“पुलिस की थर्ड डिग्री और नागरिक अधिकार: कानून की कसौटी पर मानव गरिमा की सुरक्षा”
प्रस्तावना
थाने की चारदीवारी के भीतर पुलिस की “थर्ड डिग्री” का नाम सुनते ही आम आदमी के मन में भय और असहायता की भावना जाग उठती है। थर्ड डिग्री का अर्थ है हिरासत में संदिग्धों से जानकारी निकालने या अपराध कबूल कराने के लिए पुलिस द्वारा शारीरिक या मानसिक अत्याचार करना। यह प्रथा न केवल मानवीय गरिमा के खिलाफ है, बल्कि भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का भी घोर उल्लंघन है।
यह लेख विस्तार से बताएगा कि थर्ड डिग्री क्या है, इसके विरुद्ध नागरिकों के क्या अधिकार हैं, और कानून किस प्रकार ऐसे उत्पीड़न को रोकने के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
1. थर्ड डिग्री की परिभाषा और स्वरूप
थर्ड डिग्री पुलिस हिरासत में संदिग्ध या आरोपी के साथ अत्यधिक बल प्रयोग, शारीरिक यातना, मानसिक दबाव, नींद से वंचित करना, बिजली के झटके, मारपीट, भोजन-पानी से वंचित करना आदि तरीकों का प्रयोग है।
- शारीरिक यातना: मारपीट, हड्डी तोड़ना, जलाना, चोट पहुंचाना।
- मानसिक यातना: गालियां देना, परिवार को धमकाना, लगातार पूछताछ करके नींद न आने देना, झूठे केस में फंसाने की धमकी।
2. थर्ड डिग्री का कानूनी निषेध
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार; किसी को भी विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के बिना स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 20(3) – आत्म-अभियोग से बचने का अधिकार; किसी आरोपी को स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 22 – गिरफ्तारी के समय कानूनी सुरक्षा।
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC):
- धारा 41-60A – गिरफ्तारी और हिरासत की प्रक्रिया में बलपूर्वक उत्पीड़न निषिद्ध है।
- धारा 54 – हिरासत में मेडिकल जांच का अधिकार।
भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 330-331 – किसी व्यक्ति से स्वीकारोक्ति या जानकारी प्राप्त करने के लिए स्वेच्छा से चोट पहुंचाना दंडनीय है (7 से 10 साल तक की सजा)।
- धारा 348 – गलत तरीके से हिरासत में रखना और यातना देना दंडनीय है।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993:
- हिरासत में यातना और अमानवीय व्यवहार मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है।
- राष्ट्रीय और राज्य मानवाधिकार आयोग ऐसे मामलों में जांच कर सकते हैं।
3. सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय
(a) D.K. Basu बनाम State of West Bengal (1997)
सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड डिग्री रोकने के लिए 11 दिशा-निर्देश जारी किए:
- गिरफ्तारी के समय पुलिस पहचान-पत्र पहने।
- गिरफ्तारी का समय और स्थान दर्ज हो।
- परिवार/मित्र को तुरंत सूचना दी जाए।
- मेडिकल जांच हर 48 घंटे में हो।
- गिरफ्तार व्यक्ति को वकील से मिलने का अवसर दिया जाए।
- गिरफ्तारी और पूछताछ का पूरा रिकॉर्ड रखा जाए।
(b) Sheela Barse बनाम State of Maharashtra (1983)
महिला कैदियों और हिरासत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान दिए।
(c) Prakash Kadam बनाम Ramprasad Vishwanath Gupta (2011)
कोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ या यातना हत्या के समान गंभीर अपराध है।
4. अंतर्राष्ट्रीय मानदंड
भारत संयुक्त राष्ट्र के “यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड के विरुद्ध अभिसमय” (UNCAT) का हस्ताक्षरकर्ता है। यद्यपि इसे अभी तक पूर्ण रूप से घरेलू कानून में लागू नहीं किया गया है, लेकिन भारतीय न्यायालय अंतर्राष्ट्रीय मानकों को निर्णयों में महत्व देते हैं।
5. नागरिक के अधिकार: थर्ड डिग्री से सुरक्षा
- चुप रहने का अधिकार (Right to Silence) – अनुच्छेद 20(3)।
- वकील से मिलने का अधिकार – अनुच्छेद 22(1) और CrPC धारा 41D।
- मेडिकल जांच का अधिकार – CrPC धारा 54।
- मानवाधिकार आयोग में शिकायत – राष्ट्रीय/राज्य आयोग में शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- न्यायालय में हैबियस कॉर्पस याचिका – अवैध हिरासत से तुरंत मुक्ति के लिए।
- मुआवजा पाने का अधिकार – सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में यातना पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दे चुका है।
6. अगर पुलिस थर्ड डिग्री दे तो क्या करें?
- तुरंत शिकायत करें:
- जिला/राज्य पुलिस प्रमुख को लिखित शिकायत।
- मानवाधिकार आयोग को ईमेल/डाक से आवेदन।
- मेडिकल सबूत सुरक्षित रखें: चोट, घाव, मेडिकल रिपोर्ट, फोटो, वीडियो।
- गवाह: घटना के प्रत्यक्ष/परोक्ष गवाह का बयान।
- कानूनी कार्रवाई:
- IPC की धारा 330, 331, 348 के तहत केस दर्ज कराना।
- सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट में रिट याचिका।
7. पुलिस सुधार और थर्ड डिग्री रोकने के उपाय
- CCTV कैमरे: सुप्रीम कोर्ट ने सभी थानों में CCTV लगाने के आदेश दिए।
- जांच में तकनीक का उपयोग: वैज्ञानिक तरीके – फॉरेंसिक, DNA, नार्को एनालिसिस (न्यायालय की अनुमति से)।
- पुलिस प्रशिक्षण: मानवाधिकार और क्रिमिनल जस्टिस में नियमित प्रशिक्षण।
- स्वतंत्र निगरानी निकाय: पुलिस के कार्यों पर नागरिक समिति या न्यायिक निगरानी।
निष्कर्ष
थर्ड डिग्री केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है। यह न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करता है और निर्दोष लोगों के जीवन को बर्बाद कर सकता है। भारतीय संविधान, दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और मानवाधिकार कानून नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करते हैं, बशर्ते वे इनका ज्ञान रखें और साहस के साथ उनका प्रयोग करें।
एक जागरूक नागरिक ही अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है, और जब नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, तो लोकतंत्र और न्यायपालिका दोनों मजबूत होते हैं।