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प्रथम जमानत याचिका (Bail Application)

प्रथम जमानत याचिका (Bail Application)

अनुच्छेद 483, भारतीय न्याय संहिता (BNSS 2023) के तहत, धारा 20(b) एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के तहत अपराध में गिरफ्तार अभियुक्त के लिए

याचिका प्रस्तुतकर्ता: [आवेदक का नाम]
गिरफ्तारी दिनांक: 13/10/2024
FIR संख्या: [FIR संख्या], पुलिस थाना [पुलिस थाना का नाम]
आवेदनकर्ता की हिरासत: न्यायिक हिरासत


माननीय न्यायालय के समक्ष विनम्र आवेदन

आवेदनकर्ता, [आवेदक का नाम], इस माननीय न्यायालय के समक्ष प्रथम जमानत हेतु विनम्र निवेदन प्रस्तुत कर रहा है। आवेदन भारतीय न्याय संहिता (BNSS 2023) की धारा 483 के तहत प्रस्तुत किया जा रहा है।

आवेदनकर्ता FIR संख्या [FIR संख्या] के तहत धारा 20(b) एनडीपीएस अधिनियम, 1985 के अंतर्गत आरोपित है।


तथ्यात्मक विवरण

  1. आवेदनकर्ता दिनांक 13/10/2024 को [पुलिस थाना] द्वारा गिरफ्तार किया गया। FIR के अनुसार आरोपी के कब्जे से 14.362 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया। यह जानकारी FIR और केस डायरी में दर्ज है।
  2. गिरफ्तारी के बाद आवेदनकर्ता न्यायिक हिरासत में है। हिरासत की अवधि अब तक [लगभग 1 माह] है।
  3. यह आवेदनकर्ता की प्रथम जमानत याचिका है। आवेदक निवेदन करता है कि आवश्यक दस्तावेज़, केस डायरी और अन्य प्रासंगिक सामग्री प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए।

जमानत के लिए प्रार्थना के आधार (Grounds for Bail)

1. आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति

आवेदनकर्ता गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर है। उसके पास कानूनी रक्षा के लिए सीमित संसाधन हैं। सुप्रीम कोर्ट के State of Rajasthan v. Balchand (1977) और Gurbaksh Singh Sibbia v. State of Punjab (1980) जैसे निर्णयों में गरीब और कमजोर व्यक्ति को जमानत देने का समर्थन किया गया है।

2. अपराध की प्रकृति और जांच की स्थिति

धारा 20(b) एनडीपीएस अधिनियम के तहत आरोपित अपराध अवैध मादक पदार्थ की तस्करी/वितरण से संबंधित है। केस डायरी के अनुसार, पुलिस अभी प्रारंभिक जांच कर रही है। अभी तक सभी सबूत संकलित नहीं हुए हैं।

3. कानूनी प्रावधान और अधिकार

  • धारा 483 BNSS: यह धारा न्यायालय को प्रथम बार गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत देने का विवेक प्रदान करती है।
  • अनुच्छेद 21, भारतीय संविधान: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में कहा है कि जमानत केवल आरोप की गंभीरता पर नहीं बल्कि आरोपी की व्यक्तिगत परिस्थिति और भागने/सबूत प्रभावित करने के जोखिम पर निर्भर करती है।

न्यायालयीन निर्णयों का विश्लेषण

  1. Gurbaksh Singh Sibbia v. State of Punjab (1980) – एनडीपीएस अपराध में भी जमानत दी गई यदि आरोपी जांच में सहयोग करता है और भागने का खतरा न हो।
  2. Paramjit Singh v. State of Punjab (2018, Punjab & Haryana HC) – 15 किलोग्राम गांजा के मामले में हाईकोर्ट ने जमानत दी क्योंकि आरोपी जांच में सहयोग कर रहा था और भागने का जोखिम नहीं था।
  3. Satinder Pal Singh v. State of Punjab (2016) – 12 किलोग्राम गांजा के मामले में भी जमानत दी गई क्योंकि आरोपी स्थायी निवासी और सामाजिक रूप से जिम्मेदार था।
  4. Siddharam Satlingappa Mhetre v. State of Maharashtra (2011) – सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों को महत्व दिया।
  5. State of Rajasthan v. Balchand (1977) – गरीब और कमजोर व्यक्ति के पक्ष में जमानत देने का निर्णय।
  6. Hardeep Singh v. State of Punjab (2014, Punjab & Haryana HC) – 10 किलोग्राम गांजा के मामले में आरोपी को जमानत मिली क्योंकि वह न्यायालय में नियमित उपस्थित रहा और जांच में सहयोग कर रहा था।

जमानत देने के विशेष आधार

1. न्यायिक हिरासत की लंबी अवधि

आवेदनकर्ता अब तक लगभग 1 माह से न्यायिक हिरासत में है। लंबे समय तक हिरासत से मानसिक, शारीरिक और सामाजिक नुकसान होता है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि हिरासत की लंबी अवधि मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

2. भागने या सबूत प्रभावित करने का खतरा नहीं

आवेदनकर्ता स्थायी निवासी है। उसका पारिवारिक और सामाजिक नेटवर्क स्थानीय क्षेत्र में है। वह भागने या सबूतों को प्रभावित करने का जोखिम नहीं रखता।

3. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांत

मानवाधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति को दोष सिद्ध होने से पहले लंबे समय तक हिरासत में रखना अनुचित है।

4. एनडीपीएस अधिनियम 1985, धारा 20(b)

  • धारा 20(b) के अंतर्गत अपराध की गंभीरता के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने में विवेक का प्रयोग किया है।
  • यदि आरोपी सहयोग कर रहा है, भागने या सबूत प्रभावित करने का खतरा नहीं है, तो जमानत दी जा सकती है।
  • Hardeep Singh और Paramjit Singh जैसे हाईकोर्ट निर्णय इस सिद्धांत को मजबूत करते हैं।

कानूनी आधार और तर्क

  1. आवेदनकर्ता प्रथम जमानत के योग्य है।
  2. गिरफ्तारी के बाद लंबी न्यायिक हिरासत, आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति, तथा मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए जमानत दी जानी चाहिए।
  3. जांच अभी प्रगति पर है और सभी सबूत संकलित नहीं हुए हैं।
  4. सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के कई निर्णयों के अनुसार गरीब, स्थायी निवासी और भागने का जोखिम न रखने वाले आरोपी को जमानत मिल सकती है।
  5. न्यायालय का विवेकाधिकार (discretion) इस मामले में जमानत देने की अनुमति देता है।

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्य, कानूनी आधार और न्यायालय के विवेकाधिकार को ध्यान में रखते हुए, आवेदनकर्ता विनम्र निवेदन करता है कि उसे तत्काल जमानत प्रदान की जाए। आवेदनकर्ता न्यायालय के निर्देशों का पालन करने और जांच में पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन देता है।


प्रार्थना

अतः, आवेदनकर्ता विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता है कि इस माननीय न्यायालय से आदेश दिया जाए कि:

  1. आवेदनकर्ता को प्रथम जमानत प्रदान की जाए।
  2. जमानत पर न्यायालय द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करते हुए आवेदनकर्ता को रिहा किया जाए।

संलग्नक

  1. FIR की प्रतिलिपि
  2. केस डायरी की प्रतिलिपि
  3. पहचान प्रमाण और निवास प्रमाण पत्र
  4. अन्य प्रासंगिक दस्तावेज

दिनांक:
स्थान:
विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत:
[आवेदक / वकील का नाम]