाँ न्याय की गरिमा, गोपनीयता, और अनुशासन बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसी क्रम में न्यायालय ने हाल ही में हाई सिक्योरिटी ज़ोन (High Security Zone) में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है। यह कदम न्यायालय की सुरक्षा, मामलों की गोपनीयता, और न्याय प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखने के लिए उठाया गया है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि यह नियम क्या है, किन क्षेत्रों में लागू होता है, किन लोगों पर इसका प्रभाव पड़ेगा, नियम तोड़ने पर क्या कार्रवाई होगी, और इसका मीडिया तथा आम नागरिकों पर क्या असर पड़ेगा।


हाई सिक्योरिटी ज़ोन क्या है?

सुप्रीम कोर्ट परिसर में सुरक्षा के दृष्टिकोण से अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए गए हैं। इनमें मुख्य रूप से दो क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं:

  1. हाई सिक्योरिटी ज़ोन (High Security Zone):
    इसमें मुख्य कोर्टरूम, लॉन का वह भाग जो कोर्ट के मुख्य परिसर से जुड़ा है, न्यायाधीशों का प्रवेश क्षेत्र, और अन्य संवेदनशील स्थान शामिल हैं। यहाँ प्रवेश के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है।
  2. लो सिक्योरिटी ज़ोन (Low Security Zone):
    इसमें वह क्षेत्र आता है जहाँ आम लोग, मीडिया, वकील आदि प्रवेश कर सकते हैं। यहाँ सीमित समय और सीमित उद्देश्य के लिए मीडिया को इंटरव्यू, रिपोर्टिंग और लाइव ब्रॉडकास्ट की अनुमति है।

नियमों का सारांश

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

✅ हाई सिक्योरिटी ज़ोन में प्रतिबंध

  • कोर्टरूम, लॉन और अन्य संवेदनशील क्षेत्र में फोटो और वीडियो रिकॉर्डिंग पूरी तरह प्रतिबंधित है।
  • मोबाइल फोन से फोटो, वीडियो, लाइव स्ट्रीमिंग पर रोक है।
  • कैमरा, ट्राइपॉड, सेल्फी स्टिक और अन्य उपकरणों का उपयोग प्रतिबंधित है।
  • सोशल मीडिया पर रील्स, शॉर्ट वीडियो, या लाइव कंटेंट बनाना मना है।

✅ केवल आधिकारिक कार्य हेतु अनुमति

  • कोर्ट की कार्यवाही का दस्तावेज़ीकरण केवल आधिकारिक आदेश और अनुमति के आधार पर ही किया जा सकता है।
  • न्यायालय प्रशासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक होगा।

✅ लो सिक्योरिटी ज़ोन में सीमित अनुमति

  • मीडिया पर्सनल इंटरव्यू और ब्रॉडकास्ट केवल लॉन के लो सिक्योरिटी क्षेत्र में कर सकते हैं।
  • वहाँ भी निर्धारित समय और अनुमति के आधार पर कार्य करना होगा।

किस पर लागू होगा यह नियम?

यह नियम केवल आम लोगों पर ही नहीं, बल्कि न्यायालय से जुड़े अन्य वर्गों पर भी लागू होता है:

  1. मीडिया पर्सनल:
    सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार, फोटोग्राफर और वीडियो ग्राफर केवल लो सिक्योरिटी क्षेत्र में ही रिपोर्टिंग कर सकते हैं। हाई सिक्योरिटी ज़ोन में प्रवेश प्रतिबंधित होगा।
  2. वकील (Advocates):
    न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों को भी कोर्ट परिसर में फोटो और वीडियो लेने की अनुमति नहीं होगी। उल्लंघन की स्थिति में बार एसोसिएशन कार्रवाई कर सकती है।
  3. मुकदमे से जुड़े पक्षकार (Litigants):
    जिन लोगों के मामले कोर्ट में चल रहे हैं, उन्हें भी हाई सिक्योरिटी क्षेत्र में मोबाइल से फोटो या वीडियो बनाने की मनाही है।
  4. इंटर्न और लॉ क्लर्क:
    कानून के छात्रों और लॉ क्लर्कों को भी न्यायालय की प्रक्रिया का सम्मान करते हुए नियमों का पालन करना होगा।
  5. स्टाफ:
    सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में काम कर रहे कर्मचारियों को भी निर्देश का पालन करना होगा। उल्लंघन की स्थिति में उनके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी।

