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फर्जी दस्तावेज़ और बयान से मुकरी महिला: पॉक्सो एक्ट में दुरुपयोग पर विशेष न्यायालय का सख्त रुख

फर्जी दस्तावेज़ और बयान से मुकरी महिला: पॉक्सो एक्ट में दुरुपयोग पर विशेष न्यायालय का सख्त रुख

भूमिका

भारतीय न्याय व्यवस्था में यौन अपराधों के विरुद्ध कठोर कानून बनाए गए हैं, जिनमें पॉक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील कानून है। यह अधिनियम नाबालिग बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है और इसमें दोषी पाए जाने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
किन्तु, जब इस तरह के कानून का दुरुपयोग फर्जी दस्तावेज़ और झूठे बयानों के माध्यम से किया जाता है, तो इससे न केवल निर्दोष लोगों का जीवन प्रभावित होता है बल्कि कानून की गरिमा और विश्वसनीयता पर भी गहरा आघात पहुँचता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के भिंड जिले में विशेष न्यायालय पॉक्सो ने ऐसा ही एक मामला सामने आने पर गंभीरता से संज्ञान लिया, जहाँ फरियादी युवती अपने बयान से मुकर गई और अदालत को भ्रमित करने के लिए बनाए गए फर्जी दस्तावेज़ों का सच उजागर हुआ।


घटना का संक्षिप्त विवरण

13 सितंबर 2022 को विशेष न्यायालय पॉक्सो, भिंड में एक महिला ने अधिवक्ता की मदद से परिवाद दायर किया। परिवाद में आरोप लगाया गया कि युवती नाबालिग थी और उसके साथ लैंगिक अपराध घटित हुआ।
इस परिवाद में अधिवक्ता रमन शर्मा ने शपथपत्र दाखिल करते हुए युवती की उम्र नाबालिग बताई और यूनिक मिडिल स्कूल ग्वालियर से जारी प्रमाणपत्र सहित कई दस्तावेज़ प्रस्तुत किए। इन दस्तावेज़ों को आधार बनाकर अदालत ने मामला दर्ज करने का आदेश दिया और संबंधित व्यक्तियों—केशव नरवरिया, भारत सिंह नरवरिया, प्रदीप सिंह नरवरिया और तत्कालीन देहात थाना टीआई रामबाबू यादव—के खिलाफ प्रकरण दर्ज हो गया।

लेकिन, 21 अगस्त 2025 को जब इस प्रकरण की सुनवाई हुई तो फरियादी युवती ने अपने बयान में अदालत को बताया कि परिवाद में दर्ज कथन असत्य था। उसने स्वयं स्वीकार किया कि घटना के समय वह नाबालिग नहीं थी और अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेज़ फर्जी थे।


न्यायालय का दृष्टिकोण और आदेश

जब यह तथ्य सामने आया कि अदालत को गुमराह करने के लिए झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए गए और पॉक्सो एक्ट का दुरुपयोग किया गया, तो विशेष न्यायालय ने इस मामले को गंभीर मानते हुए सख्त रुख अपनाया।
न्यायाधीश ने आदेश दिया कि:

  1. परिवाद दायर करने वाली महिला (युवती) के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए, क्योंकि उसने अपने बयान से पलटकर स्वयं स्वीकार किया कि उसने असत्य जानकारी दी थी।
  2. अधिवक्ता रमन शर्मा के खिलाफ भी प्रकरण दर्ज किया जाए, क्योंकि उसने अदालत के समक्ष फर्जी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने और परिवाद दाखिल करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी।

इसके बाद देहात थाना पुलिस ने दोनों के खिलाफ अदालत को भ्रमित करने, फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने और झूठे मुकदमे दायर कराने के आरोपों में मामला पंजीबद्ध कर लिया।


पॉक्सो एक्ट का महत्व और दुरुपयोग

पॉक्सो एक्ट को लागू करने का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करना था। इस अधिनियम के अंतर्गत—

  • नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, शारीरिक शोषण और अश्लील कृत्यों पर कड़ी सजा का प्रावधान है।
  • इसमें स्पीडी ट्रायल और चाइल्ड-फ्रेंडली प्रक्रिया की विशेष व्यवस्था है।

लेकिन इस केस में साफ दिखाई देता है कि कैसे इस संवेदनशील कानून का दुरुपयोग व्यक्तिगत रंजिश या किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया।
जब झूठे आरोपों के आधार पर किसी निर्दोष व्यक्ति पर पॉक्सो का मुकदमा दर्ज होता है, तो उसके सामाजिक सम्मान, पारिवारिक जीवन और करियर पर गंभीर असर पड़ता है।


अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी और नैतिक प्रश्न

भारतीय न्याय प्रणाली में अधिवक्ता केवल मुवक्किल का पक्ष रखने वाले व्यक्ति नहीं होते, बल्कि न्यायालय के अधिकारी (officers of the court) माने जाते हैं।
इसलिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे सत्य, न्याय और नैतिकता के मूल्यों का पालन करें।

  • यदि कोई अधिवक्ता जानबूझकर फर्जी दस्तावेज़ बनवाने या अदालत को गुमराह करने में संलग्न पाया जाता है, तो यह न केवल अपराध है बल्कि व्यवसायिक आचार संहिता (Bar Council Rules) का गंभीर उल्लंघन भी है।
  • ऐसे मामलों में बार काउंसिल द्वारा वकालत पर प्रतिबंध या निलंबन तक की कार्रवाई की जा सकती है।

समाज और न्याय व्यवस्था पर प्रभाव

ऐसे मामले केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक स्तर पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं।

  1. निर्दोष लोगों पर झूठे मुकदमे – झूठे मामलों के कारण निर्दोष लोग जेल की सजा भुगतते हैं और उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।
  2. कानून की विश्वसनीयता पर प्रश्न – जब संवेदनशील कानूनों का दुरुपयोग होता है, तो समाज में इन कानूनों की गरिमा और महत्व कम हो जाता है।
  3. वास्तविक पीड़ितों को नुकसान – जब झूठे मामले उजागर होते हैं, तो असली पीड़ितों की आवाज़ कमजोर पड़ती है क्योंकि समाज हर मामले को शक की निगाह से देखने लगता है।

न्यायालय की सक्रिय भूमिका: एक सकारात्मक संकेत

इस मामले में विशेष न्यायालय पॉक्सो द्वारा की गई सख्त कार्रवाई एक सकारात्मक संकेत है। यह संदेश देती है कि—

  • अदालतें अब झूठे मामलों और फर्जी दस्तावेज़ों के प्रति उदार रवैया अपनाने के बजाय सख्त कदम उठा रही हैं।
  • इससे भविष्य में लोग झूठे मुकदमे दायर करने से पहले कई बार सोचेंगे।
  • यह न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और साख को मजबूत करता है।

निष्कर्ष

भिंड का यह मामला हमें यह सिखाता है कि कानून का दुरुपयोग समाज और न्याय दोनों के लिए खतरनाक है।
पॉक्सो एक्ट जैसे संवेदनशील कानूनों का प्रयोग यदि फर्जी दस्तावेज़ और झूठे बयानों के साथ किया जाएगा, तो न केवल निर्दोष लोग पीड़ित होंगे बल्कि वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय पाना भी कठिन हो जाएगा।

न्यायालय का यह निर्णय न केवल दुरुपयोग करने वालों के लिए चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में सख्ती से पेश आ रही है।
इसलिए यह आवश्यक है कि समाज, अधिवक्ता वर्ग और आम नागरिक—सभी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कानून का इस्तेमाल केवल न्याय के लिए हो, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ और दुर्भावनाओं की पूर्ति के लिए।