प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर:
1. प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law) क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law), जिसे Antitrust Law भी कहा जाता है, एक ऐसा कानून है जिसका उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना और उसे स्वस्थ बनाए रखना है। यह कानून व्यापारिक गतिविधियों में किसी भी प्रकार की अवैध प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए लागू होता है, ताकि उपभोक्ताओं को लाभ मिल सके और व्यापारिक समुदाय को समान अवसर प्राप्त हो। इसका मुख्य उद्देश्य व्यापारी एकाधिकार, कार्टेलिंग, और अनुचित व्यापार प्रथाओं से बचने के लिए लागू किया जाता है।
2. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 (The Competition Act, 2002) के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 (The Competition Act, 2002) भारत में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और व्यापार में किसी भी प्रकार की अनावश्यक अवरोधों को रोकने के लिए लागू किया गया था। इसके कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- धारा 3: यह प्रतिस्पर्धा को नष्ट करने वाली या रोकने वाली किसी भी समझौते, कार्टेलिंग या अन्य एकजुट क्रियावली को रोकता है।
- धारा 4: यह एकाधिकार और असमान व्यापार प्रथाओं के खिलाफ है।
- धारा 5 और 6: इन धाराओं के तहत संयोजन और अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा की जाती है।
- धारा 19: यह प्रतिस्पर्धा आयोग को शक्ति प्रदान करती है कि वह प्रतिस्पर्धा के मामले की जांच कर सके।
- धारा 27: यह आयोग को निर्धारित करता है कि किसी व्यापारिक संगठन या व्यक्ति पर जुर्माना लगाने की आवश्यकता हो तो वह उसे लगा सके।
3. प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India) का कार्य क्या है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India, CCI) भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है। इसके कार्य निम्नलिखित हैं:
- प्रतिस्पर्धा के मामलों की जांच: यह आयोग अवैध प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, कार्टेलिंग, और अनुचित व्यापार प्रथाओं की जांच करता है।
- संयोजन और अधिग्रहण की स्वीकृति: CCI को व्यापार के संयोजन और अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा और स्वीकृति देने की जिम्मेदारी है।
- न्यायिक निर्णय: प्रतिस्पर्धा मामलों पर निर्णय लेना और व्यापारिक पद्धतियों में सुधार की सिफारिश करना।
- प्रतिस्पर्धा से संबंधित जागरूकता फैलाना: यह उपभोक्ताओं और व्यापारियों के बीच प्रतिस्पर्धा के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने का काम करता है।
4. एकाधिकार (Monopoly) और असमान व्यापार प्रथाएँ (Abuse of Dominant Position) क्या हैं?
उत्तर:
- एकाधिकार (Monopoly): एकाधिकार तब होता है जब एक व्यापारिक संस्था या व्यक्ति किसी विशेष बाजार में उत्पादन या आपूर्ति का नियंत्रण रखता है और उसे प्रतिस्पर्धा से मुक्त कर दिया जाता है। इसका परिणाम उपभोक्ताओं के लिए उच्च मूल्य और कम विकल्प हो सकता है।
- असमान व्यापार प्रथाएँ (Abuse of Dominant Position): जब कोई कंपनी बाजार में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करती है, जैसे कि अन्य कंपनियों को बाजार से बाहर करने के लिए कीमतों को अत्यधिक बढ़ाना, या उपभोक्ताओं को अनुचित शर्तों पर सेवा देना, तो इसे असमान व्यापार प्रथा कहा जाता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत इस पर कड़ी कार्रवाई की जाती है।
5. प्रतिस्पर्धा कानून में कार्टेलिंग (Cartel) क्या है और यह क्यों अवैध है?
उत्तर: कार्टेलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न कंपनियाँ मिलकर किसी विशेष बाजार में कीमतों को निर्धारित करती हैं, उत्पादन की मात्रा सीमित करती हैं, या किसी अन्य तरीके से प्रतिस्पर्धा को बाधित करती हैं। यह कानून के तहत अवैध है क्योंकि इससे उपभोक्ताओं को नुकसान पहुँचता है, कीमतें बढ़ती हैं, और गुणवत्ता पर असर पड़ता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत कार्टेलिंग को कड़ा अपराध माना जाता है और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है।
6. प्रतिस्पर्धा कानून में “संयोजन” (Mergers and Acquisitions) का क्या महत्व है?
उत्तर: “संयोजन” (Mergers and Acquisitions) का अर्थ है दो या दो से अधिक कंपनियों का एक साथ आना, जिससे बाजार में उनकी स्थिति बदल सकती है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत संयोजन और अधिग्रहण की निगरानी की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस प्रक्रिया से प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर न पड़े। यदि किसी संयोजन या अधिग्रहण से बाजार में प्रतिस्पर्धा पर बुरा असर पड़ता है, तो प्रतिस्पर्धा आयोग इसे मंजूरी नहीं देता और इसे रोकने की कोशिश करता है।
7. प्रतिस्पर्धा कानून के उल्लंघन पर क्या दंड है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत किसी भी प्रकार के उल्लंघन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। दंड में जुर्माना, व्यापारिक गतिविधियों की रुकावट, और कंपनी के निदेशकों के खिलाफ व्यक्तिगत जुर्माना शामिल हो सकता है। इसके अलावा, अगर कार्टेलिंग या एकाधिकार जैसी गंभीर प्रतिस्पर्धा उल्लंघन होते हैं, तो ये कार्रवाई और अधिक कड़ी हो सकती है, जिसमें कंपनियों के खिलाफ बंदी या अन्य सख्त उपाय हो सकते हैं।
8. प्रतिस्पर्धा कानून और उपभोक्ता अधिकारों में क्या संबंध है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा कानून का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना है। जब प्रतिस्पर्धा सही तरीके से काम करती है, तो इससे उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प, बेहतर गुणवत्ता और कम कीमतें मिलती हैं। इस प्रकार, प्रतिस्पर्धा कानून उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए एक प्रमुख उपकरण है। उपभोक्ताओं को ये अधिकार प्राप्त होते हैं कि वे बाजार में किसी भी तरह की अनुचित प्रथाओं या व्यापारिक गतिविधियों से प्रभावित न हों।
यहां कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर दिए गए हैं जो भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law) से संबंधित हैं:
9. प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के बीच संबंध क्या हैं?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दोनों स्वतंत्र संस्थाएं हैं, लेकिन कभी-कभी उनके कार्यों में ओवरलैप हो सकता है। CCI का मुख्य उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है, जबकि RBI का कार्य वित्तीय स्थिरता और बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करना है। जब दोनों की कार्यक्षेत्र में अंतर-संबंधी मुद्दे आते हैं, तो दोनों संस्थाएं एक-दूसरे के साथ सहयोग करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर बैंकिंग क्षेत्र में एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा का उल्लंघन हो, तो CCI और RBI दोनों मिलकर इसकी जांच कर सकते हैं।
10. संयोजन (Mergers) और अधिग्रहण (Acquisitions) के लिए CCI की मंजूरी क्यों आवश्यक है?
उत्तर: जब दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर एक होती हैं (संयोजन) या एक कंपनी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण करती है, तो इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव पड़ सकता है। यह हो सकता है कि नए संयोजन से एकाधिकार या असमान प्रतिस्पर्धा का खतरा उत्पन्न हो। इस तरह की स्थिति से बचने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) का यह दायित्व है कि वह संयोजन और अधिग्रहण के मामलों की समीक्षा करे। यदि CCI को लगता है कि इससे प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, तो वह उसे रोक सकता है या कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दे सकता है।
11. कार्टेलिंग (Cartel) की पहचान कैसे की जाती है और इसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है?
उत्तर: कार्टेलिंग एक असंवैधानिक और अवैध समझौता है जिसमें प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ एक-दूसरे के साथ मिलकर कीमतों को तय करती हैं, उत्पादन सीमित करती हैं या आपूर्ति नियंत्रित करती हैं। इसका परिणाम उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतें और कम गुणवत्ता वाली सेवाएँ हो सकती हैं। CCI कार्टेलिंग की पहचान के लिए कंपनियों के अनुशासनहीन व्यवहार, अनियमित कीमतों और आपूर्ति शृंखलाओं की जांच करती है। इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है, जिसमें जुर्माना और कंपनियों के व्यापारिक गतिविधियों पर रोक भी लगाई जा सकती है।
12. प्रतिस्पर्धा कानून में “गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार” (Anti-Competitive Practices) क्या हैं?
उत्तर: गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार वह गतिविधियाँ हैं जो प्रतिस्पर्धा को अवरुद्ध करती हैं और बाजार में असमानता पैदा करती हैं। इसमें कार्टेलिंग, एकाधिकार, मूल्य निर्धारण में समझौते, और अनुचित व्यापार प्रथाएँ शामिल हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत ये सभी गतिविधियाँ अवैध मानी जाती हैं और CCI इन पर निगरानी रखता है। इन प्रथाओं के कारण उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों, सीमित विकल्पों और खराब गुणवत्ता की सेवाएँ मिलती हैं, जो बाजार के लिए हानिकारक होती हैं।
13. “एकाधिकार” (Monopolies) और “प्रतिस्पर्धी बाजार” (Competitive Market) में अंतर क्या है?
उत्तर:
- एकाधिकार (Monopoly): जब एक ही कंपनी या व्यापारिक संस्था किसी विशिष्ट उद्योग या बाजार पर पूरा नियंत्रण रखती है, तो उसे एकाधिकार कहते हैं। यह स्थिति उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक हो सकती है क्योंकि कंपनी कीमतें बढ़ा सकती है और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देती है।
- प्रतिस्पर्धी बाजार (Competitive Market): एक प्रतिस्पर्धी बाजार वह होता है जिसमें कई कंपनियाँ उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति करती हैं। यहाँ पर उपभोक्ता को विकल्प मिलता है और कीमतें प्रतिस्पर्धा के आधार पर नियंत्रित रहती हैं। प्रतिस्पर्धी बाजार उपभोक्ताओं के हित में काम करता है, क्योंकि कंपनियाँ अपनी गुणवत्ता और सेवा में सुधार करने के लिए दबाव में रहती हैं।
14. प्रतिस्पर्धा कानून में “उपभोक्ता कल्याण” (Consumer Welfare) का क्या महत्व है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा कानून का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के कल्याण की रक्षा करना है। जब बाजार में प्रतिस्पर्धा होती है, तो कंपनियाँ अपनी सेवाओं को बेहतर और सस्ती बनाने के लिए मजबूर होती हैं। इससे उपभोक्ताओं को बेहतर मूल्य और उच्च गुणवत्ता मिलती है। प्रतिस्पर्धा कानून यह सुनिश्चित करता है कि बाजार में कोई भी गतिविधि, जैसे एकाधिकार या कार्टेलिंग, उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान न पहुँचाए। इसके अलावा, CCI उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए जागरूकता फैलाने और कानूनी कार्यवाही करने का कार्य करता है।
15. एकाधिकार के खिलाफ भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की सजा क्या है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत एकाधिकार की स्थिति को रोकने के लिए जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। यदि कोई कंपनी बाजार में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करती है (जैसे कि कीमतें बढ़ाकर या आपूर्ति नियंत्रित करके), तो उसे भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। जुर्माना 10 प्रतिशत तक की वार्षिक कारोबार राशि हो सकती है। इसके अलावा, आयोग कंपनी को कुछ शर्तों के साथ कारोबार करने का आदेश भी दे सकता है।
16. प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा किए गए कुछ प्रमुख मामले कौन से हैं?
