लेख शीर्षक:
“पीड़ित केंद्रित प्रक्रियाः नई संहिता का दृष्टिकोण”
परिचय:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली लंबे समय तक अभियुक्त-केंद्रित रही है, जहाँ मुकदमे की संपूर्ण प्रक्रिया मुख्यतः आरोपी के अधिकारों और उसकी सुरक्षा पर आधारित थी। हालांकि, इस ढांचे में पीड़ित की भूमिका अक्सर सीमित और उपेक्षित रही है। इसी पृष्ठभूमि में “भारतीय न्याय संहिता, 2023” (भा.ना.सु.सं.), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (भा.नाग.सु.सं.), और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 को लागू किया गया, जिनमें पहली बार “पीड़ित के अधिकारों और सम्मान” को विधिक मान्यता और महत्व प्रदान किया गया है।
1. पीड़ित केंद्रित न्याय व्यवस्था की आवश्यकता
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में अपराधों के शिकार व्यक्तियों की संख्या लाखों में होती है, किंतु:
- पीड़ित की आवाज़ अक्सर न्यायिक प्रक्रिया में दब जाती है,
- उसे प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर बहुत सीमित मिलता है,
- मानसिक, सामाजिक और आर्थिक पीड़ा के समाधान के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं होती थी।
इसलिए, एक न्यायिक प्रणाली तभी पूर्ण मानी जा सकती है जब वह अपराधी को दंडित करने के साथ-साथ पीड़ित को राहत और न्याय भी प्रदान करे।
2. भा.ना.सु.सं. 2023 में पीड़ित केंद्रित प्रावधान
(क) प्राथमिकी की सहजता:
- पीड़ित अब ऑनलाइन माध्यम से भी एफआईआर दर्ज करवा सकता है।
- महिलाओं और बच्चों के मामले में घर पर जाकर एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान।
(ख) पीड़ित को सूचना देने का अधिकार:
- पीड़ित को मामले की जांच, गिरफ्तारी, जमानत, चार्जशीट, ट्रायल आदि की स्थिति की डिजिटल माध्यम से जानकारी देने का दायित्व पुलिस पर डाला गया है।
(ग) मानसिक और भावनात्मक सहयोग:
- खासकर यौन अपराधों और घरेलू हिंसा के मामलों में परामर्श, चिकित्सा सहायता और पुनर्वास की व्यवस्था।
- वन-स्टॉप सेंटर, महिला हेल्पलाइन, और वीडियो रिकॉर्डिंग से बचाव।
3. गवाही और सुरक्षा से जुड़ी विशेष व्यवस्थाएं
(क) पीड़ित की गरिमा की रक्षा:
- यौन अपराधों के मामलों में पीड़ित की पहचान को गोपनीय रखने और कैमरे के पीछे से गवाही देने का अधिकार।
- कोर्ट में अपमानजनक जिरह पर अंकुश लगाने की शक्ति न्यायालय को दी गई है।
(ख) गवाह सुरक्षा कार्यक्रम:
- यदि पीड़ित या गवाह को खतरा है, तो उसे सुरक्षा, स्थान परिवर्तन या पहचान संरक्षण की सुविधा।
4. क्षतिपूर्ति (Compensation) की प्रभावशाली नीति
- नई संहिता के अनुसार न्यायालय अपने स्तर पर पीड़ित को अंतरिम या अंतिम क्षतिपूर्ति देने का निर्देश दे सकता है।
- राज्य सरकारों के लिए पीड़ित मुआवजा योजना को मजबूती देने की बाध्यता।
5. पुनर्वास और पुनः एकीकरण की दिशा में कदम
- पीड़ित पुनर्वास बोर्ड या सहायता केंद्रों की स्थापना की योजना।
- विधवा, अनाथ, बलात्कार पीड़िता आदि को दीर्घकालिक सहयोग देने की नीतियाँ शामिल।
6. पीड़ित की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना
- पीड़ित को न्यायिक प्रक्रिया में “वैकल्पिक अभियोजन” के रूप में भागीदारी का अवसर।
- ट्रायल के दौरान पीड़ित की अनुमति और परामर्श पर विशेष बल।
7. विशेष रूप से संवेदनशील वर्गों की सुरक्षा
- महिलाओं, बच्चों, वृद्धजनों, दिव्यांगों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा हेतु विशिष्ट निर्देश।
- बाल यौन शोषण, मानव तस्करी, तेज़ाब हमला, घरेलू हिंसा जैसे अपराधों में पीड़ितों के लिए विशेष न्यायिक तंत्र।
8. डिजिटल माध्यमों से सशक्तिकरण
- पीड़ित को SMS/ईमेल/पोर्टल के माध्यम से केस की जानकारी देना अनिवार्य।
- पीड़ित की सहायता हेतु डिजिटल पोर्टल, मोबाइल ऐप्स, और हेल्पलाइन नंबर।
निष्कर्ष:
“भारतीय न्याय संहिता, 2023” भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में पीड़ित को केंद्र में लाने का साहसी प्रयास है। इससे पहले कानून व्यवस्था में अपराधी के अधिकारों की बहुत चर्चा होती थी, लेकिन पीड़ित की पीड़ा और न्याय की आवश्यकता को अनदेखा कर दिया जाता था।
अब सहानुभूति, सहभागिता, और सुरक्षा की भावना के साथ पीड़ित को न्यायिक प्रक्रिया में सम्मानजनक स्थान प्रदान किया गया है। यह परिवर्तन एक सशक्त, न्यायपूर्ण और संवेदनशील भारत की ओर बढ़ता कदम है।