“पिता की संपत्ति में बहन को हिस्सा न देना कानूनी अपराध: दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि पिता की संपत्ति में बहनों को उनका वैध हिस्सा न देना न केवल अनुचित और भेदभावपूर्ण है, बल्कि यह कानून का उल्लंघन भी हो सकता है। यह निर्णय भारतीय समाज में लंबे समय से चली आ रही पितृसत्तात्मक सोच और महिलाओं के साथ संपत्ति वितरण में होने वाले अन्याय के विरुद्ध एक मजबूत संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
मामला क्या था?
एक महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसने आरोप लगाया कि उसके भाई ने पिता की मृत्यु के बाद पैतृक संपत्ति में उसे कोई हिस्सा नहीं दिया और संपत्ति पर एकाधिकार कर लिया। याचिकाकर्ता ने अदालत से अपील की कि उसे उसका वैध उत्तराधिकार हिस्सा दिलाया जाए।
कोर्ट की सुनवाई और टिप्पणियाँ:
मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने निम्नलिखित अहम टिप्पणियाँ कीं:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 के अनुसार, बेटियाँ पिता की संपत्ति में पुत्रों के समान ही वारिस होती हैं।
- 2005 में हुए संशोधन के बाद यह स्थिति और स्पष्ट हो गई है कि पुत्री चाहे विवाहित हो या अविवाहित, वह पैतृक संपत्ति में समान अधिकार की हकदार है।
- यदि कोई भाई जानबूझकर बहन को संपत्ति से वंचित करता है, तो यह हिंसात्मक वंचना (malicious deprivation) और कानूनी अपराध की श्रेणी में आ सकता है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति पर महिला का अधिकार केवल “सामाजिक नैतिकता” नहीं, बल्कि कानूनी रूप से संरक्षित अधिकार है।
अदालत का आदेश:
दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि:
- याचिकाकर्ता को पैतृक संपत्ति में उसका हिस्सा तुरंत दिया जाए।
- यदि उत्तराधिकारी (भाई) ने जानबूझकर फर्जी दस्तावेज़ तैयार किए या संपत्ति को हड़पने का प्रयास किया, तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई (punitive action) की जा सकती है।
- कोर्ट ने स्थानीय राजस्व अधिकारियों और रजिस्ट्री विभाग को निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में बहनों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई हो और संपत्ति का सही बंटवारा सुनिश्चित किया जाए।
कानूनी महत्व:
यह फैसला कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:
- यह महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों की पुष्टि करता है।
- यह उन परंपराओं और सोच का विरोध करता है जो मानती हैं कि केवल बेटे ही पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकारी होते हैं।
- यह स्पष्ट करता है कि यदि किसी महिला को संपत्ति से वंचित किया जाता है तो वह सिविल कोर्ट के अलावा कानूनी अपराध की श्रेणी में भी मामला दर्ज करवा सकती है।
निष्कर्ष:
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्णय एक मजबूत सन्देश है कि भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकार केवल “कागज़ी अधिकार” नहीं हैं, बल्कि कानूनी रूप से लागू होने वाले प्रभावशाली अधिकार हैं। यदि किसी बहन को उसके हिस्से से वंचित किया जाता है, तो वह कानूनी सहायता लेकर न्याय प्राप्त कर सकती है और दोषियों को सजा भी दिला सकती है।