उत्तर:
- राजीव गांधी (पूर्व प्रधानमंत्री) के खिलाफ कार्टेलिंग मामले: यह मामला 2007 में सामने आया था, जब CCI ने पाया कि कुछ कंपनियाँ मिलकर फोन सेवाओं की कीमतें तय कर रही थीं। CCI ने उन कंपनियों पर जुर्माना लगाया था।
- हॉटेल उद्योग में कीमतों में वृद्धि: कुछ होटलों के खिलाफ, जो संयुक्त रूप से मूल्य निर्धारण कर रहे थे, CCI ने मामला दर्ज किया और कार्रवाई की।
- कार निर्माता कंपनियों के खिलाफ मामला: CCI ने कुछ बड़ी कार निर्माता कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था जिन्होंने अपने उत्पादों के लिए कीमतों को बढ़ा दिया था और ग्राहकों को धोखा दिया था।
17. कार्टेलिंग के मामले में “leniency” (ढील) नीति का क्या महत्व है?
उत्तर: CCI की “leniency” नीति का उद्देश्य कंपनियों को कार्टेलिंग जैसी अवैध गतिविधियों की सूचना देने के लिए प्रोत्साहित करना है। यदि कोई कंपनी कार्टेलिंग गतिविधियों में शामिल होती है, लेकिन बाद में वह CCI को सूचना देती है, तो उसे कुछ राहत मिल सकती है। इसे ‘leniency policy’ कहा जाता है। इस नीति के तहत, सूचना देने वाली कंपनी को जुर्माना में छूट मिल सकती है और उसे कम दंड का सामना करना पड़ सकता है।
18. क्या CCI की कार्रवाइयों का किसी कंपनी के वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI की कार्रवाइयाँ वैश्विक कंपनियों के व्यापार पर असर डाल सकती हैं, खासकर अगर वे भारतीय बाजार में भी व्यापार कर रही हैं। CCI को यह अधिकार है कि वह विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में प्रतिस्पर्धा के खिलाफ की जाने वाली गतिविधियों की जांच करे और उन पर कार्रवाई करे। उदाहरण के लिए, यदि किसी अंतरराष्ट्रीय कंपनी ने भारतीय बाजार में कार्टेलिंग की, तो CCI उस पर जुर्माना लगा सकता है या उसे सजा दे सकता है।
19. क्या प्रतिस्पर्धा कानून केवल बड़े व्यवसायों के लिए है या छोटे व्यवसायों के लिए भी लागू होता है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा कानून का उद्देश्य सभी व्यापारिक संस्थाओं को समान रूप से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर देना है, चाहे वे बड़े हों या छोटे। छोटे व्यवसायों को भी यह कानून संरक्षण प्रदान करता है, ताकि वे बड़े कंपनियों द्वारा किए गए एकाधिकार और कार्टेलिंग जैसी गतिविधियों से बच सकें। CCI छोटे व्यापारों के मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है अगर उन्हें बाजार में असमान प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा हो।
20. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन भी किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा कानूनों का पालन किया जाता है। CCI ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा प्राधिकरणों के साथ सहयोग किया है और वे वैश्विक कार्टेलिंग, प्रतिस्पर्धा उल्लंघन और एकाधिकार के मामलों में आपसी सहयोग करते हैं। CCI भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के मामलों की जांच में शामिल होता है और वैश्विक प्रथाओं के साथ अपने कार्यों को सामंजस्यपूर्ण बनाता है।
यहां भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून (Competition Law) से संबंधित कुछ और महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके विस्तृत उत्तर दिए गए हैं:
21. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के संरचना क्या है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) का नेतृत्व अध्यक्ष द्वारा किया जाता है, और इसमें 6 अन्य सदस्य होते हैं। ये सदस्य नियुक्ति की प्रक्रिया के तहत सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करते हैं। CCI के पास निर्णय लेने और जांच करने का अधिकार है, और यह आयोग अपनी कार्रवाईयों के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, बिना किसी बाहरी दबाव के। CCI की मुख्य कार्यक्षेत्र प्रतिस्पर्धा उल्लंघन, कार्टेलिंग, एकाधिकार, और अन्य प्रतिस्पर्धा-अवरोधक गतिविधियों की जांच करना है।
22. भारत में प्रतिस्पर्धा अधिनियम की शुरुआत कब हुई थी और इसका उद्देश्य क्या था?
उत्तर: भारत में प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act, 2002) 2002 में पारित हुआ था, और इसका उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकना, और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना था। इस कानून के तहत, कार्टेलिंग, एकाधिकार की स्थिति, और व्यापार में असमान प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिए प्रभावी नीतियाँ बनाई गईं।
23. भारत में प्रतिस्पर्धा आयोग की प्रमुख कार्यप्रणाली क्या है?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा आयोग की प्रमुख कार्यप्रणाली में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों की पहचान और रोकथाम: CCI कार्टेलिंग, एकाधिकार, मूल्य निर्धारण के अनुचित समझौते आदि का पता लगाता है और उनके खिलाफ कार्रवाई करता है।
- संयोजन और अधिग्रहण की मंजूरी: यह सुनिश्चित करना कि बड़े संयोजन और अधिग्रहण से प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
- विविध विवादों का समाधान: CCI उपभोक्ताओं, व्यापारिक संस्थाओं और विभिन्न पक्षों के बीच प्रतिस्पर्धा से संबंधित विवादों का समाधान करता है।
- जुर्माना और दंड का निर्धारण: अगर प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन होता है, तो CCI जुर्माना और अन्य दंड लगा सकता है।
24. “M&A” (Mergers and Acquisitions) के मामले में CCI की भूमिका क्या है?
उत्तर: जब दो कंपनियाँ एक साथ मिलती हैं या एक कंपनी दूसरी कंपनी का अधिग्रहण करती है, तो यह स्थिति बाजार की प्रतिस्पर्धा पर असर डाल सकती है। CCI की भूमिका इस स्थिति का मूल्यांकन करना है और यह सुनिश्चित करना कि इससे प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े। यदि CCI को लगता है कि इससे बाजार में एकाधिकार या असमान प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होगी, तो वह इसे रोकने या संशोधित करने का आदेश दे सकता है।
25. प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा लगाए गए जुर्माने का निर्धारण कैसे किया जाता है?
उत्तर: CCI द्वारा जुर्माने का निर्धारण कानून के तहत किए गए उल्लंघन की गंभीरता और प्रभाव को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। जुर्माना लगाने के लिए CCI यह मूल्यांकन करता है कि उल्लंघनकर्ता ने कानून का उल्लंघन करने से कितनी अवधि तक लाभ उठाया और इसके परिणामस्वरूप बाजार पर क्या असर पड़ा। जुर्माना कंपनियों के वार्षिक कारोबार के 10% तक हो सकता है।
26. प्रतिस्पर्धा कानून के तहत “अनुचित व्यापार प्रथाएं” (Unfair Trade Practices) क्या हैं?
उत्तर: अनुचित व्यापार प्रथाएं वह प्रथाएँ हैं जो उपभोक्ताओं या प्रतिस्पर्धियों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं और प्रतिस्पर्धा को हानि पहुँचाती हैं। इसमें निम्नलिखित प्रथाएं शामिल हो सकती हैं:
- झूठा विज्ञापन: उत्पादों या सेवाओं को वास्तविकता से भिन्न तरीके से प्रस्तुत करना।
- धोखाधड़ी: उपभोक्ताओं को बिना किसी वैध कारण के धोखा देना।
- समान्य व्यापारी समझौते: जो बाजार में प्रतिस्पर्धा को रोकते हैं और एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न करते हैं।
27. “अन्यथा प्रतिस्पर्धा का नुकसान” (Adverse Effects on Competition) क्या है?
उत्तर: “अन्यथा प्रतिस्पर्धा का नुकसान” का मतलब है कि कोई गतिविधि या व्यवहार बाजार में प्रतिस्पर्धा को नष्ट कर देता है या उसे गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इससे उपभोक्ताओं को उच्च कीमतें, कम गुणवत्ता, और कम विकल्प मिलते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कंपनियाँ कार्टेलिंग करती हैं, तो यह बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर सकता है और उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक हो सकता है।
28. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों (Anti-Competitive Agreements) का प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों को अवैध माना जाता है। ऐसे समझौते, जो व्यापारिक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा को सीमित या समाप्त करते हैं, जैसे कि कीमतों को तय करना, उत्पादन की मात्रा घटाना, या आपूर्ति को नियंत्रित करना, CCI द्वारा जांचे जाते हैं और यदि पाया जाता है कि ये प्रतिस्पर्धा के खिलाफ हैं, तो जुर्माना और अन्य दंड लगाए जाते हैं।
29. क्या CCI किसी कंपनी के व्यापार को रोक सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI को यह अधिकार है कि वह किसी कंपनी के व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा सकता है, खासकर जब कंपनी प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन करती है और इससे उपभोक्ताओं को हानि होती है। CCI किसी कंपनी को अपने व्यवसायिक संचालन को बदलने के लिए आदेश दे सकता है, जैसे कि एकाधिकार को खत्म करने या कार्टेलिंग की गतिविधियों को बंद करने के लिए।
30. प्रतिस्पर्धा कानून में “भ्रष्टाचार” (Corruption) का क्या प्रभाव है?
उत्तर: भ्रष्टाचार प्रतिस्पर्धा के खिलाफ एक प्रमुख समस्या है। जब कंपनियाँ अधिकारियों या अन्य पक्षों से रिश्वत लेकर अपने व्यापारिक फायदे के लिए नियमों का उल्लंघन करती हैं, तो यह बाजार की प्रतिस्पर्धा को नष्ट कर देता है और उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतों या घटिया गुणवत्ता की स्थितियाँ उत्पन्न करता है। प्रतिस्पर्धा आयोग इस प्रकार के मामलों पर कड़ी नजर रखता है और ऐसे भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कड़ी कार्रवाई करता है।
31. क्या CCI द्वारा की गई कार्रवाई में अपील की जा सकती है?
