पुलिस थानों में पूछताछ कक्षों में सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं? : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से जवाब तलब किया
प्रस्तावना
भारत में पुलिस हिरासत और पूछताछ के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन वर्षों से एक गंभीर चिंता का विषय रहा है। कई बार हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की मौतों और अमानवीय व्यवहार की घटनाएँ सामने आई हैं, जिनमें न केवल न्यायपालिका बल्कि आम नागरिक भी चिंतित रहे हैं। हाल के वर्षों में राजस्थान राज्य में हिरासत में हुई मौतों की बढ़ती संख्या ने इस मुद्दे को और अधिक गंभीर बना दिया है।
पुलिस थानों में पूछताछ कक्ष ऐसे स्थान हैं जहाँ पुलिस हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के साथ सीधे संपर्क होता है। यह वही जगह होती है जहाँ अधिकतर समय हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के अधिकारों का हनन होने का खतरा रहता है। लेकिन इस महत्वपूर्ण स्थान पर पर्याप्त निगरानी और पारदर्शिता न होना चिंताजनक है। इसी संदर्भ में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान सरकार से यह सवाल उठाया कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं लगाए गए, जबकि यह मानवाधिकारों की रक्षा और पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
न्यायालय की चिंता और आदेश
अक्टूबर 2025 में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने राजस्थान सरकार से सवाल किया कि पुलिस थानों के पूछताछ कक्ष में सीसीटीवी कैमरे क्यों नहीं लगाए गए। न्यायालय ने कहा कि पूछताछ कक्ष वह मुख्य स्थान है जहाँ निगरानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सीसीटीवी कैमरे लगाने में लागत आ सकती है, लेकिन यह केवल एक आर्थिक सवाल नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकारों की रक्षा का मुद्दा है। न्यायालय ने राज्य सरकार से पूछा कि वह कैसे सुनिश्चित करेगी कि पुलिस थानों में निगरानी तंत्र प्रभावी रूप से स्थापित किया गया है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि सीसीटीवी फीड की निगरानी के लिए केंद्रीयकृत एजेंसी या नियंत्रण कक्ष होना चाहिए।
राजस्थान में हिरासत में हुई मौतों की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2025 में एक मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया कि राजस्थान में 2025 के पहले आठ महीनों में 11 व्यक्तियों की हिरासत में मौत हो गई, जिनमें से सात घटनाएँ उदयपुर मंडल में हुई थीं।
यह स्थिति न केवल राज्य प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करती है, बल्कि यह दर्शाती है कि पुलिस थानों में हिरासत और पूछताछ के दौरान पर्याप्त निगरानी नहीं की जा रही है। न्यायालय ने कहा कि हिरासत में हुई मौतों को केवल दुर्घटना नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह राज्य के निगरानी तंत्र की विफलता को दर्शाता है।
न्यायालय के पूर्व आदेश और राज्य सरकार की स्थिति
सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर 2020 में एक आदेश पारित किया था, जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देशित किया गया था कि वे पुलिस थानों और केंद्रीय जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई, ईडी और एनआईए के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण स्थापित करें।
इस आदेश के बावजूद कई राज्य इसका पालन नहीं कर पाए। राजस्थान सरकार ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया कि पुलिस थानों के पूछताछ कक्षों में अभी तक सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए हैं। इस स्थिति ने न्यायालय की चिंता को और बढ़ा दिया है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि मानवाधिकारों और पुलिस जवाबदेही की दिशा में उचित कदम नहीं उठाए गए हैं।
निगरानी तंत्र की आवश्यकता
न्यायालय ने यह भी सवाल उठाया कि राज्य सरकार सीसीटीवी कैमरों की निगरानी कैसे सुनिश्चित करेगी। केवल कैमरे लगाना पर्याप्त नहीं है; उनके कार्यशील रहने और फीड की निगरानी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि इसके लिए एक केंद्रीयकृत एजेंसी की आवश्यकता है, जो सभी पुलिस थानों के कैमरों की वास्तविक समय में निगरानी कर सके।