नियम तोड़ने पर क्या होगी कार्रवाई?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि नियमों का उल्लंघन गंभीर अपराध माना जाएगा। कार्रवाई के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • मीडिया कर्मियों के लिए:
    यदि कोई मीडिया पर्सनल हाई सिक्योरिटी क्षेत्र में जाकर फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी करता है, तो उसके प्रवेश पर एक महीने तक रोक लगाई जा सकती है। मीडिया संगठन से संबंधित अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई भी संभव है।
  • वकील, मुकदमेबाज, लॉ क्लर्क के लिए:
    बार एसोसिएशन या स्टेट बार काउंसिल उन्हें नोटिस देकर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है। इसमें चेतावनी, निलंबन, या अन्य दंड शामिल हो सकते हैं।
  • स्टाफ के लिए:
    सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा संबंधित कर्मचारियों पर प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी। इसमें सेवा नियमों के तहत कार्यवाही शामिल हो सकती है।

नियम का उद्देश्य

इस नियम के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:

  1. न्यायालय की गरिमा बनाए रखना:
    कोर्ट में होने वाली कार्यवाही का सम्मान आवश्यक है। अनावश्यक फोटोग्राफी न्यायिक प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
  2. सुरक्षा सुनिश्चित करना:
    सुप्रीम कोर्ट एक अत्यंत संवेदनशील स्थल है। यहाँ किसी भी प्रकार की सुरक्षा भंग न हो, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  3. गोपनीयता की रक्षा:
    कई मामलों में न्यायालय की सुनवाई गोपनीय होती है। मीडिया कवरेज से न्याय प्रभावित हो सकता है।
  4. डिजिटल दुरुपयोग रोकना:
    सोशल मीडिया पर गलत संदर्भ में वीडियो या फोटो साझा कर न्यायालय की छवि खराब की जा सकती है। ऐसे दुरुपयोग को रोकना आवश्यक है।
  5. न्यायिक प्रक्रिया में अनुशासन:
    कोर्ट परिसर में पेशेवर व्यवहार और अनुशासन बनाए रखना, न्यायिक कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए आवश्यक है।

मीडिया पर प्रभाव

यह नियम मीडिया के लिए चुनौती भी है और अनुशासन का अवसर भी:

✔ अब उन्हें रिपोर्टिंग के लिए तयशुदा स्थानों का उपयोग करना होगा।
✔ कोर्ट की कार्यवाही पर जानकारी देने के लिए अधिक सावधानी बरतनी होगी।
✔ सोशल मीडिया पर कंटेंट डालने से पहले अनुमति और नियमों का पालन करना आवश्यक होगा।
✔ मीडिया को कोर्ट के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी।


आम नागरिकों और वकीलों पर प्रभाव

✔ कोर्ट परिसर में पेशेवर व्यवहार और मर्यादा का पालन बढ़ेगा।
✔ मोबाइल उपकरणों का उपयोग केवल जरूरी कार्यों तक सीमित होगा।
✔ गलत तरीके से रिकॉर्डिंग करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
✔ न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुरक्षा का संतुलन बना रहेगा।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाई सिक्योरिटी ज़ोन में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर लगाया गया प्रतिबंध न्याय व्यवस्था की गरिमा, सुरक्षा, और अनुशासन को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नियम केवल प्रतिबंध नहीं, बल्कि न्यायालय परिसर में पेशेवर और जिम्मेदार आचरण को बढ़ावा देने का प्रयास है। मीडिया, वकीलों, मुकदमेबाजों, और कर्मचारियों को इस नियम का पालन करते हुए न्याय प्रणाली का सम्मान करना चाहिए। नियमों का उल्लंघन न केवल व्यक्तिगत दंड का कारण बन सकता है, बल्कि न्यायालय की प्रतिष्ठा पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए आवश्यक है कि सभी संबंधित पक्ष इन नियमों को समझें और लागू करें ताकि न्याय व्यवस्था की शुचिता बनी रहे।