उत्तर: हाँ, CCI द्वारा किए गए निर्णयों के खिलाफ अपील की जा सकती है। यदि कोई पार्टी CCI के निर्णय से असंतुष्ट होती है, तो वह उस निर्णय के खिलाफ Competition Appellate Tribunal (COMPAT) में अपील कर सकती है। COMPAT CCI के फैसले की समीक्षा करता है और यदि उचित लगता है, तो वह CCI के निर्णय को पलट सकता है।
32. क्या प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा की गई कार्यवाही केवल भारतीय कंपनियों के खिलाफ होती है?
उत्तर: नहीं, CCI द्वारा की गई कार्यवाही केवल भारतीय कंपनियों के खिलाफ नहीं होती। यदि कोई विदेशी कंपनी भारत में प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों में शामिल होती है, तो CCI उसके खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून का प्रावधान वैश्विक कंपनियों के लिए भी है, खासकर जब उनका व्यापार भारत में प्रभाव डालता है।
33. भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में “प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यापारिक समझौतों” (Anti-Competitive Trade Agreements) के उदाहरण क्या हैं?
उत्तर: प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यापारिक समझौतों के उदाहरणों में शामिल हैं:
- मूल्य निर्धारण समझौते: दो या दो से अधिक कंपनियाँ एक समझौते के तहत कीमतें तय करती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचता है।
- आपूर्ति सीमित करना: कंपनियाँ आपूर्ति को सीमित करने या बाजार से कुछ उत्पादों को बाहर करने के लिए समझौते करती हैं।
- कार्टेलिंग: कंपनियाँ एक साथ मिलकर प्रतिस्पर्धियों के खिलाफ एक निष्क्रिय बाजार उत्पन्न करती हैं।
34. CCI द्वारा निर्धारित जुर्माना की राशि कैसे तय की जाती है?
उत्तर: CCI द्वारा जुर्माने की राशि को विभिन्न कारकों को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है, जैसे कि उल्लंघन की गंभीरता, उसे लागू करने वाली कंपनी का आकार, बाजार पर उसके प्रभाव, और उल्लंघन की अवधि। जुर्माना कंपनियों के वार्षिक कारोबार का 10% तक हो सकता है।
35. क्या CCI का उद्देश्य केवल बड़े व्यवसायों के खिलाफ कार्रवाई करना है?
उत्तर: CCI का उद्देश्य केवल बड़े व्यवसायों के खिलाफ कार्रवाई करना नहीं है। प्रतिस्पर्धा कानून सभी आकार के व्यवसायों के लिए लागू है, चाहे वे छोटे हों या बड़े। CCI छोटे व्यापारों की सुरक्षा भी करता है ताकि वे बड़े कंपनियों द्वारा किए गए प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार से प्रभावित न हों।
36. क्या CCI के निर्णय में किसी पार्टी को कानूनी राहत मिल सकती है?
उत्तर: हाँ, CCI के निर्णय के खिलाफ कानूनी राहत मिल सकती है। यदि कोई पार्टी CCI के निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह Competition Appellate Tribunal (COMPAT) में अपील कर सकती है। इसके अलावा, CCI के फैसले को उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी जा सकती है।
37. क्या प्रतिस्पर्धा आयोग के पास एकाधिकार की स्थिति को समाप्त करने की शक्ति है?
उत्तर: हाँ, प्रतिस्पर्धा आयोग के पास एकाधिकार की स्थिति को समाप्त करने की शक्ति है। यदि CCI को लगता है कि किसी कंपनी के पास एकाधिकार है और वह प्रतिस्पर्धा को अवरुद्ध कर रही है, तो आयोग उस कंपनी को अपनी गतिविधियाँ बदलने का आदेश दे सकता है या उस पर जुर्माना लगा सकता है।
38. क्या CCI के पास एकाधिकार से संबंधित मामलों में जांच करने का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, CCI के पास एकाधिकार से संबंधित मामलों में जांच करने का अधिकार है। यदि CCI को लगता है कि कोई कंपनी एकाधिकार बनाए हुए है और इसका बाजार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है, तो वह इसकी जांच कर सकता है और कार्रवाई कर सकता है।
39. क्या प्रतिस्पर्धा कानून उपभोक्ताओं को सीधा संरक्षण प्रदान करता है?
उत्तर: हाँ, प्रतिस्पर्धा कानून उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करता है। जब कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होती हैं, तो इसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है। CCI ऐसे मामलों की जांच करता है और उपभोक्ताओं को उचित मूल्य, गुणवत्तापूर्ण उत्पाद, और अधिक विकल्प सुनिश्चित करता है।
40. क्या CCI के पास विदेशी कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, CCI के पास विदेशी कंपनियों के खिलाफ भी कार्यवाही करने का अधिकार है। यदि कोई विदेशी कंपनी भारत में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल होती है, तो CCI उस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, बशर्ते कि उसका भारतीय बाजार पर प्रभाव पड़ा हो।
41. क्या CCI ने भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून को लागू करने के लिए कोई अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित किया है?
उत्तर: हाँ, CCI ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा प्राधिकरणों के साथ सहयोग स्थापित किया है। CCI वैश्विक प्रतिस्पर्धा मुद्दों पर जानकारी साझा करता है और विभिन्न देशों के प्रतिस्पर्धा प्राधिकरणों के साथ काम करता है ताकि वैश्विक कार्टेलिंग और प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों का पता चल सके।
42. क्या CCI ने कुछ प्रमुख मामले जैसे कार्टेलिंग और एकाधिकार के खिलाफ कार्यवाही की है?
उत्तर: हाँ, CCI ने कई प्रमुख मामलों में कार्टेलिंग, एकाधिकार और प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्यवाही की है। उदाहरण के तौर पर, CCI ने कुछ प्रमुख दवाओं की कंपनियों, हवाई सेवा कंपनियों और कुछ वाहन निर्माताओं के खिलाफ कार्टेलिंग के मामले में जुर्माना लगाया है।
43. क्या CCI ने भारतीय उपभोक्ताओं की रक्षा के लिए कुछ कार्य किए हैं?
उत्तर: हाँ, CCI ने भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं। आयोग ने प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं, और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प, बेहतर मूल्य और गुणवत्ता की सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए कार्य किया है।
44. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करने के परिणाम क्या हो सकते हैं?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करने के परिणामस्वरूप जुर्माना, व्यापार संचालन में बदलाव, और कभी-कभी व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिबंध भी लगाया जा सकता है। जुर्माना कंपनियों के वार्षिक कारोबार का 10% तक हो सकता है। इसके अलावा, CCI को यह अधिकार है कि वह अवैध गतिविधियों में लिप्त कंपनियों को निष्क्रिय करने या उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दे सकता है।
45. कार्टेलिंग क्या है और यह भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत कैसे दंडनीय है?
उत्तर: कार्टेलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर एक बाजार में प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर देती हैं। ये कंपनियाँ मिलकर मूल्य निर्धारण, आपूर्ति, उत्पादन, या अन्य व्यापारिक शर्तों पर समझौते करती हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत, कार्टेलिंग को अवैध माना जाता है और इसके लिए जुर्माना और अन्य दंड लगाए जा सकते हैं। यह उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ है और बाजार में असमान प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करता है।
46. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में एकाधिकार की स्थिति का क्या मतलब है?
उत्तर: एकाधिकार की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक कंपनी बाजार में अपनी स्थिति का अत्यधिक लाभ उठाकर प्रतिस्पर्धा को समाप्त करती है और उपभोक्ताओं के लिए उच्च कीमतें और घटिया गुणवत्ता की स्थितियाँ पैदा करती है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, यदि किसी कंपनी के पास एकाधिकार की स्थिति है और वह प्रतिस्पर्धा को नष्ट कर रही है, तो CCI उस कंपनी के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, जैसे कि जुर्माना लगाना या उसकी गतिविधियों को नियंत्रित करना।
47. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में संशोधन के बाद किए गए प्रमुख बदलाव क्या थे?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में 2007 में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे। इन संशोधनों में प्रतिस्पर्धा आयोग को और शक्तियाँ दी गईं, जैसे कि बाजार में संयोजन और अधिग्रहण की जांच करना। संशोधन में एकाधिकार और कार्टेलिंग के खिलाफ अधिक सख्त दंड और जुर्माने का प्रावधान भी था। इसके अलावा, CCI को उपभोक्ता हितों की रक्षा करने के लिए अधिक स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त हुए।
48. क्या “समझौतों” (Agreements) के तहत कंपनियाँ भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन कर सकती हैं?
उत्तर: हाँ, कंपनियाँ समझौतों के तहत भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन कर सकती हैं। यदि दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों, जैसे कि मूल्य निर्धारण, उत्पादन की सीमाएँ, या आपूर्ति पर समझौते करती हैं, तो यह प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन माना जाता है। ऐसी गतिविधियों के लिए CCI जुर्माना और अन्य दंड निर्धारित कर सकता है।
49. क्या एकाधिकार पर नियंत्रण के लिए कोई विशिष्ट कानूनी प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत एकाधिकार की स्थिति पर नियंत्रण के लिए विशिष्ट कानूनी प्रावधान हैं। यदि कोई कंपनी एकाधिकार स्थापित करती है और प्रतिस्पर्धा को नष्ट करती है, तो CCI उसे नियंत्रित करने के लिए कार्रवाई कर सकता है। यह कार्रवाई एकाधिकार की स्थितियों का विश्लेषण करने, आपूर्ति के साधनों पर नियंत्रण, और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के उपायों को शामिल कर सकती है।
50. क्या CCI किसी कंपनी को संयोजन और अधिग्रहण के लिए अनुमति देने से मना कर सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI किसी कंपनी को संयोजन और अधिग्रहण के लिए अनुमति देने से मना कर सकता है, यदि उसे लगता है कि इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक असर पड़ेगा। CCI का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई संयोजन या अधिग्रहण बाजार में असमान प्रतिस्पर्धा उत्पन्न न करें, और उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान न पहुँचाए। यदि CCI को लगता है कि इससे प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी, तो वह इसे मंजूरी नहीं दे सकता।
51. “सम्मिलित मूल्य निर्धारण” (Collusive Pricing) क्या है और भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत इसका क्या प्रभाव है?
उत्तर: सम्मिलित मूल्य निर्धारण तब होता है जब कंपनियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर कीमतें तय करती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा नष्ट होती है और उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत सम्मिलित मूल्य निर्धारण को प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि माना जाता है, और इसके लिए कंपनियों पर जुर्माना और अन्य दंड लगाए जा सकते हैं। CCI इस तरह के समझौतों को अवैध मानता है और ऐसे मामलों की जांच करता है।
52. “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing Power) का क्या मतलब है और यह प्रतिस्पर्धा कानून के तहत कैसे लागू होता है?