इस संदर्भ में, न्यायालय ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि कंपनियाँ जैसे इन्फोसिस टैक्सेशन सिस्टम और पासपोर्ट सेवा जैसे बड़े डेटा संचालन को सफलतापूर्वक संभाल सकती हैं, तो उसी तरह एक केंद्रीकृत एजेंसी सीसीटीवी फीड की निगरानी और डेटा संग्रह को सुरक्षित रूप से प्रबंधित कर सकती है।
मानवाधिकारों की रक्षा और पुलिस की जवाबदेही
पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की उपस्थिति केवल तकनीकी उपकरण नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकारों की सुरक्षा और पुलिस की जवाबदेही का प्रतीक है। ये कैमरे हिरासत में लिए गए व्यक्तियों और पुलिस अधिकारियों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
- अमानवीय व्यवहार रोकने में सहायक: सीसीटीवी कैमरे यह सुनिश्चित करते हैं कि पूछताछ के दौरान कोई अवैध या अमानवीय कृत्य न हो। यह पुलिस कर्मचारियों को अनुशासन में रखने का कार्य करता है।
- न्यायिक प्रक्रिया के लिए साक्ष्य: कैमरे हिरासत में हुई घटनाओं का रिकॉर्ड प्रदान करते हैं, जिससे न्यायालय और मानवाधिकार संगठनों को वास्तविक साक्ष्य मिलते हैं।
- पुलिस की जवाबदेही: कैमरों के माध्यम से यह देखा जा सकता है कि पुलिस ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया या नहीं।
- सुरक्षा और पारदर्शिता: सीसीटीवी कैमरे पुलिस और नागरिक दोनों के लिए सुरक्षा की गारंटी देते हैं।
राजस्थान सरकार की जवाबदेही
राजस्थान सरकार के लिए सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश एक स्पष्ट चेतावनी है। सरकार को न केवल सीसीटीवी कैमरों की स्थापना करनी होगी, बल्कि उन्हें कार्यशील बनाए रखना और डेटा का सुरक्षित प्रबंधन भी सुनिश्चित करना होगा। इसके अलावा, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि कैमरों की निगरानी वास्तविक समय में हो और किसी भी शिकायत या विवाद की स्थिति में इसका रिकॉर्ड उपलब्ध हो।
इसके लिए सरकार निम्नलिखित कदम उठा सकती है:
- केंद्रीकृत निगरानी कक्ष का निर्माण: सभी पुलिस थानों के सीसीटीवी फीड की निगरानी एक केंद्रीय स्थान से की जाए।
- तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति: फीड की निगरानी, रिकॉर्डिंग और डेटा सुरक्षा के लिए विशेषज्ञों की टीम नियुक्त करें।
- नियमित ऑडिट: पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों और रिकॉर्डिंग सिस्टम का समय-समय पर ऑडिट किया जाए।
- पारदर्शिता और रिपोर्टिंग: हर थाने में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग की स्थिति के बारे में मासिक रिपोर्ट जारी की जाए।
चुनौतियाँ और समाधान
सीसीटीवी कैमरों की स्थापना में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जिनका समाधान ढूँढना आवश्यक है:
- आर्थिक बोझ: कैमरे और निगरानी प्रणाली की स्थापना में लागत आती है। इसे राज्य बजट में प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- तकनीकी रखरखाव: कैमरे और सर्वर का नियमित रखरखाव सुनिश्चित करना होगा।
- डेटा सुरक्षा: सीसीटीवी फीड को सुरक्षित रखना और किसी अनधिकृत व्यक्ति की पहुँच से बचाना आवश्यक है।
- मानवीय संसाधन: निगरानी के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी, तकनीकी प्रशिक्षण और कानूनी निगरानी तंत्र का सहारा लिया जा सकता है।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश राजस्थान सरकार के लिए स्पष्ट संदेश है कि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और निगरानी तंत्र की व्यवस्था करना अत्यंत आवश्यक है। यह कदम मानवाधिकारों की रक्षा, पुलिस जवाबदेही और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
राजस्थान सरकार द्वारा शीघ्रता से उठाए गए कदम न केवल राज्य के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेंगे, बल्कि पुलिस व्यवस्था की विश्वसनीयता और नैतिकता में भी सुधार करेंगे। अगर अन्य राज्य भी इस दिशा में सक्रिय रूप से कदम उठाएँ, तो भारत में हिरासत और पूछताछ के दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन कम हो सकता है और न्यायपालिका को भी अधिक साक्ष्य उपलब्ध होंगे।
अंततः, सीसीटीवी कैमरे केवल तकनीकी उपकरण नहीं हैं, बल्कि यह पुलिस व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक सुरक्षा का प्रतीक हैं। राजस्थान सरकार का यह दायित्व है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए शीघ्रता से कार्रवाई करे और अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।