“पूर्व रियासतों की संपत्ति और अनुच्छेद 363: सुप्रीम कोर्ट में राजमाता पद्मिनी देवी बनाम राजस्थान राज्य”

“पूर्व रियासतों की संपत्ति और अनुच्छेद 363: सुप्रीम कोर्ट में राजमाता पद्मिनी देवी बनाम राजस्थान राज्य”

मामला:
Rajmata Padmini Devi and Others Vs. State of Rajasthan and Others
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)
विषय: पूर्व रियासतों की संपत्ति और अनुच्छेद 363 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का प्रश्न
स्थिति: सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करने को तैयार हुआ कि क्या पूर्ववर्ती रियासतों से संबंधित संपत्ति विवाद, संविधान के अनुच्छेद 363 के अंतर्गत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

परिचय:
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में सैकड़ों रियासतें थीं, जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने के लिए विभिन्न ‘संधिपत्रों’ (Instruments of Accession) और ‘पूर्व-संवैधानिक करारों’ (pre-constitutional covenants) पर हस्ताक्षर किए थे। इन करारों में कई बार उन रियासतों के शासकों को विशेषाधिकार और संपत्ति-संबंधी सुरक्षा प्रदान की गई थी। वर्तमान मामला इन्हीं पूर्व रियासतों से संबंधित संपत्तियों को लेकर है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में राजमाता पद्मिनी देवी एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है।


मामले की पृष्ठभूमि:
राजमाता पद्मिनी देवी एवं उनके परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की, जिसमें यह सवाल उठाया गया कि क्या पूर्ववर्ती रियासतों की संपत्तियों से संबंधित विवाद, जो पुराने करारों और समझौतों पर आधारित हैं, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 363 के अंतर्गत आते हैं? यदि हां, तो क्या ऐसे विवादों की सुनवाई अदालत में की जा सकती है या नहीं?

संविधान का अनुच्छेद 363 क्या कहता है?
अनुच्छेद 363 के अनुसार,

“कोई भी न्यायालय भारत के राष्ट्रपति और किसी राजघराने के शासक के बीच हुए करार (instrument of accession या अन्य समझौता) से उत्पन्न विवादों में अधिकार क्षेत्र नहीं रखता।”
इसका उद्देश्य भारत के एकीकरण के दौरान किए गए करारों को न्यायिक हस्तक्षेप से बचाना था।


प्रमुख मुद्दा:
क्या पूर्व रियासतों की संपत्तियों से संबंधित विवाद, जो अब व्यक्तिगत या निजी संपत्ति के रूप में दर्ज हैं, अनुच्छेद 363 के कारण न्यायालय की सीमा से बाहर हैं?


याचिकाकर्ता (राजमाता पद्मिनी देवी) की दलीलें:

  1. संपत्ति विवाद निजी संपत्ति का मामला है, न कि संधिपत्रों की व्याख्या का।
  2. पूर्व राजपरिवार अब आम नागरिक हैं, अतः उनके संपत्ति अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित हैं।
  3. यह विवाद अनुच्छेद 363 की परिधि में नहीं आता, क्योंकि यह विशुद्ध रूप से नागरिक/राजस्व विवाद है।

राज्य सरकार की दलीलें:

  1. संबंधित संपत्ति उन करारों का हिस्सा है जो रियासतों और भारत सरकार के बीच हुए थे।
  2. यह मामला उन करारों की व्याख्या से जुड़ा है, अतः अनुच्छेद 363 के अंतर्गत न्यायालय इसका निपटारा नहीं कर सकता।
  3. यह विवाद राजनीतिक और संवैधानिक प्रकृति का है, न कि सामान्य सिविल विवाद।

सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान स्थिति:
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तकनीकी रूप से गंभीर और संवैधानिक महत्व का माना है। इसने यह स्पष्ट किया है कि वह यह जांच करेगा:

  • क्या इस प्रकार के संपत्ति विवाद अनुच्छेद 363 के अंतर्गत आते हैं?
  • यदि नहीं, तो क्या यह मामला एक सामान्य नागरिक (civil) विवाद के रूप में सुना जा सकता है?

संभावित परिणामों का महत्व:
यह निर्णय न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत में पूर्व रियासतों और उनके वारिसों के हजारों संपत्ति विवादों पर असर डाल सकता है। यदि कोर्ट यह माने कि अनुच्छेद 363 लागू नहीं होता, तो ऐसे सभी विवाद सामान्य न्यायालयों में सुनवाई योग्य होंगे। इसके विपरीत, अगर अनुच्छेद 363 लागू माना गया, तो कोर्ट खुद को इस क्षेत्र से अलग कर लेगा।


निष्कर्ष:
राजमाता पद्मिनी देवी बनाम राज्य सरकार का यह मामला भारत के संवैधानिक ढांचे, ऐतिहासिक करारों, और निजी संपत्ति अधिकारों के जटिल संबंध को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भविष्य में ऐसे सभी मामलों की दिशा तय करेगा और यह एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।