उत्तर: मूल्य निर्धारण शक्ति का मतलब है कि किसी कंपनी के पास बाजार में मूल्य निर्धारण पर विशेष प्रभाव हो। यदि एक कंपनी के पास बाजार में इस प्रकार की शक्ति है कि वह अपनी कीमतों को प्रतिस्पर्धा को नष्ट करने के लिए नियंत्रित करती है, तो यह भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत अवैध माना जाता है। CCI ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई कर सकता है, ताकि प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो सके और उपभोक्ताओं को उचित मूल्य मिल सके।
53. CCI के पास “अधिग्रहण और संयोजन” (Acquisitions and Mergers) की जांच करने का अधिकार है। इसके तहत क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है?
उत्तर: जब दो कंपनियाँ मिलकर एक होती हैं या एक कंपनी दूसरी का अधिग्रहण करती है, तो CCI की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इस संयोजन से बाजार में प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक असर न पड़े। CCI को यह तय करना होता है कि इस संयोजन से उपभोक्ताओं को कोई हानि न हो, जैसे कि कीमतों का बढ़ना या गुणवत्ता का गिरना। CCI इस प्रक्रिया के तहत कंपनियों से जानकारी मांग सकता है, समीक्षा कर सकता है और अगर आवश्यक हो, तो संयोजन को मंजूरी नहीं दे सकता।
54. “उपभोक्ता हित” (Consumer Welfare) क्या है और प्रतिस्पर्धा कानून में इसका क्या महत्व है?
उत्तर: “उपभोक्ता हित” का मतलब है उपभोक्ताओं के अधिकारों और उनके लिए बेहतर मूल्य, गुणवत्ता, और विकल्प सुनिश्चित करना। प्रतिस्पर्धा कानून का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। जब प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, तो उपभोक्ताओं को अच्छे उत्पाद, सेवाएँ, और उचित मूल्य मिलते हैं। CCI की कार्यवाही का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचे।
55. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में “समझौते” (Agreements) और “संयोजन” (Mergers) के बीच कोई अंतर है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में “समझौते” और “संयोजन” के बीच महत्वपूर्ण अंतर है:
- समझौते: जब दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर एक प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते पर हस्ताक्षर करती हैं, जैसे कि मूल्य निर्धारण या आपूर्ति की सीमाएँ तय करना, तो यह एक समझौता होता है।
- संयोजन: यह तब होता है जब एक कंपनी दूसरी का अधिग्रहण करती है या दो कंपनियाँ एक हो जाती हैं, जिससे कंपनियों की संरचना बदलती है।
56. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) में शिकायत दर्ज की जा सकती है?
उत्तर: हाँ, कोई भी व्यक्ति या संगठन CCI में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है। यह शिकायत किसी कंपनी द्वारा कार्टेलिंग, एकाधिकार की स्थिति, मूल्य निर्धारण की समझौते, या अन्य प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहारों के बारे में हो सकती है। CCI इस प्रकार की शिकायतों की जांच करता है और अगर उल्लंघन पाया जाता है, तो कार्रवाई करता है।
57. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत CCI द्वारा की गई कार्रवाई को चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर: हाँ, CCI द्वारा की गई कार्रवाई को Competition Appellate Tribunal (COMPAT) में चुनौती दी जा सकती है। यदि कोई पार्टी CCI के आदेश से असंतुष्ट है, तो वह COMPAT में अपील कर सकती है, और COMPAT CCI के निर्णय की समीक्षा करता है। इसके बाद, यदि आवश्यक हो।
58. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा जारी दिशा-निर्देश (Guidelines) का क्या महत्व है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा जारी दिशा-निर्देश का उद्देश्य कंपनियों और संगठनों को प्रतिस्पर्धा कानूनों के अनुपालन में मार्गदर्शन प्रदान करना है। ये दिशा-निर्देश प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों, जैसे कि मूल्य निर्धारण, कार्टेलिंग, और अन्य व्यापारिक समझौतों के संदर्भ में स्पष्टता प्रदान करते हैं। इन दिशा-निर्देशों का पालन करना कंपनियों को कानूनी विवादों से बचने में मदद करता है और उन्हें यह सुनिश्चित करने का अवसर प्रदान करता है कि वे प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।
59. “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing Power) का क्या मतलब है और इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में क्यों प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: “मूल्य निर्धारण शक्ति” का मतलब है, जब एक कंपनी या एक समूह की कंपनियाँ मिलकर बाजार में उत्पादों या सेवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती हैं। इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में प्रतिबंधित किया गया है क्योंकि इससे उपभोक्ताओं को अत्यधिक मूल्य चुकाने पड़ सकते हैं और प्रतिस्पर्धा कमजोर हो जाती है, जिससे बाजार में खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद और सेवाएँ बढ़ सकती हैं। प्रतिस्पर्धा कानून का उद्देश्य कीमतों को स्थिर रखने और उपभोक्ताओं के लिए अच्छे विकल्प उपलब्ध कराना है।
60. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास वाणिज्यिक मामलों की सुनवाई का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास वाणिज्यिक मामलों की सुनवाई का अधिकार है, जो प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन करने से संबंधित होते हैं। CCI इन मामलों में जांच करता है और यह निर्धारित करता है कि क्या किसी कंपनी या संगठन ने प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ की हैं, जैसे कि मूल्य निर्धारण समझौते, एकाधिकार की स्थिति, या कार्टेलिंग। इसके बाद, CCI उस कंपनी पर जुर्माना या अन्य दंड लगा सकता है और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है।
61. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत “एकाधिकार की स्थिति” (Monopoly Position) को नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत एकाधिकार की स्थिति को नियंत्रित किया जाता है। यदि कोई कंपनी किसी विशेष बाजार में अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके प्रतिस्पर्धा को नष्ट करती है और उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुँचाती है, तो उसे एकाधिकार की स्थिति माना जाता है। CCI ऐसी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करता है और उन्हें बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए निर्देशित करता है।
62. “संयोजन और अधिग्रहण” (Mergers and Acquisitions) के मामले में CCI क्या कार्रवाई करता है?
उत्तर: जब दो कंपनियाँ एक साथ मिलकर संयोजन या अधिग्रहण करती हैं, तो CCI को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि इस कार्रवाई से प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। CCI बाजार में किसी भी संभावित असंतुलन की जांच करता है और अगर यह पाया जाता है कि इस संयोजन या अधिग्रहण से प्रतिस्पर्धा कमजोर होगी, तो CCI इसे मंजूरी नहीं दे सकता या आवश्यक शर्तों के साथ मंजूरी दे सकता है।
63. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत CCI को कंपनियों के खिलाफ दंड लगाने का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत CCI को कंपनियों के खिलाफ दंड लगाने का अधिकार है। यदि कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाई जाती है, जैसे कि कार्टेलिंग, एकाधिकार की स्थिति, या मूल्य निर्धारण समझौतों में शामिल होना, तो CCI उस कंपनी पर जुर्माना और अन्य दंड लगा सकता है। यह जुर्माना कंपनी के वार्षिक कारोबार का एक निश्चित प्रतिशत हो सकता है।
64. क्या CCI किसी कंपनी के व्यवसाय की संरचना में बदलाव करने का आदेश दे सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI किसी कंपनी के व्यवसाय की संरचना में बदलाव करने का आदेश दे सकता है, यदि उसे यह लगता है कि कंपनी का कारोबार प्रतिस्पर्धा को नष्ट कर रहा है या उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों में शामिल है। उदाहरण के लिए, यदि किसी कंपनी का एकाधिकार स्थापित हो गया है या उसके खिलाफ कार्टेलिंग का आरोप है, तो CCI उसे अपने कारोबार के संचालन में बदलाव करने का निर्देश दे सकता है, ताकि प्रतिस्पर्धा बनी रहे।
65. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत उपभोक्ता संरक्षण पर कोई ध्यान दिया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में उपभोक्ता संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रतिस्पर्धा मजबूत हो, जिससे उपभोक्ताओं को उचित कीमतें, बेहतर गुणवत्ता, और अधिक विकल्प मिलें। CCI के माध्यम से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की जाती है, और किसी भी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि को समाप्त किया जाता है।
66. क्या CCI किसी कंपनी के खिलाफ विशेष आदेश जारी कर सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI किसी कंपनी के खिलाफ विशेष आदेश जारी कर सकता है, जैसे कि उन पर जुर्माना लगाना, प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों को समाप्त करने का आदेश देना, या उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना। CCI के पास यह अधिकार होता है कि वह किसी कंपनी की प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए किसी भी प्रकार का आदेश जारी कर सके।
67. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में सरकारी कंपनी को छूट प्राप्त है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में कुछ विशेष मामलों में सरकारी कंपनियों को छूट प्राप्त हो सकती है। यदि कोई सरकारी कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में लिप्त है और वह सार्वजनिक नीति के तहत कार्य कर रही है, तो उसे कुछ परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है। हालांकि, यह छूट सीमित होती है और CCI के द्वारा जांचे जाने के बाद ही लागू होती है।
68. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में “संविधानिक दायित्व” (Constitutional Duty) को भी ध्यान में रखा जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून में संविधानिक दायित्व को ध्यान में रखा जाता है, खासकर उन मामलों में जहां सार्वजनिक नीति और उपभोक्ता हितों का सवाल होता है। CCI को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून के तहत कंपनियों के पास व्यापार करने की स्वतंत्रता हो, लेकिन साथ ही बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा हो।
69. क्या CCI की जांच के बाद कोई कंपनी अपनी गतिविधियों को सही कर सकती है?
उत्तर: हाँ, CCI की जांच के बाद यदि कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल पाई जाती है, तो उसे अपनी गतिविधियों को सुधारने का अवसर दिया जा सकता है। CCI कंपनी को निर्देश दे सकता है कि वह अपनी व्यापारिक गतिविधियों को प्रतिस्पर्धा के अनुरूप बनाए, जैसे कि कार्टेलिंग को समाप्त करना, मूल्य निर्धारण को प्रतिस्पर्धी बनाना, या एकाधिकार की स्थिति से बाहर निकलना।
70. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में “प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते” (Anti-Competitive Agreements) क्या होते हैं?
उत्तर: “प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते” वे समझौते होते हैं जिनमें दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के लिए समझौते करती हैं। उदाहरण के तौर पर, मूल्य निर्धारण, उत्पादन की सीमाएँ, या किसी उत्पाद की आपूर्ति पर नियंत्रण रखना। यह भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत अवैध होता है, और इसके लिए CCI द्वारा जुर्माना या अन्य दंड की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
71. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा सजा और जुर्माना किस आधार पर लगाया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा सजा और जुर्माना निम्नलिखित आधारों पर लगाया जाता है:
- यदि कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल होती है, जैसे कि मूल्य निर्धारण, कार्टेलिंग, और एकाधिकार।
- जुर्माना कंपनी के कुल वार्षिक कारोबार का 10% तक हो सकता है, या प्रतिवादी के अवैध लाभ के अनुपात में हो सकता है।
- CCI यह भी देखता है कि उल्लंघन की गंभीरता और उसके प्रभाव कितने व्यापक हैं।
72. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कार्टेल’ क्या है?
