“प्रतिदावा में संशोधन और समय-सीमाबद्ध राहत: पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
पूरा लेख:
भूमिका:
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि प्रतिदावा (Counter-claim) में संशोधन (Amendment) के द्वारा यदि समय-सीमा से बाहर की गई राहत जोड़ी जाती है, तो उस पर प्रारंभिक चरण में निर्णय देना जल्दबाजी होगी। यह फैसला सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की आदेश 6 नियम 17 (Order 6 Rule 17), सीमायान अधिनियम (Limitation Act) और विशिष्ट राहत अधिनियम (Specific Relief Act) की व्याख्या करते हुए दिया गया।
प्रसंग:
एक लंबित सिविल वाद में प्रतिवादी ने प्रतिदावा में संशोधन हेतु आवेदन दायर किया, जिसमें नवीन रूप से एक राहत की मांग की गई जो prima facie समय-सीमा के बाहर (time-barred) प्रतीत हो रही थी। वादी ने इसका विरोध किया और तर्क दिया कि यह संशोधन अस्वीकृत किया जाए।
प्रमुख कानून जिनका उल्लेख हुआ:
- CPC Order 6 Rule 17:
यह नियम प्रतिवादी को प्रतिदावा या लिखित वक्तव्य में संशोधन की अनुमति देता है यदि न्यायहित में आवश्यक हो। - Limitation Act:
- अनुच्छेद 58, 59, 61(A), 64 और 65 – संपत्ति, दस्तावेजों के निरस्तीकरण और स्वामित्व संबंधी मामलों की समयसीमा निर्धारित करते हैं।
- Specific Relief Act – Section 34:
घोषणात्मक राहत (Declaratory Relief) की व्यवस्था करता है। - Transfer of Property Act – Section 62:
बंधक समाप्त होने के पश्चात् बंधककर्ता की संपत्ति पर पुनः अधिकार की व्यवस्था करता है।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- कानून और तथ्य का मिश्रित प्रश्न (Mixed Question of Law and Fact):
अदालत ने कहा कि प्रतिदावा में समयबद्धता का प्रश्न सिर्फ कानून का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह तथ्य और कानून दोनों का मिश्रण है। इसलिए, इसके निर्णय के लिए सबूतों की विवेचना आवश्यक है। - प्रारंभिक अस्वीकृति अनुचित:
अदालत ने कहा कि इस चरण में प्रस्तावित संशोधन को केवल इस आधार पर खारिज करना कि वह समय-सीमा से बाहर है, न्यायोचित नहीं होगा। - संशोधन की अनुमति:
अदालत ने संशोधन की अनुमति दी, ताकि ट्रायल कोर्ट विवाद के सभी पहलुओं की गहराई से जांच कर सके, और मुद्दों के निर्धारण व साक्ष्य के बाद अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचे।
न्यायालय का निष्कर्ष:
पटना हाईकोर्ट ने कहा कि वाद में मुद्दों (Issues) के निर्धारण और साक्ष्य रिकॉर्ड किए जाने के बाद ही यह तय किया जा सकता है कि क्या संशोधित प्रतिदावा में मांगी गई राहत सीमायान अधिनियम के तहत वर्जित है या नहीं। इसलिए संशोधन को ट्रायल के दौरान मेरिट्स पर विचार के लिए स्वीकृत किया गया।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय उन मुकदमों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जिनमें प्रतिवादी प्रतिदावा में संशोधन द्वारा नई राहतें जोड़ना चाहते हैं। यह स्पष्ट करता है कि संशोधन को समयबद्धता के आधार पर प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि मुकदमे के सभी पहलुओं को सुनने के बाद निर्णय लिया जाना उचित होगा।
निष्कर्ष:
“प्रतिदावा में संशोधन” संबंधी यह फैसला न्यायिक विवेक, प्रक्रिया-सिद्धांतों और न्यायसंगत सुनवाई के अधिकार को सुदृढ़ करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अदालतें किसी भी समयबद्धता की आपत्ति को आखिरी सुनवाई और साक्ष्यों के आधार पर ही तय करेंगी, जिससे किसी भी पक्ष को पूर्वाग्रह या प्रक्रिया के दुरुपयोग से रक्षा मिल सके।