फरीदाबाद की दिल दहला देने वाली घटना: अपने ही बच्चों की हत्या करने वाले पिता और सौतेली मां को उम्रकैद — न्यायालय ने सुनाया कड़ा फैसला
भूमिका: मासूमियत पर हिंसा की स्याह दास्तान
समाज में माता-पिता को बच्चों का पहला संरक्षक माना जाता है। माता-पिता वह हैं जिनके लिए बच्चे दुनिया में सबसे प्रिय होते हैं। किंतु जब वही माता-पिता निर्ममता की मूर्ति बन जाएं, तो यह केवल एक अपराध ही नहीं बल्कि मानवता के ताने-बाने को चीर देने वाली त्रासदी बन जाती है। फरीदाबाद जिले में 18 मई 2023 को हुई ऐसी ही हृदय विदारक घटना ने न केवल सुनने वालों को स्तब्ध किया, बल्कि इसने यह प्रश्न उठाया कि इंसान क्रूरता की किस सीमा तक जा सकता है।
इस दर्दनाक घटना में पिता भगत सिंह और उसकी सौतेली पत्नी आशा पर अपने ही दो मासूम बच्चों की हत्या का आरोप सिद्ध हुआ। यह घटना न्याय और संवेदना दोनों की कसौटी पर कसने वाली थी। लम्बी सुनवाई, गवाहों के बयानों और तकनीकी साक्ष्यों पर विचार करने के बाद, फरीदाबाद जिला सेशन कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई और कुल 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह फैसला एडिशनल सेशन जज सुरेंद्र कुमार ने सुनाया।
घटना का संक्षिप्त विवरण: 18 मई 2023 की काली रात
18 मई 2023 को फरीदाबाद पुलिस को सूचना मिली कि दो नाबालिग बच्चों की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई। पुलिस मौके पर पहुंची तो पाया कि बच्चों की मौत सामान्य नहीं थी बल्कि इसमें हिंसा के स्पष्ट चिन्ह मौजूद थे। प्रारंभिक जांच में मां की गैर-मौजूदगी, घर में तनाव, सौतन, संपत्ति विवाद और घरेलू कलह जैसे पहलुओं ने शक को गहरा कर दिया।
जांच में धीरे-धीरे सामने आया कि बच्चों की मौत एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थी। पिता और सौतेली मां ने मिलकर बच्चों को रास्ते से हटाने की योजना बनाई थी। पारिवारिक विवाद, संपत्ति, और बच्चों के पालन-पोषण का बोझ उठाने की अनिच्छा इस अपराध की बड़ी वजह बताई गई।
भावनाओं से भरे गवाहों के बयान: कोर्ट में रो पड़ा माहौल
जब इस केस की सुनवाई चल रही थी, तब अदालत में कई बार ऐसा क्षण आया जब वातावरण गमगीन हो गया।
पड़ोसियों ने बयान दिया कि:
- कई बार बच्चों की रोने की आवाजें सुनाई देती थीं।
- सौतेली मां उन्हें प्रताड़ित करती दिखाई देती थी।
- पिता का व्यवहार कठोर और हिंसक रहता था।
- बच्चों में भय, अकेलापन और उपेक्षा साफ दिखाई देती थी।
बच्चों के स्कूल से जुड़े शिक्षकों ने भी बताया कि:
- बच्चे अक्सर डरे हुए रहते थे।
- उनके शरीर पर चोट के निशान देखे गए थे।
- वे मानसिक रूप से परेशान दिखते थे।
यह सब संकेत यह दर्शाते थे कि यह हत्या अचानक गुस्से का परिणाम नहीं बल्कि निरंतर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का परिणाम थी।
चिकित्सीय और फोरेंसिक रिपोर्ट: अपराध को साबित करने की वैज्ञानिक कड़ी
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में:
- शरीर पर घावों के निशान मिले,
- दम घुटने के चिन्ह पाए गए,
- मृत्यु पहले से प्रायोजित हिंसा का परिणाम पाई गई।
फोरेंसिक विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि:
- यह प्राकृतिक मौत नहीं थी,
- यह आकस्मिक दुर्घटना नहीं थी,
- यह आत्महत्या भी नहीं हो सकती थी।
अंत में निष्कर्ष निकला कि बच्चों की हत्या की गई है।
यही रिपोर्ट इस केस का निर्णायक मोड़ बनी।
अभियोजन पक्ष की ताकतवर दलीलें
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि:
- अपराध साजिश के तहत किया गया।
- बच्चों की हत्या घर के भीतर की गई।
- अन्य कोई व्यक्ति घर में मौजूद नहीं था।
- पिता और सौतेली मां की नीयत संदेह से परे साबित हुई।
- संपत्ति विवाद और दूसरे विवाह के बाद पुरानी पत्नी से विवाद प्रमुख कारण थे।
सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि यह अपराध:
- किसी क्षणिक आवेश में नहीं हुआ।
- पूर्व नियोजित योजना के तहत हुआ।