उत्तर: “कार्टेल” एक प्रकार का प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौता है जिसमें कंपनियाँ मिलकर एक दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, मूल्य निर्धारण, आपूर्ति और अन्य व्यापारिक गतिविधियों पर सामूहिक रूप से नियंत्रण करती हैं। यह प्रथा उपभोक्ताओं को हानि पहुंचाती है क्योंकि इससे कीमतें बढ़ जाती हैं और गुणवत्ता में कमी आती है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत इसे प्रतिबंधित किया गया है।
73. क्या CCI किसी कंपनी को अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ बंद करने का आदेश दे सकता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) किसी कंपनी को अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ बंद करने का आदेश दे सकता है, यदि यह पाया जाता है कि कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल है। उदाहरण के लिए, CCI किसी कंपनी को कार्टेलिंग, मूल्य निर्धारण समझौते, या एकाधिकार की स्थिति को खत्म करने के लिए उसकी गतिविधियाँ बंद करने का आदेश दे सकता है।
74. क्या CCI के पास विदेशों में स्थित कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास विदेशों में स्थित कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का अधिकार है, यदि उन कंपनियों का भारत के बाजार पर प्रभाव पड़ता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, CCI उन विदेशी कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है जो भारत में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ करती हैं।
75. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘समझौते’ और ‘व्यवसायिक गतिविधियाँ’ (Agreements and Commercial Activities) के बारे में कोई विशेष प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘समझौते’ और ‘व्यवसायिक गतिविधियाँ’ के बारे में विशिष्ट प्रावधान हैं। ये प्रावधान प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों को प्रतिबंधित करते हैं, जैसे कि मूल्य निर्धारण, कार्टेलिंग, या आपूर्ति की सीमा तय करना। अधिनियम के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनियाँ अपनी गतिविधियों में पारदर्शिता बनाए रखें और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दें।
76. “समाजवादी प्रतिस्पर्धा” (Socialist Competition) का क्या मतलब है और भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम पर इसका क्या प्रभाव है?
उत्तर: “समाजवादी प्रतिस्पर्धा” का मतलब है वह प्रतिस्पर्धा जो समाज की भलाई और उपभोक्ताओं के हितों के लिए काम करती है, न कि केवल व्यावसायिक लाभ के लिए। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रतिस्पर्धा केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं के हितों को सर्वोपरि रखते हुए हो। इसलिए, प्रतिस्पर्धा के नियमों का पालन करते हुए कंपनियाँ समाज के कल्याण को बढ़ावा देती हैं।
77. “द्वंद्वात्मक प्रतियोगिता” (Bid Rigging) क्या है और इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में क्यों प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: “द्वंद्वात्मक प्रतियोगिता” (Bid Rigging) एक प्रकार का प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार है जिसमें कंपनियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर बिडिंग प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं ताकि एक विशेष कंपनी को अनुबंध प्राप्त हो सके। यह आम तौर पर सरकारी या सार्वजनिक निविदाओं में होता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में इसे प्रतिबंधित किया गया है क्योंकि यह सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देता है और सरकार को अधिक मूल्य चुकाने के लिए मजबूर करता है।
78. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास किसी कंपनी की व्यापारिक संरचना में सुधार करने का अधिकार है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास किसी कंपनी की व्यापारिक संरचना में सुधार करने का अधिकार है, यदि वह बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों में शामिल पाई जाती है। उदाहरण के लिए, CCI किसी कंपनी को अपनी आंतरिक गतिविधियों, जैसे कि मूल्य निर्धारण, उत्पादन सीमाएँ, या एकाधिकार की स्थिति में सुधार करने का आदेश दे सकता है।
79. “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing) के तहत CCI के लिए क्या कदम उठाना जरूरी होता है?
उत्तर: “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing) के तहत, यदि CCI यह पाता है कि किसी कंपनी या कंपनियों के समूह ने मिलकर कीमतों को तय किया है, तो उसे इस प्रकार के समझौते को समाप्त करने के लिए कदम उठाने होते हैं। CCI इस तरह के प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों पर जुर्माना लगा सकता है और कंपनियों को प्रतिस्पर्धा के अनुरूप व्यापार करने के लिए निर्देश दे सकता है।
80. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार’ (Anti-Competitive Behavior) का क्या मतलब है?
उत्तर: “प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार” का मतलब है ऐसी व्यापारिक गतिविधियाँ जो प्रतिस्पर्धा को नष्ट करती हैं या कमजोर करती हैं। इसमें मूल्य निर्धारण, कार्टेलिंग, एकाधिकार की स्थिति, या किसी बाजार में अपारदर्शिता लाना शामिल है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उद्देश्य ऐसी गतिविधियों को रोकना और बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बनाए रखना है।
81. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘संविधानिक दायित्व’ (Constitutional Duty) को भी ध्यान में रखा जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में संविधानिक दायित्व को ध्यान में रखा जाता है, खासकर उन मामलों में जहां सार्वजनिक नीति और उपभोक्ताओं के हितों का सवाल होता है। CCI को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून के तहत कंपनियों के पास व्यापार करने की स्वतंत्रता हो, लेकिन साथ ही बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा हो।
82. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘वाणिज्यिक गतिविधियाँ’ (Commercial Activities) और ‘व्यवसायिक समझौते’ (Business Agreements) पर कोई प्रतिबंध है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘वाणिज्यिक गतिविधियाँ’ और ‘व्यवसायिक समझौते’ पर प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को रोकने के लिए प्रतिबंध है। इसमें मूल्य निर्धारण, उत्पादन की सीमाएँ, या आपूर्ति पर सामूहिक नियंत्रण स्थापित करना शामिल हो सकता है। यह सब उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए CCI इस तरह के समझौतों को अवैध मानता है।
83. “प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया” (Competition Process) क्या है और यह भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: “प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया” वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बाजार में प्रतिस्पर्धा बनाए रखी जाती है। यह सुनिश्चित करती है कि उत्पादों और सेवाओं की कीमतें नियंत्रित रहें, गुणवत्ता बनी रहे, और उपभोक्ताओं के पास बेहतर विकल्प हों। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य इस प्रक्रिया को बढ़ावा देना है और सुनिश्चित करना है कि कोई कंपनी बाजार में अपनी स्थिति का दुरुपयोग न करे।
84. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में किसी विशेष उद्योग या क्षेत्र को छूट दी जाती है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में कुछ विशेष उद्योगों को सीमित या विशेष परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है, जैसे कि सार्वजनिक सेवा, रक्षा, या कुछ सरकारी नीतियों के तहत। उदाहरण के लिए, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) कुछ सार्वजनिक नीतियों के तहत समझौतों को स्वीकृति दे सकता है, यदि वे सार्वजनिक हित में हैं।
85. क्या CCI के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है?
उत्तर: हाँ, CCI के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है। यदि किसी पक्ष को CCI का निर्णय असंगत लगता है, तो वह अपीलीय प्राधिकरण (Competition Appellate Tribunal) के पास अपील कर सकता है। यदि अपीलीय प्राधिकरण का निर्णय भी असंतोषजनक हो, तो फिर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
86. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘अवसरों का निषेध’ (Abuse of Dominant Position) का क्या मतलब है?
उत्तर: “अवसरों का निषेध” का मतलब है जब एक कंपनी अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करती है ताकि प्रतिस्पर्धा को नष्ट किया जा सके या उपभोक्ताओं को नुकसान पहुँचाया जा सके। उदाहरण के लिए, अत्यधिक मूल्य निर्धारण या आपूर्ति को रोकना। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम इस प्रकार के दुरुपयोग को रोकता है।
87. “संविधानिक अधिकार” (Constitutional Rights) और “व्यापारिक अधिकार” (Business Rights) के बीच अंतर क्या है?
उत्तर: “संविधानिक अधिकार” वे अधिकार हैं जो भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए हैं, जैसे कि स्वतंत्रता और समानता का अधिकार। “व्यापारिक अधिकार” वे अधिकार हैं जो व्यक्तियों और कंपनियों को व्यापार करने के लिए दिए गए हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ये दोनों अधिकार संतुलित होते हैं, ताकि प्रतिस्पर्धा बनी रहे और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा हो सके।
88. “द्वंद्वात्मक प्रतियोगिता” (Bid Rigging) क्या है और इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में क्यों प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: “द्वंद्वात्मक प्रतियोगिता” (Bid Rigging) एक प्रकार का प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार है जिसमें कंपनियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर बिडिंग प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं ताकि एक विशेष कंपनी को अनुबंध प्राप्त हो सके। यह आम तौर पर सरकारी या सार्वजनिक निविदाओं में होता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में इसे प्रतिबंधित किया गया है क्योंकि यह सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर देता है और सरकार को अधिक मूल्य चुकाने के लिए मजबूर करता है।
89. क्या CCI किसी कंपनी के खिलाफ विशेष आदेश जारी कर सकता है?
उत्तर: हाँ, CCI किसी कंपनी के खिलाफ विशेष आदेश जारी कर सकता है, जैसे कि उन पर जुर्माना लगाना, प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों को समाप्त करने का आदेश देना, या उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना। CCI के पास यह अधिकार होता है कि वह किसी कंपनी की प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए किसी भी प्रकार का आदेश जारी कर सके।
90. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते’ (Anti-Competitive Agreements) क्या होते हैं?
उत्तर: “प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते” वे समझौते होते हैं जिनमें दो या दो से अधिक कंपनियाँ मिलकर प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के लिए समझौते करती हैं। उदाहरण के तौर पर, मूल्य निर्धारण, उत्पादन की सीमाएँ, या किसी उत्पाद की आपूर्ति पर नियंत्रण रखना। यह भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत अवैध होता है, और इसके लिए CCI द्वारा जुर्माना या अन्य दंड की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
91. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘मूल्य निर्धारण समझौते’ (Price Fixing Agreements) क्या होते हैं?
