“फास्टैग और वाहन वर्गीकरण में विसंगति पर अतिरिक्त टोल शुल्क वैध: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”

लेख शीर्षक:
“फास्टैग और वाहन वर्गीकरण में विसंगति पर अतिरिक्त टोल शुल्क वैध: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”


परिचय:
भारत में टोल संग्रह प्रणाली को पारदर्शी और तेज़ बनाने हेतु FASTag प्रणाली को लागू किया गया है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 (National Highways Act, 1956) के अधीन संचालित होती है। FASTag के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह किया जाता है और वाहन मालिकों को अपने वाहन के पंजीकरण के अनुरूप सही श्रेणी का FASTag लगाना आवश्यक होता है। हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि वाहन की पंजीकरण विवरण और FASTag की घोषणा में अंतर पाया जाता है, तो कंसेशनर (संचालक) को बाद में (post facto) अतिरिक्त टोल शुल्क लगाने का अधिकार है।


मामले की पृष्ठभूमि:
एक वाहन मालिक द्वारा यह याचिका दायर की गई थी कि उसका टोल लेन-देन पहले ही हो चुका था, लेकिन बाद में उसे अतिरिक्त टोल शुल्क का भुगतान करने के लिए कहा गया। वाहन की रजिस्ट्रेशन जानकारी और FASTag में उल्लिखित श्रेणी में अंतर पाया गया — जैसे वाहन वास्तव में व्यावसायिक श्रेणी (commercial vehicle) का था लेकिन FASTag निजी श्रेणी (private) का लगा हुआ था।

इस पर विवाद उत्पन्न हुआ कि क्या इस प्रकार की विसंगति की स्थिति में टोल संचालक को पूर्व में किए गए भुगतान के बावजूद अतिरिक्त शुल्क वसूलने का अधिकार है या नहीं


राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 और टोल नियम:

  • यह अधिनियम टोल संग्रह के संचालन, शुल्क निर्धारण, और शुल्क वसूली के अधिकारों को परिभाषित करता है।
  • इसके तहत सरकार या सरकार द्वारा नियुक्त कंसेशनर टोल दरें तय कर सकता है और वाहन की श्रेणी के अनुसार शुल्क ले सकता है।
  • नियमों के अनुसार यदि वाहन श्रेणी की जानकारी गलत दी जाती है तो टोल एजेंसी को सही श्रेणी के अनुसार शुल्क वसूलने का अधिकार है।

कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:

  1. FASTag की त्रुटिपूर्ण घोषणा:
    यदि FASTag पर दर्ज श्रेणी वाहन के वास्तविक पंजीकरण से मेल नहीं खाती, तो यह उपयोगकर्ता की गलती मानी जाएगी।
  2. संचालक का अधिकार:
    टोल संचालक को यह वैध अधिकार प्राप्त है कि वह बाद में जानकारी की पुष्टि करने पर, गलत श्रेणी के FASTag के आधार पर कम भुगतान की स्थिति में अतिरिक्त टोल वसूल सके।
  3. पारदर्शिता और सार्वजनिक धन की सुरक्षा:
    न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि गलत FASTag से कम शुल्क लिया जाता है और संचालक को यह वसूलने की अनुमति नहीं दी जाती, तो इससे सार्वजनिक धन की हानि होगी और सिस्टम का दुरुपयोग बढ़ेगा।
  4. प्रक्रिया की न्यायसंगतता:
    कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वाहन मालिक को नोटिस देकर जवाब देने का अवसर दिया जाना चाहिए, लेकिन यदि स्पष्ट गड़बड़ी है, तो अतिरिक्त वसूली वैध मानी जाएगी।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • FASTag के माध्यम से किए गए टोल भुगतान में सत्यता और पारदर्शिता आवश्यक है।
  • वाहन की वास्तविक श्रेणी और FASTag की जानकारी में मेल होना अनिवार्य है।
  • गलत जानकारी देकर टोल कम चुकाना एक प्रकार का धोखाधड़ी माना जा सकता है।
  • टोल संचालक को इस प्रकार की विसंगति की पहचान कर बाद में अतिरिक्त शुल्क वसूलने का वैधानिक अधिकार है।

निष्कर्ष:
यह निर्णय FASTag प्रणाली की पारदर्शिता बनाए रखने, दुरुपयोग को रोकने और सार्वजनिक राजस्व की रक्षा हेतु एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वाहन मालिकों की जिम्मेदारी है कि वे सही जानकारी FASTag प्रणाली में दर्ज करवाएं। यदि कोई विसंगति पाई जाती है, तो टोल संचालक को अतिरिक्त शुल्क वसूलने से रोका नहीं जा सकता।

यह न्यायिक व्याख्या राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम और इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली के बेहतर प्रवर्तन में सहायक सिद्ध होगी।