- यह नृशंसता की पराकाष्ठा है।
बचाव पक्ष की दलीलें
बचाव पक्ष ने तर्क दिया:
- मौत दुर्घटनावश हुई।
- झूठे आरोप लगाए जा रहे।
- पड़ोसियों ने बढ़ा-चढ़ा कर बयान दिए।
- प्रत्यक्षदर्शी कोई नहीं है।
लेकिन अदालत ने स्पष्ट कहा —
परिस्थितिजन्य साक्ष्य और फोरेंसिक रिपोर्ट स्वयं प्रत्यक्षदर्शी हैं।
न्यायालय का फैसला: संवेदना और कानून के संतुलन का निर्णय
7 महीने तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने अपने निर्णय में कहा:
- बच्चों की हत्या एक घोर अमानवीय कृत्य है।
- बच्चों के पास सुरक्षा की कोई आशा नहीं थी।
- अपराध समाज के मूल नैतिक स्तंभ पर प्रहार है।
- यह केवल दो जिंदगियों की हत्या नहीं बल्कि विश्वास की हत्या है।
इसलिए अदालत ने:
- भगत सिंह और आशा को उम्रकैद की सजा सुनाई।
- कुल 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
- मानवता के प्रति अपराध मानते हुए कठोर शब्दों में टिप्पणी की।
कानूनी पहलू: यह केवल एक हत्या नहीं बल्कि विश्वासघात की परिभाषा
भारतीय न्याय व्यवस्था में किसी भी हत्या को दो श्रेणियों में देखा जाता है:
- साधारण हत्या
- हत्या योग्य अपराध
जब हत्या:
- रणनीति के साथ की जाए,
- दुर्भावना पूर्वक की जाए,
- कमजोर को निशाना बनाया जाए,
- आश्रित व्यक्ति (नाबालिग) को मारा जाए,
तो यह अपराध कठोरतम दंड का अधिकारी होता है।
इस मामले में:
- पीड़ित नाबालिग,
- अपराधी संरक्षक,
- हिंसा निरंतर,
- हत्या पूर्व नियोजित थी,
इसलिए यह हत्या के सबसे गंभीर श्रेणी में रखा गया।
समाज की प्रतिक्रिया: प्रश्न और पीड़ा दोनों
इस मामले ने जनमानस में कई सवाल उठाए:
- क्या सौतेली मां और बच्चे का रिश्ता अभी भी अविश्वास से भरा है?
- क्या कानून पालन-पोषण के अधिकारों की और सख्त निगरानी करे?
- क्या समाज को ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग के लिए संवेदनशील बनना चाहिए?
सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं।
लोगों ने कहा:
“जो माता-पिता बच्चों का रक्षक न रहे, उनके लिए कठोर कानून जरूरी है।”
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण: एक सपने के बिखरने की कहानी
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार:
- घरेलू विवाद,
- पुनर्विवाह,
- ईर्ष्या,
- मानसिक तनाव,
- आर्थिक तंगी,
कई बार ऐसी परिस्थितियों को जन्म देते हैं जहां बच्चे असुरक्षित हो जाते हैं।
लेकिन विशेषज्ञ यह भी कहते हैं:
👉 तनाव हत्या का औचित्य नहीं बन सकता।
👉 समस्याओं का समाधान भावनाओं का विनाश नहीं है।
ऐसे मामलों पर कानून क्या कहता है?
भारतीय दंड संहिता (BNS – पूर्व IPC) प्रावधान:
- धारा – हत्या
- धारा – साजिश
- धारा – घरेलू हिंसा
- धारा – नाबालिग से संबंधित अपराध
न्यायालय इन मामलों में:
- कठोर दंड देने,
- पुनर्वास के अधिकार टालने,
- अपराध की गंभीरता बढ़ाने,
पर स्पष्ट रुख रखता है।
समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी
इस घटना ने यह भी संदेश दिया कि:
- सिर्फ कानून पर्याप्त नहीं है।
- पड़ोस, स्कूल, रिश्तेदारों की भी जिम्मेदारी है।
- बच्चों में दिखाई देने वाले संकेतों को अनदेखा न करें।
- घरेलू हिंसा की सूचना देने में संकोच नहीं होना चाहिए।
समापन: न्याय मिला, लेकिन प्रश्न अभी शेष
फरीदाबाद कोर्ट का यह फैसला स्वागत योग्य है क्योंकि यह दर्शाता है कि न्याय प्रणाली में संवेदनशीलता और कठोरता दोनों मौजूद हैं।
यह निर्णय केवल दो जीवन की हत्या का कानूनी परिणाम नहीं है, बल्कि संपूर्ण समाज को चेतावनी है कि बच्चों के खिलाफ अपराध किसी परिस्थिति में बर्दाश्त नहीं हैं।
लेकिन यह भी सच है कि:
- न्याय मिला, पर बच्चे वापस नहीं आए,
- फैसले लिखे गए, मगर मासूम मुस्कान खो गई,
- अदालत ने सजा दी, पर समाज का दर्द नहीं मिटा।
अंततः यह मामला याद दिलाता है कि बच्चे परिवार की संपत्ति नहीं, बल्कि भविष्य की धरोहर हैं और उनकी सुरक्षा सबसे प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।