उत्तर: “मूल्य निर्धारण समझौते” (Price Fixing Agreements) वे समझौते होते हैं जिनमें कंपनियाँ मिलकर उत्पादों या सेवाओं की कीमतें निर्धारित करती हैं, बजाय इसके कि वे स्वतंत्र रूप से कीमतों का निर्धारण करें। इस प्रकार के समझौते उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक होते हैं, क्योंकि वे कीमतों को ऊंचा कर सकते हैं और बाजार में प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर सकते हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, ऐसे समझौतों को प्रतिबंधित किया गया है।
92. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों का कोई दंड है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों के लिए दंड निर्धारित किया गया है। यदि कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों में शामिल पाई जाती है, तो उसे जुर्माना लगाया जा सकता है, जो कि उसकी कुल वार्षिक आय का 10% तक हो सकता है। इसके अलावा, CCI द्वारा अन्य आदेश भी दिए जा सकते हैं, जैसे कि संबंधित गतिविधियों को समाप्त करना या कंपनियों को अपने व्यापारिक समझौतों को बदलने का निर्देश देना।
93. “प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यापारिक प्रथाएँ” (Anti-Competitive Trade Practices) क्या हैं?
उत्तर: “प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यापारिक प्रथाएँ” वे प्रथाएँ होती हैं जो बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचाती हैं, जैसे कि मूल्य निर्धारण में समझौते, कार्टेलिंग, और एकाधिकार का निर्माण करना। इस प्रकार की प्रथाएँ उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक होती हैं, क्योंकि वे कीमतों को बढ़ा सकती हैं और गुणवत्ता को घटा सकती हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उद्देश्य इन प्रथाओं को समाप्त करना है।
94. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के निर्णय में किस प्रकार की समीक्षा की प्रक्रिया होती है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के निर्णय की समीक्षा के लिए अपीलीय प्राधिकरण (Competition Appellate Tribunal) के पास अपील की जा सकती है। यदि अपीलीय प्राधिकरण का निर्णय भी असंतोषजनक हो, तो फिर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि CCI द्वारा दिए गए निर्णय उचित और कानूनी रूप से सही हों।
95. क्या प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के फैसलों को लागू करने के लिए विशेष प्राधिकरण की आवश्यकता होती है?
उत्तर: हाँ, प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के फैसलों को लागू करने के लिए एक विशेष प्राधिकरण की आवश्यकता होती है। CCI अपने निर्णयों को लागू करने के लिए विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है। इसके अलावा, न्यायालय भी CCI के आदेशों के क्रियान्वयन में सहायक हो सकता है, यदि कोई पक्ष अदालत में अपील करता है।
96. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में “स्वीकार्यता” (Exemption) की कोई व्यवस्था है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में “स्वीकार्यता” (Exemption) की व्यवस्था है, जो कुछ विशेष स्थितियों में प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों को अनुमति देती है। यदि कोई समझौता सार्वजनिक नीति के अंतर्गत आता है, जैसे कि सार्वजनिक सेवा या सुरक्षा से संबंधित, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है। CCI यह तय करता है कि क्या एक समझौता स्वीकार्य है या नहीं, और यह निर्णय साक्ष्य और कानूनी प्रावधानों पर आधारित होता है।
97. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘कार्टेल’ बनाने को प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘कार्टेल’ बनाने को प्रतिबंधित किया गया है। कार्टेलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ मिलकर बाजार में कीमतों, उत्पादन, या आपूर्ति को नियंत्रित करती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होती है और उपभोक्ताओं को नुकसान होता है। CCI ऐसी गतिविधियों पर जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
98. “एकाधिकार” (Monopoly) और “प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार” में अंतर क्या है?
उत्तर: “एकाधिकार” (Monopoly) वह स्थिति है जिसमें एक कंपनी या संगठन किसी विशेष बाजार में एकमात्र आपूर्तिकर्ता होता है, जिससे वह कीमतें नियंत्रित कर सकता है और उपभोक्ताओं के पास अन्य विकल्प नहीं होते। जबकि “प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार” वह व्यवहार है जो प्रतिस्पर्धा को नष्ट करता है, जैसे कि कार्टेल बनाना या मूल्य निर्धारण में समझौते करना। दोनों ही स्थिति में उपभोक्ताओं को हानि पहुँचती है, और भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम इन दोनों को रोकने के लिए प्रतिबंधित करता है।
99. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘पेटेंट’ और ‘कॉपीराइट’ के बीच क्या अंतर है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘पेटेंट’ और ‘कॉपीराइट’ का मुख्य उद्देश्य बौद्धिक संपदा की रक्षा करना है, लेकिन दोनों का उपयोग अलग-अलग होता है। पेटेंट एक विशेष आविष्कार या तकनीकी नवाचार को रक्षित करता है, जबकि कॉपीराइट साहित्यिक, कला और सांस्कृतिक रचनाओं को रक्षित करता है। हालांकि, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत इन बौद्धिक संपदा अधिकारों का दुरुपयोग प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार के रूप में हो सकता है, जैसे कि कीमतों को नियंत्रित करना या तकनीकी नवाचार की पहुंच को रोकना।
100. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) उपभोक्ता संरक्षण के लिए काम करता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) उपभोक्ता संरक्षण के लिए भी काम करता है। CCI का मुख्य उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प, गुणवत्ता, और उचित मूल्य प्रदान करना है। प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ, जैसे कि मूल्य निर्धारण समझौते, एकाधिकार, और कार्टेलिंग, उपभोक्ताओं के हितों को नुकसान पहुँचाती हैं, और CCI इन प्रथाओं को रोकने के लिए काम करता है।
101. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और भारतीय न्यायपालिका के बीच क्या संबंध है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और भारतीय न्यायपालिका के बीच एक सहयोगात्मक संबंध है। CCI अपने निर्णयों को लागू करने के लिए न्यायपालिका की मदद ले सकता है, खासकर जब कोई पार्टी CCI के आदेश के खिलाफ अपील करती है। न्यायपालिका CCI के आदेशों की समीक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे कानून के अनुरूप हों। इसके अलावा, CCI भी अपनी कार्रवाई के लिए न्यायिक जांच से गुजरता है।
102. क्या प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ भारतीय बाजार के विकास में रुकावट डालती हैं?
उत्तर: हाँ, प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ भारतीय बाजार के विकास में रुकावट डालती हैं। जब कंपनियाँ एकाधिकार या कार्टेलिंग जैसी गतिविधियाँ करती हैं, तो इससे बाजार में नवाचार, गुणवत्ता में सुधार, और कीमतों में प्रतिस्पर्धा की कमी हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, उपभोक्ताओं को कम विकल्प मिलते हैं और उन्हें उच्च कीमतें चुकानी पड़ती हैं, जो आर्थिक विकास और बाजार की कार्यक्षमता को प्रभावित करती हैं।
103. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing) को प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत “मूल्य निर्धारण शक्ति” (Price Fixing) को प्रतिबंधित किया गया है। यह तब होता है जब कंपनियाँ मिलकर कीमतों को तय करती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा कम होती है और उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है।
104. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘सामान्य व्यापारिक प्रथाएँ’ (Normal Business Practices) के बारे में कोई प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘सामान्य व्यापारिक प्रथाएँ’ (Normal Business Practices) के बारे में प्रावधान है। यह प्रावधान इस बात को स्पष्ट करता है कि कुछ व्यापारिक प्रथाएँ, जैसे कि मूल्य निर्धारण या व्यवसायिक रणनीतियाँ, जब तक वे प्रतिस्पर्धा को नुकसान नहीं पहुँचातीं, तब तक उन्हें सामान्य माना जाता है। अगर ये प्रथाएँ प्रतिस्पर्धा-विरोधी हैं, तो उन्हें प्रतिबंधित किया जाता है।
105. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ (International Trade) पर कोई प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ (International Trade) पर प्रावधान है, खासकर जब विदेशी कंपनियाँ भारतीय बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को लागू करती हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को यह अधिकार है कि वह विदेशी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करे, यदि उनके कार्यों का भारतीय बाजार पर प्रभाव पड़ता है।
106. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘एकाधिकार का दुरुपयोग’ (Abuse of Dominance) को दंडित किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘एकाधिकार का दुरुपयोग’ (Abuse of Dominance) को दंडित किया जाता है। जब कोई कंपनी या संगठन अपने एकाधिकार का दुरुपयोग करता है, जैसे कि उपभोक्ताओं को अत्यधिक कीमतों पर सामान बेचने, बाजार में प्रवेश पर रोक लगाने, या अन्य कंपनियों को निष्क्रिय करने की कोशिश करता है, तो यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार माना जाता है। CCI ऐसी गतिविधियों के लिए जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
107. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘मूल्य निर्धारण समझौते’ (Price-Fixing Agreements) के बारे में क्या प्रावधान है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, मूल्य निर्धारण समझौते (Price-Fixing Agreements) प्रतिबंधित होते हैं। यदि कंपनियाँ मिलकर कीमतों का निर्धारण करती हैं, तो यह प्रतिस्पर्धा के सिद्धांत के खिलाफ होता है और उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक हो सकता है। इस प्रकार के समझौते CCI द्वारा जांचे जाते हैं और जुर्माना लगाया जा सकता है।
108. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कार्टेल’ (Cartel) बनाना प्रतिबंधित है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कार्टेल’ बनाना प्रतिबंधित है। कार्टेलिंग वह प्रक्रिया होती है जिसमें कंपनियाँ मिलकर कीमतें, आपूर्ति या अन्य व्यापारिक शर्तों पर सहमति करती हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा कम होती है। यह उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक हो सकता है और इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा दंडित किया जाता है।
109. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘एकाधिकार’ (Monopoly) को भी नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘एकाधिकार’ (Monopoly) को नियंत्रित किया जाता है। जब एक कंपनी किसी विशेष बाजार में एकमात्र आपूर्तिकर्ता बन जाती है, तो वह प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर सकती है और उपभोक्ताओं को अधिक कीमतें चुकानी पड़ सकती हैं। एकाधिकार की स्थिति में भी भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) एक्शन ले सकता है, ताकि बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे।
110. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान व्यापारिक प्रथाएँ’ (Horizontal Agreements) और ‘वर्टिकल व्यापारिक प्रथाएँ’ (Vertical Agreements) में क्या अंतर है?
