प्रश्न 6: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में किए गए 2008 के संशोधन की विवेचना कीजिए।

प्रश्न 6: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में किए गए 2008 के संशोधन की विवेचना कीजिए।

उत्तर:

परिचय:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की प्रभावशीलता और समकालीन साइबर चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2008 में इसमें महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन संशोधनों का उद्देश्य अधिनियम को और व्यापक, सशक्त तथा तकनीकी दृष्टि से प्रासंगिक बनाना था ताकि बढ़ते साइबर अपराधों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके।


सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के 2008 के संशोधनों के प्रमुख बिंदु:

  1. साइबर अपराधों की परिभाषा और दंड का विस्तार:
    संशोधन में नए साइबर अपराधों को शामिल किया गया जैसे कि पहचान की चोरी (Identity Theft), फिशिंग, साइबर टेररिज्म, साइबर स्टॉकिंग आदि। साथ ही इन अपराधों के लिए दंडात्मक प्रावधानों को सख्त किया गया।
  2. धारा 66A का प्रावधान:
    इस धारा के तहत अप्रिय, अपमानजनक या झूठे संदेश भेजने पर दंड का प्रावधान किया गया। हालांकि बाद में यह धारा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन मानते हुए निरस्त कर दी गई, परन्तु संशोधन के समय इसे साइबर अपराधों से निपटने के लिए जरूरी माना गया था।
  3. पहचान की चोरी (Identity Theft) – धारा 66C:
    यह धारा डिजिटल माध्यम से किसी की पहचान चोरी करने या दुरुपयोग करने को अपराध मानती है और इसके लिए दंड का प्रावधान करती है।
  4. फिशिंग (Phishing) – धारा 66D:
    कंप्यूटर संसाधन का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति को धोखा देने के लिए झूठे संदेश भेजने को दंडनीय अपराध घोषित किया गया।
  5. साइबर टेररिज्म (Cyber Terrorism) – धारा 66F:
    यह नई धारा साइबर माध्यमों से राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, या देश की संप्रभुता के विरुद्ध कार्य करने को साइबर आतंकवाद माना है। इसके लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया।
  6. धारा 69 का विस्तार:
    सरकार को अधिक शक्तियाँ दी गईं कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा या अपराध रोकथाम के लिए कंप्यूटर सिस्टम की जाँच, निगरानी, और अवरोध कर सके।
  7. धारा 72A (Breach of Privacy):
    इस धारा को जोड़ा गया, जिसमें किसी व्यक्ति की निजी जानकारियों का अवैध संग्रहण या प्रकटीकरण अपराध माना गया।
  8. डिजिटल साक्ष्य को मजबूत करना:
    डिजिटल साक्ष्यों की वैधता और स्वीकार्यता को बढ़ावा देने के लिए संशोधन किए गए ताकि अदालतों में इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सके।
  9. साइबर अपीलीय अधिकरण (Cyber Appellate Tribunal) की क्षमता में वृद्धि:
    संशोधन ने इस अधिकरण की शक्तियों और दायरे का विस्तार किया ताकि साइबर मामलों का तेजी से निपटारा हो सके।

संक्षिप्त मूल्यांकन:
2008 के संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को तकनीकी और कानूनी दोनों दृष्टि से और अधिक प्रासंगिक और मजबूत बनाने का प्रयास थे। ये संशोधन तेजी से बढ़ रहे डिजिटल युग के अनुकूल कानून को ढालने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम थे। हालांकि कुछ धाराओं जैसे धारा 66A को न्यायालय ने निरस्त किया, फिर भी ये संशोधन साइबर अपराधों से लड़ने की कानूनी आधारशिला मजबूत करने में सहायक साबित हुए।


निष्कर्ष:
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के 2008 के संशोधन ने साइबर अपराधों की व्यापकता को समझते हुए भारत को एक बेहतर और सुरक्षित डिजिटल वातावरण प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भविष्य में तकनीकी प्रगति के साथ अधिनियम में और सुधार की आवश्यकता बनी रहेगी।