उत्तर:
- समान व्यापारिक प्रथाएँ (Horizontal Agreements): ये समझौते वही कंपनियाँ करती हैं जो समान उत्पादों या सेवाओं का उत्पादन करती हैं। उदाहरण के लिए, दो या दो से अधिक प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ कीमतें तय करने या बाजार में समान समझौते करने के लिए सहमत होती हैं।
- वर्टिकल व्यापारिक प्रथाएँ (Vertical Agreements): ये समझौते उन कंपनियों के बीच होते हैं जो एक आपूर्ति श्रृंखला में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत होती हैं, जैसे कि निर्माता और खुदरा विक्रेता। इस प्रकार के समझौतों में उत्पाद की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन यह केवल तभी प्रतिस्पर्धा-विरोधी होता है जब इसका बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
111. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘कार्टेल’ के लिए जुर्माना कितना हो सकता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, कार्टेल बनाने या प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने पर जुर्माना लगाया जा सकता है। जुर्माना कंपनी की कुल वार्षिक आय का 10% तक हो सकता है। इसके अलावा, CCI कंपनी से इस प्रकार की गतिविधियों को बंद करने का आदेश भी दे सकता है।
112. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत किसी भी कंपनी को अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ बदलने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत CCI किसी भी कंपनी को अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ बदलने के लिए मजबूर कर सकता है। अगर कोई कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों में शामिल होती है, तो CCI उसे अपनी गतिविधियाँ सुधारने, अपनी कीमतों को उचित बनाने, या अन्य व्यापारिक प्रथाओं को बदलने का आदेश दे सकता है।
113. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘विभिन्न बाजारों में प्रतिस्पर्धा’ को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत विभिन्न बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रावधान हैं। CCI का मुख्य उद्देश्य है कि वह ऐसे सभी प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहारों को रोके जो बाजार में स्वतंत्र और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकते हैं। यह उपभोक्ताओं के लिए अधिक विकल्प, बेहतर गुणवत्ता, और उचित मूल्य सुनिश्चित करता है।
114. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘इंटरनेशनल व्यापार’ (International Trade) को भी नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, यदि विदेशी कंपनियाँ भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ करती हैं, तो उन्हें भी नियंत्रित किया जा सकता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को यह अधिकार है कि वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार से जुड़े मामलों में कार्रवाई करे, यदि उनका प्रभाव भारतीय बाजार पर पड़ता है।
115. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘विलय और अधिग्रहण’ (Mergers and Acquisitions) के लिए क्या प्रावधान है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, यदि कोई कंपनी अन्य कंपनियों का अधिग्रहण करती है या दो कंपनियाँ मिलकर एक होती हैं, और इससे प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो CCI को इसकी समीक्षा करनी होती है। CCI यह सुनिश्चित करता है कि इन विलयों और अधिग्रहणों से बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे। यदि CCI को लगता है कि इससे प्रतिस्पर्धा को नुकसान हो सकता है, तो वह इसे मंजूरी नहीं दे सकता।
116. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की संरचना क्या है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) एक स्वतंत्र प्राधिकरण है, जिसकी संरचना में एक अध्यक्ष और छह अन्य सदस्य होते हैं। यह आयोग प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों की जांच करता है और उन पर कार्रवाई करता है। CCI की कार्यप्रणाली और निर्णयों को न्यायिक समीक्षा के लिए अपीलीय प्राधिकरण के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है।
117. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘घेराबंदी’ (Tying Arrangements) की गतिविधि पर कोई प्रतिबंध है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘घेराबंदी’ (Tying Arrangements) की गतिविधियों पर प्रतिबंध है। घेराबंदी तब होती है जब एक कंपनी अपने उत्पाद के साथ किसी अन्य उत्पाद को बेचना अनिवार्य करती है, भले ही उपभोक्ता उसे नहीं चाहता हो। यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथा मानी जाती है और इसे CCI द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है।
118. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘विज्ञापन’ (Advertising) को कैसे नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत विज्ञापन की गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है यदि वे प्रतिस्पर्धा-विरोधी हो सकती हैं, जैसे कि भ्रामक विज्ञापन जो उपभोक्ताओं को गुमराह करते हैं। CCI यह सुनिश्चित करता है कि कंपनियाँ अपनी विज्ञापन रणनीतियों के माध्यम से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दें, और कोई भी विज्ञापन जो उपभोक्ताओं को गलत जानकारी दे, उसे दंडित किया जा सकता है।
119. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ’ (Pricing Strategies) पर क्या प्रावधान है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, मूल्य निर्धारण रणनीतियाँ तब तक स्वीकार्य होती हैं जब तक वे प्रतिस्पर्धा को हानि नहीं पहुँचातीं। यदि कोई कंपनी मूल्य निर्धारण रणनीति का उपयोग करके बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म करने की कोशिश करती है, तो यह एक प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार माना जाएगा और CCI द्वारा दंडित किया जाएगा।
120. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कार्टेल की गतिविधियाँ’ का पता कैसे चलता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, कार्टेल की गतिविधियों का पता लगाने के लिए CCI विभिन्न प्रकार के उपकरणों का उपयोग करता है, जैसे कि बाजार की स्थिति की निगरानी, कंपनियों के बीच समझौतों की जांच, और सूचना संग्रहण। इसके अलावा, CCI को जनता से शिकायतें भी मिल सकती हैं, जिन्हें वह जांच सकता है।
121. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी अनुबंध’ (Anti-Competitive Agreements) को भी प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी अनुबंध’ (Anti-Competitive Agreements) को प्रतिबंधित किया गया है। इस प्रकार के अनुबंध बाजार में प्रतिस्पर्धा को कम करते हैं, जैसे कि कीमतों को तय करना, आपूर्ति की शर्तों पर सहमति बनाना, या अन्य व्यापारिक शर्तों को नियंत्रित करना। CCI ऐसे अनुबंधों पर जुर्माना लगा सकता है और कंपनियों को उन्हें समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
122. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान कीमतों का निर्धारण’ (Price Fixing) क्या होता है?
उत्तर: ‘समान कीमतों का निर्धारण’ (Price Fixing) तब होता है जब प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ मिलकर अपने उत्पादों या सेवाओं की कीमतें तय करती हैं, जिससे बाजार में स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा समाप्त होती है। यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि मानी जाती है और इसे भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया गया है। CCI ऐसी गतिविधियों पर जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
123. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास कंपनियों की जांच करने के लिए क्या अधिकार होते हैं?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के पास कंपनियों की जांच करने के लिए विस्तृत अधिकार होते हैं। CCI को कंपनियों के दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड की जांच करने का अधिकार है, साथ ही वह प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों के मामले में साक्षात्कार और जांच भी कर सकता है। इसके अलावा, CCI कंपनियों के खिलाफ जुर्माना और दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है यदि यह पाया जाता है कि वे प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं में संलिप्त हैं।
124. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अनुचित व्यापार प्रथाएँ’ (Unfair Trade Practices) को नियंत्रित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अनुचित व्यापार प्रथाएँ’ (Unfair Trade Practices) को नियंत्रित किया गया है। अनुचित व्यापार प्रथाएँ वे गतिविधियाँ होती हैं, जिनमें कंपनियाँ उपभोक्ताओं को धोखा देती हैं या प्रतिस्पर्धा को बाधित करती हैं। उदाहरण के लिए, झूठे विज्ञापन, मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करना, और उपभोक्ताओं को गलत जानकारी देना। ऐसी प्रथाओं के लिए CCI जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
125. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान शर्तों पर अनुबंध’ (Resale Price Maintenance) को प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान शर्तों पर अनुबंध’ (Resale Price Maintenance) को प्रतिबंधित किया गया है। यह तब होता है जब एक निर्माता अपने वितरकों या खुदरा विक्रेताओं को यह आदेश देता है कि वे उत्पादों को एक निश्चित मूल्य पर ही बेचें। यह प्रथा प्रतिस्पर्धा को हानि पहुँचाती है और CCI द्वारा दंडित की जा सकती है।
126. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘वर्टिकल अनुबंध’ (Vertical Agreements) के बारे में क्या प्रावधान है?
उत्तर: ‘वर्टिकल अनुबंध’ (Vertical Agreements) वे अनुबंध होते हैं जो विभिन्न स्तरों पर काम करने वाली कंपनियों के बीच होते हैं, जैसे कि निर्माता और वितरक के बीच। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, वर्टिकल अनुबंधों पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन यदि यह प्रतिस्पर्धा को हानि पहुँचाते हैं, जैसे कि मूल्य निर्धारण को नियंत्रित करना या बाजार में प्रतिस्पर्धा को सीमित करना, तो CCI ऐसे अनुबंधों पर कार्रवाई कर सकता है।
127. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘मूल्य निर्धारण’ (Price Fixing) से संबंधित दंड क्या हो सकते हैं?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, मूल्य निर्धारण (Price Fixing) की गतिविधियों पर जुर्माना लगाया जा सकता है। जुर्माना सामान्यत: कंपनी की वार्षिक आय का 10% तक हो सकता है। इसके अलावा, CCI कंपनी से यह सुनिश्चित करवा सकता है कि वह भविष्य में इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ न करे। कंपनियों को प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते समाप्त करने का आदेश भी दिया जा सकता है।
128. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘कार्टेल’ और ‘मूल्य निर्धारण’ के बीच कोई अंतर है?
उत्तर: हाँ, ‘कार्टेल’ और ‘मूल्य निर्धारण’ के बीच अंतर है।
- कार्टेल: यह एक संघ होता है जिसमें प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ मिलकर कीमतें तय करने, आपूर्ति की शर्तें नियंत्रित करने, या बाजार पर एकाधिकार बनाने की कोशिश करती हैं। यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि मानी जाती है।
- मूल्य निर्धारण: यह सामान्य रूप से उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसमें कंपनियाँ अपने उत्पादों या सेवाओं की कीमत निर्धारित करती हैं। यदि यह कीमतें प्रतिस्पर्धा-विरोधी रूप से तय की जाती हैं, तो यह मूल्य निर्धारण की गतिविधि एक कार्टेल का हिस्सा हो सकती है।
129. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘सार्वजनिक परिवहन’ (Public Transport) की कीमतों पर नियंत्रण किया जा सकता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, सामान्य रूप से सार्वजनिक परिवहन की कीमतों पर CCI का नियंत्रण नहीं होता, क्योंकि सार्वजनिक परिवहन अक्सर सरकारी नियमन के तहत आता है। हालांकि, यदि कोई निजी कंपनी सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ करती है, तो CCI उस मामले में कार्रवाई कर सकता है।
130. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘अवसरवादी प्रतिस्पर्धा’ (Predatory Competition) की गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘अवसरवादी प्रतिस्पर्धा’ (Predatory Competition) की गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है। अवसरवादी प्रतिस्पर्धा तब होती है जब एक कंपनी बाजार में प्रतिस्पर्धा को नष्ट करने के लिए कीमतों को असामान्य रूप से घटा देती है, जिससे छोटे व्यवसायों को निष्क्रिय किया जा सके। इसे प्रतिस्पर्धा-विरोधी माना जाता है और CCI इसे प्रतिबंधित करता है।
131. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘विलय’ और ‘अधिग्रहण’ (Mergers and Acquisitions) की प्रक्रिया को नियंत्रित कैसे किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, यदि कोई कंपनी अन्य कंपनियों का अधिग्रहण करती है या उनका विलय करती है, और इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो CCI इसे जांच सकता है। CCI का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इन विलयों और अधिग्रहणों से उपभोक्ताओं को हानि न हो और प्रतिस्पर्धा बनी रहे। कंपनियों को CCI से मंजूरी प्राप्त करनी होती है यदि उनका विलय या अधिग्रहण निर्धारित सीमा से अधिक है।
132. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान व्यापारिक प्रथाएँ’ (Horizontal Agreements) की जांच की जाती है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान व्यापारिक प्रथाएँ’ (Horizontal Agreements) की जांच की जाती है। ये प्रथाएँ तब होती हैं जब प्रतिस्पर्धी कंपनियाँ मिलकर कीमतें तय करती हैं या आपूर्ति की शर्तों पर सहमति बनाती हैं। इस प्रकार की प्रथाएँ प्रतिस्पर्धा-विरोधी मानी जाती हैं और CCI द्वारा जांच की जाती हैं।
133. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘मूल्य निर्धारण की साजिश’ (Price Rigging) पर प्रतिबंध लगाया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘मूल्य निर्धारण की साजिश’ (Price Rigging) पर प्रतिबंध लगाया जाता है। मूल्य निर्धारण की साजिश तब होती है जब कंपनियाँ मिलकर उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करती हैं, जिससे बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाती है। CCI इसे प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि मानता है और जुर्माना लगा सकता है।
134. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘समझौतों और सिफारिशों’ (Agreements and Recommendations) को कैसे नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, CCI को विभिन्न व्यापारिक समझौतों और सिफारिशों की जांच करने का अधिकार है। यदि ये समझौते या सिफारिशें प्रतिस्पर्धा को कम करती हैं या उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ होती हैं, तो CCI उन्हें निरस्त कर सकता है और संबंधित कंपनियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
135. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी अनुबंध’ की धारणा में ‘विशाल कंपनियों’ (Monopolies) को भी शामिल किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘प्रतिस्पर्धा-विरोधी अनुबंध’ की धारणा में विशाल कंपनियाँ (Monopolies) भी शामिल की जाती हैं। यदि एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न होती है और उससे बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचता है, तो CCI इसे प्रतिस्पर्धा-विरोधी अनुबंध मान सकता है और कार्रवाई कर सकता है।
136. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘संविधानिक अधिकार’ (Constitutional Rights) और ‘प्रतिस्पर्धा’ (Competition) के बीच संतुलन कैसे बनाया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘संविधानिक अधिकार’ और ‘प्रतिस्पर्धा’ के बीच संतुलन बनाने के लिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाली गतिविधियाँ उपभोक्ताओं के हित में हों और कंपनियों के संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन न हो। CCI यह देखता है कि किसी भी प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि से संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन न हो और बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे।
137. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत किसी कंपनी को ‘सामूहिक बाजार शक्ति’ (Collective Market Power) का प्रयोग करने से रोका जा सकता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत CCI किसी कंपनी या कंपनियों के समूह को ‘सामूहिक बाजार शक्ति’ (Collective Market Power) का प्रयोग करने से रोक सकता है। यदि कंपनियाँ एकजुट होकर बाजार में एकाधिकार बनाने की कोशिश करती हैं या प्रतिस्पर्धा को दबाने का प्रयास करती हैं, तो यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि मानी जाती है और CCI इससे संबंधित दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
138. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘बाजार एकाधिकार’ (Monopoly) के खिलाफ कोई प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘बाजार एकाधिकार’ (Monopoly) के खिलाफ प्रावधान हैं। यदि कोई कंपनी बाजार पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लेती है और प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर देती है, तो CCI उसे जांच सकता है और एकाधिकार की स्थिति को समाप्त करने के लिए दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है। यह उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से किया जाता है।
139. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान कीमतों पर बिक्री’ (Price Parity Agreements) पर कोई प्रतिबंध है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘समान कीमतों पर बिक्री’ (Price Parity Agreements) पर प्रतिबंध हो सकता है, यदि यह प्रतिस्पर्धा को नष्ट करता है। ऐसी स्थिति में, जब कंपनियाँ मिलकर एक निश्चित मूल्य तय करती हैं या समान कीमतों पर बिक्री करती हैं, यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी मानी जाती है। CCI ऐसी प्रथाओं के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
140. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘प्रतिकूल प्रभाव’ (Adverse Effect) की जांच कैसे की जाती है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, CCI यह निर्धारित करता है कि किसी गतिविधि का प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या नहीं। यह जाँच बाजार की संरचना, कंपनियों के व्यवहार और उपभोक्ताओं के हितों के आधार पर की जाती है। यदि यह पाया जाता है कि कोई समझौता या गतिविधि प्रतिस्पर्धा को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा रही है, तो CCI उसे प्रतिबंधित कर सकता है।
141. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत कंपनियों को ‘समान व्यापारिक क़ानून’ (Equal Business Laws) के तहत काम करने के लिए बाध्य किया जाता है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत कंपनियाँ ‘समान व्यापारिक क़ानून’ (Equal Business Laws) के तहत काम करने के लिए बाध्य होती हैं। इसका उद्देश्य यह है कि कोई भी कंपनी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करे और बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बनाए रखें। इसके लिए CCI विभिन्न गतिविधियों की निगरानी करता है और प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए कार्रवाई करता है।
142. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कंपनियों का गठबंधन’ (Cartelization) प्रतिबंधित किया गया है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत कंपनियों का गठबंधन (Cartelization) प्रतिबंधित किया गया है। जब कंपनियाँ मिलकर कीमतें तय करती हैं या आपूर्ति की शर्तों पर सहमति बनाती हैं, तो इसे ‘कार्टेल’ माना जाता है और यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी होता है। CCI इसे गंभीर अपराध मानता है और कंपनियों पर जुर्माना और अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है।
143. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘सहायक बाजार’ (Complementary Markets) से संबंधित कोई प्रावधान है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘सहायक बाजार’ (Complementary Markets) से संबंधित प्रावधान हैं। सहायक बाजार वह होते हैं जहाँ एक उत्पाद या सेवा अन्य उत्पादों या सेवाओं के साथ जुड़ा होता है। CCI इन बाजारों में प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों का विश्लेषण करता है और यदि यह पाया जाता है कि इन बाजारों में प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, तो CCI कार्रवाई कर सकता है।
144. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘सीमित प्रतिस्पर्धा’ (Restricted Competition) का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘सीमित प्रतिस्पर्धा’ (Restricted Competition) का अर्थ है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा को जानबूझकर नियंत्रित या सीमित किया जाता है, जिससे उपभोक्ताओं को हानि होती है। यह तब हो सकता है जब कंपनियाँ मिलकर कीमतों को नियंत्रित करती हैं, उत्पादों की आपूर्ति को सीमित करती हैं, या किसी अन्य तरीके से प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुँचाती हैं। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम इस प्रकार की गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है और CCI को इस पर कार्रवाई करने का अधिकार है।
145. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अर्थव्यवस्था के सार्वजनिक हित’ (Public Interest) की रक्षा की जाती है?
उत्तर: हाँ, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘अर्थव्यवस्था के सार्वजनिक हित’ (Public Interest) की रक्षा की जाती है। CCI यह सुनिश्चित करता है कि प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ उपभोक्ताओं के हितों और समाज के समग्र आर्थिक विकास के लिए हानिकारक न हों। यदि किसी गतिविधि का प्रभाव सार्वजनिक हित पर प्रतिकूल पड़ता है, तो CCI उस पर कार्रवाई कर सकता है।
146. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘राज्य’ (State) के व्यापारिक गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘राज्य’ (State) की व्यापारिक गतिविधियाँ सामान्यत: उस समय नियंत्रित की जाती हैं जब वे बाजार में प्रतिस्पर्धा को बाधित करती हैं। यदि राज्य द्वारा संचालित कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियाँ करती हैं या एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न करती हैं, तो CCI उस पर कार्रवाई कर सकता है। हालाँकि, राज्य के कुछ कार्यों को संविधान के तहत विशिष्ट छूट प्राप्त हो सकती है।
147. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘कंपनियों के एकीकरण’ (Merger) की स्थिति में क्या मूल्यांकन किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, कंपनियों के एकीकरण (Merger) की स्थिति में CCI यह मूल्यांकन करता है कि यह एकीकरण बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा या नहीं। CCI यह देखता है कि क्या यह एकीकरण उपभोक्ताओं के हित में है और क्या इससे बाजार में एकाधिकार या प्रतिस्पर्धा की कमी उत्पन्न होगी। यदि इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़े, तो CCI इसे रोक सकता है या शर्तों के साथ अनुमति दे सकता है।
148. क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत ‘नकली उत्पादों’ (Counterfeit Products) के खिलाफ कोई प्रावधान है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत, सीधे तौर पर ‘नकली उत्पादों’ (Counterfeit Products) का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन अगर किसी कंपनी द्वारा नकली उत्पादों की बिक्री से प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधि के रूप में माना जा सकता है। CCI ऐसी स्थिति में कार्रवाई कर सकता है, विशेष रूप से यदि नकली उत्पाद उपभोक्ताओं को धोखा देते हैं और बाजार में अव्यवस्था उत्पन्न करते हैं।
149. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘विपणन रणनीतियाँ’ (Marketing Strategies) और उनके प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव को कैसे नियंत्रित किया जाता है?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में विपणन रणनीतियाँ (Marketing Strategies) और उनके प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव को नियंत्रित किया जाता है। CCI यह सुनिश्चित करता है कि विपणन रणनीतियाँ उपभोक्ताओं को धोखा न दें और बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान न पहुँचाएं। यदि विपणन रणनीतियाँ प्रतिस्पर्धा-विरोधी हैं या उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ हैं, तो CCI कार्रवाई कर सकता है।
150. भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में ‘व्यापारिक प्रतिनिधियों’ (Business Representatives) की भूमिका के बारे में क्या प्रावधान हैं?
उत्तर: भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम में व्यापारिक प्रतिनिधियों (Business Representatives) की भूमिका का ध्यान रखते हुए यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे प्रतिस्पर्धा-विरोधी गतिविधियों का हिस्सा न बनें। यदि कोई व्यापारिक प्रतिनिधि कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते में शामिल होता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है। CCI ऐसे मामलों की जांच करता है और व्यापारिक प्रतिनिधियों को उचित निर्देश प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष:
प्रतिस्पर्धा कानून व्यापारिक समुदाय के लिए एक आवश्यक और महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा है जो न केवल बाजार में उचित प्रतिस्पर्धा बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि उपभोक्ताओं के हितों की भी रक्षा करता है। इसके माध्यम से बाजार में एक निष्पक्ष वातावरण बनाने का प्रयास किया जाता है ताकि सभी व्यापारिक संस्थाएँ समान अवसरों का लाभ उठा सकें और उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता की सेवाएँ मिल सकें।